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    राज्यसभा के सभापति और उप-राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने गुरुवार को सरकारी कार्यालयों में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग वाले विचार का समर्थन कर इसकी सराहना की।

    अपनी मातृभाषा में अपने मुद्दे राज्यसभा में उठाने के लिए सदस्यों की सराहना करते हुए नायडू ने कहा कि शुरुआत में ही इसे अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए था।

    इसे एक अच्छी शुरुआत बताते हुए उन्होंने कहा कि इस बात के लिए अब किसी की आलोचना नहीं की जानी चाहिए।

    राज्यसभा के सभापति ने सरकारी कार्यालयों और अदालतों में स्थानीय भाषाओं का उपयोग करने के विचार का समर्थन किया।

    नाडयू ने कहा, “मेरा कहना यह है कि जो हम बोल रहे हैं वह लोगों को समझ में आना चाहिए। मैं इस बारे में बहुत चिंतित हूं। यदि संभव हो तो अदालतें, सरकारी कार्यालय और संसद को भी चाहिए कि वह लोगों को समझ में आने वाली भाषाओं में अपना कामकाज करें और फिर अंग्रेजी को अतरिक्त तौर पर जोड़ें। इसमें बिल्कुल भी परेशानी नहीं है।”

    संयोग से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद जीवीएल नरसिम्हा और एक पार्टी प्रवक्ता ने आंध्र प्रदेश सरकार के उस फैसले को लेकर सदन में आपत्ति जताते हुए कहा कि स्कूलों में निर्देश देने के लिए अंग्रेजी को अनिवार्य किया गया है। भाजपा नेता ने सरकार से इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करने का आग्रह किया।

    नरसिम्हा ने राज्यसभा में उल्लेख किया कि तेलुगू शास्त्रीय भाषाओं में से एक है और दक्षिण भारत में व्यापक रूप से बोली जाती है।

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