भारतीय रिज़र्व बैंक पर चुनाव आने से पहले सरकार को अपने प्रॉफिट का हिस्सा देने का दबाव बन रहा है। सरकार इसे वित्तीय घाटे पर नियंत्रण पाने एवं आने वाले चुनावों में खर्च और वोटर सपोर्ट पाने के लिए कर सकेगी।
हिंदुस्तान टाइम्स को कुछ सूत्रों से खबर मिल रही है की आरबीआई से सरकार को 400 अरब रूपये तक मिल सकते हैं।
सरकार क्यों मांग रही है रबी से वित्त्त ?
आरबीआई के फंड में 9.6 लाख करोड़ रुपये हैं। यह आरबीआई के कुल एसेट का 28% है। सरकार का कहना है कि दूसरे बड़े देशों के केंद्रीय बैंक अपने एसेट का 14% रिजर्व फंड में रखते हैं। जीएसटी से रेवेन्यु कलेक्शन ज्यादातर एक लाख करोड़ के मासिक आंकड़ें को नहीं छू पाया है जिसके कारण सरकार के पास केंद्रीय बैंक पर निर्भर होने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है।
तुर्की के केंद्रीय बैंक ने कुछ समय पहले ऐसा ही किया। तुर्की का केंद्रीय बैंक सरकार को मार्च में होने वाले इलेक्शन से पहले सरकार को एडवांस डिविडेंड देगा। भारत में भी कुछ ऐसा ही वित्तीय वर्ष खत्म होने से पहले किया जा रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार यदि आरबीआई से अंतरिम डिविडेंड के अलावा कोई भी राशि मांगी जाती है वो नियमों के खिलाफ होती है इस कारण सरकार की सिफारिश को आरबीआई मंजूर नहीं कर रहा था।
वित्तीय घाटे के कारण :
सरकार को हो रहे वित्तीय घाटे के मुख्य कारण जीएसटी संग्रह में कमी लगभग 14 बिलियन डॉलर की कमी, इसके साथ साथ अपनी सरकार द्वारा अपनी परिसंपत्ति बेचने पर भी काम राशि प्राप्त हुई है जिसके चलते सरकार के पास चुनावों में खर्च करने के लिए पर्याप्त धनराशि नहीं है और इसी वजह से आरबीआई पर आस लगाईं जा रही है।
आरबीआई सरकार को हर साल देता है धनराशि :
हर साल आरबीआई अपने कुल लाभ में से एक हिस्से का रिज़र्व फण्ड बनाता जिसे वह स्वयं के पास रखकर बची हुई राशी सरकार को देदेता है। आरबीआई ने इमरजेंसी स्थिति से निपटने के लिए थोड़ी बड़ी राशी का रिज़र्व फण्ड बनाया है। लेकिन सरकार इसका विरोध कर रही है।
पिछले साल आरबीआई ने सरकार को अंतरिम डिविडेंड के रूप में 100 अरब रूपए दिए थे। इस बार विशेषज्ञों का अनुमान है की आरबीआई सरकार को लगभग 400 अरब रूपए तक दे सकता है।