वर्तमान वित्तीय वर्ष में अपने तमाम लक्ष्यों को पूरण करने के लिए सरकार ने आरबीआई से पिछले दो वर्षों में उत्पन्न किये गए रिज़र्व मांगे हैं। बतादें की आरबीआई से रिज़र्व लेनदेन के लिए एक कमिटी का गठन किया गया था लेकिन सरकार ने उस कमिटी के आदेश आने से पहले ही सरकार ने यह मांग रख दी है।
सरकार को क्यों चाहिए वित्त ?
सरकार द्वारा यह मांग निम्न कारणों के चलते राखी गयी है : सबसे मुख्य कारण तो यह है की हर माह होने वाला जीएसटी संग्रह का लक्ष्य 1 लाख करोड़ होता है जोकि कुछ महीनों से पूरा नहीं हो रहा है। इसके अलावा, राज्य संचालित फर्मों में सरकार की योजनाबद्ध हिस्सेदारी की बिक्री अभी भी लक्ष्य से कम है, हालांकि वित्त मंत्री पीयूष गोयल 80,000 करोड़ रुपये के अनुमान को पार करने के लिए आश्वस्त हैं। लक्ष्य न पूरे होने के कारण अब सरकार के पास आरबीआई ही एक रास्ता बाख गयी है इ से सरकार को वित्त प्राप्त करने की आशा है।
ब्लूमबर्ग द्वारा पेश की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने अगले वित्तीय वर्ष के लिए कुल 69,000 करोड़ के वित्त का अनुमान लगाया है जिसमे 2018 के रिज़र्व में रखा गया वित्त भी शामिल है।
आरबीआई सरकार को क्यों देता है सरप्लस ?
विशेषज्ञों के अनुसार आरबीआई हर साल अपने लाभ का छोटा हिस्सा रिज़र्व के रूप में रख लेती है। इसके अलावा बचा हुआ हिस्सा सरकार को प्रदान कर दिया जाता है जिसे फिस्कल आय के नाम से जाना जाता है। यह सरकार को सरप्लस विभिन्न खर्चों एक लिए देता है ताकि सरकार उसमे प्रयोग कर सके और राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए भी इसका अहम् प्रयोग होता है।
राज्य-संचालित बैंकों को हो रहा घाटा :
सरकार को आरबीआई से अतिरिक्त वित्त की इस कारण भी ज़रुरत पद रही है क्योंकि राज्य संचालित बैंक जो सरकार की आय हैं उन्हें मुख्यतः घाटा हो रहा है जिससे वे सरकार की मदद नहीं कर पा रहे हैं। इसी के चलते आरबीआई से सरकार को वित्त प्राप्त करने की आशा है।
लेकिन यही कारण है की पिछले वर्ष आरबीआई के गवर्नर और सरकार के बीच मतभेद हुए थे। पिछले वर्ष सरकार ने आरबीआई के रिज़र्व में से अतिरिक्त वित्त की मांग की थी और उर्जित पटेल जोकि उस समय आरबीआई के गवर्नर थे। इसकी के चलते उनके द्वारा इस्तीफा दे दिया गया था और उनके बाद शक्तिकांत दास को नया गवर्नर बनाया गया था।