सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के लिए दो महिलाओं बिंदु और फातिमा की याचिका पर आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई के साथ ही प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “हम जल्द से जल्द सात न्यायाधीशों वाली पीठ गठित करने का प्रयास करेंगे और इसी पीठ के निर्णय के बाद इन मामलों को उठाया जाएगा।”
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “हर महिला जो जाना चाहती है, उसे जाना चाहिए। लेकिन देश में स्थिति विस्फोटक हो गई है और हम कोई हिंसा नहीं चाहते हैं। यह एक निर्णय है, लेकिन यह इस मुद्दे पर अंतिम शब्द नहीं है।”
शीर्ष अदालत ने सितंबर 2018 के अपने एक फैसले में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति दी थी। नवंबर 2019 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने मामले को देखने की जिम्मेदारी एक बड़ी पीठ को सौंपी है। इसमें अन्य धर्मों के धार्मिक स्थानों पर महिलाओं के प्रवेश से संबंधित मुद्दों को भी शामिल किया गया है।
बिंदु की ओर से पेश हुई वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने अदालत के समक्ष दलील दी, “हम सभी हिंसा से बचने के लिए ही यहां पर हैं। यह देश अहिंसा की नींव पर आधारित है और हम हिंसा को प्रोत्साहित नहीं करते हैं।”
जयसिंह ने नवंबर 2018 के फैसले का हवाला देते हुए कहा, “मेरी मुवक्किल एक दलित और हिंदू महिला है और उसने मंदिर में प्रवेश किया था, क्योंकि उसकी इसमें आस्था है।”
इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “यह निर्णय अंतिम नहीं है।”
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि फैसला याचिकाकर्ता के पक्ष में है और यह ऐसी स्थिति नहीं है, जहां किसी के निजी अधिकार शामिल हों। उन्होंने कहा कि किसी के जीवन का अधिकार भी नहीं छीन लिया गया है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “यह बहुत ही भावनात्मक मुद्दा है और इस मामले को बड़ी पीठ को जाने दें।”
उन्होंने कहा कि अदालत याचिकाकर्ता के पक्ष में शुक्रवार को आदेश पारित नहीं करने के लिए अपने विवेक का उपयोग कर रही है।
उन्होंने कहा, “हम कोई आदेश नहीं दे रहे हैं, अगर वे (मंदिर अधिकारी) खुशी से मंदिर में आपका स्वागत करते हैं, तो हमें कोई कठिनाई नहीं है।”
अदालत ने कहा कि बिंदु को अगले आदेश तक सुरक्षा मिलती रहेगी।