Mon. Dec 23rd, 2024

    राजस्थान की राजनीति में उथल-पुथल थमने का नाम नहीं ले रही है। एक और जहाँ विधायकों को बर्खास्त करने का मामला कोर्ट में है, दूसरी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) लगातार सचिन पायलट (Sachin Pilot) पर जुबानी हमले कर रहे हैं। कल ही उन्होनें पायलट को ‘निकम्मा’ और ‘नाकारा’ कहा था और आज फिर से अशोक गहलोत ने तीखे हमले किये हैं।

    मीडिया से बातचीत में उन्होनें कहा, “जिस प्रकार संगठन उन्होंने चलाया, संदर्भ वो था कि जबसे वो आए हैं, इतना बड़ा विश्वास मुझपर भी किया गया था जब मैं आया था, युवा पीढ़ी का था और लगातार किया गया और बहुत कम समय में भी केंद्रीय मंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष बनने का सौभाग्य मिला, मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। सचिन पायलट जी भी उस कैटेगरी में आते हैं। इस कांग्रेस पार्टी ने, सोनिया गांधी जी ने, राहुल गांधी जी ने उनको 25 साल की उम्र में मेंबर ऑफ पार्लियामेंट बनाया, लगभग 30 साल की उम्र में वो केंद्रीय मंत्री बन गए, 36 साल की उम्र में वो प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बन गए और 40 साल में लगभग वो डिप्टी सीएम बन गए, उनको चांस अच्छे मिले मेरी तरह। संगठन भी जो चलाया उस वक्त में, ऐसा संगठन मैंने तो, 40 साल का संगठन मेरा भी अनुभव है संगठन चलाने का, मैं तीन बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष रहा हूं, मैंने कई अध्यक्षों को देखा है, ये पहले अध्यक्ष थे जिन्होंने और मैं समझता हूं कि क्योंकि जब वो यूथ कांग्रेस में कभी रहे नहीं, एनएसयूआई में रहे नहीं, संगठन का अनुभव नहीं था, आते ही लैंड करते ही उन्होंने कहना शुरु किया “मैं मुख्यमंत्री बनने के लिए आया हूं समझ लीजिए आप, 40 साल राजनीति मुझे करनी है। आप तय कर लीजिए, किनके साथ रहना है आपको ? कल आप अशोक गहलोत के घर खड़े थे, परसों आप एआईसीसी में खड़े थे सीपी जोशी के ऑफिस के बाहर। मैं कोई सब्जी बेचने नहीं आया हूं यहां पर, बैंगन बेचने नहीं आया हूं”, ये तो केवल एक बानगी है, ऐसी भाषा कार्यकर्ताओं में पूरे 5 साल तक चलती गई और कई लोगों को संगठन में काम करने की इच्छा होती है, भविष्य की इच्छा होती है तो जुड़ जाते हैं लोग-बाग। कई बोर्ड लगाए गए, कई तरह की बातें हैं जो मुझे अब रिपीट नहीं करनी चाहिए। इसलिए कई बार लगता है कि एक आदमी पढ़ा-लिखा इन्सान, बातचीत में वैल बिहेव, अच्छा व्यवहार रखने की फितरत, पारिवारिक पृष्ठभूमि पॉलिटिशियन की क्योंकि पिताजी हमारे साथ थे मेंबर ऑफ पार्लियामेंट, केंद्रीय मंत्री, वो व्यक्ति संगठन के बारे में और संगठन बनाने के बारे में, बजाय कि सहयोग सबका लो, जो मैंने उनको सलाह भी दी थी, आप तो खाली संगठन में सबकी सलाह लेकर चल लो, कोई दिक्कत नहीं आएगी आपको, हम सब आपके साथ हैं। पर जिस प्रकार उन्होंने वर्टिकल डिविजन कर दिया पार्टी का राजस्थान के अंदर, राजस्थान के इतिहास में किसी कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के वक्त में नहीं हुआ होगा। तो संगठन का संदर्भ कोई मुझे पूछे, तो मैं वो भाषा काम लूंगा कि नाकारा-निकम्मा व्यक्ति होता है जो अनुभव रखता नहीं है, उस ढंग का संगठन चला। मेरा कोई व्यक्तिगत उनके प्रति पूर्वाग्रह नहीं है, पर आदमी गुस्से में जब होता है, लगता है कि हो क्या रहा है ? संगठन में कैसे इन्होंने बिताया समय? अभी डिप्टी सीएम साहब बन गए, कोई 8-10 बार गए होंगे सचिवालय, कोई बात नहीं, पर साथ में सोनिया गांधी जी, राहुल गांधी जी ने इनको प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद भी रखा, वन मैन वन पोस्ट वाली बात नहीं रखी इनके लिए, विशेष इनके लिए छूट दी गई और हमने ऐतराज़ भी नहीं किया। तो संगठन का मुखिया होने के नाते उनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है और संगठन का मुखिया खुद ही होकर अगर पार्टी की सरकार को गिराने का काम करे उसको हम क्या कहेंगे?”

    उन्होनें आगे कहा, “जब मैं विपक्ष में था, लगातार 5 साल मैंने अटैक किए वसुंधरा राजे की सरकार पर, श्रीमती वसुंधरा राजे जी पर पहले मुख्यमंत्री थीं तब। मेरे स्टेटमेंट जारी होते ही मिस्टर अशोक परनामी, बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष और मिस्टर राजेंद्र राठौड़ या और कोई नेता, सराफ साहब, जो भी होते थे, वो उसी वक्त साथ में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते या स्टेटमेंट जारी करते, मेरे स्टेटमेंट का खंडन नहीं करते थे कंडेम करते थे, ये कायदा होता है। अभी डेढ़ साल से अधिक समय हो गया हम लोगों को सरकार में आए हुए, एक बार भी हमारे पीसीसी प्रेसिडेंट साहब ने, जिनका नाम सचिन पायलट साहब है या था, एक बार भी, प्रेस कॉन्फ्रेंस तो छोड़ दीजिए, उनके जो मुझपर आरोप लगा रहे हैं लगातार, विपक्ष जो आरोप लगा रहा है, एकबार भी उन्होंने उचित नहीं समझा उन आरोपों का खंडन करें, कंडेम करें, प्रेस कॉन्फ्रेंस तो छोड़ दीजिए, स्टेटमेंट तक जारी नहीं किया, बल्कि उल्टा हमारी गवर्नमेंट के बारे में छींटाकशी की गई। जिस सरकार के वो डिप्टी सीएम साहब हैं उस सरकार में अगर कोई कमियां भी हैं खामिया हैं तो सामूहिक जिम्मेदारी होती है। उसकी बजाय उन्होंने हर बार कोई न कोई बहाना करके नीचा दिखाने के लिए, क्या बीतती है कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर, जनता क्या सोचती है कि सरकार का डिप्टी सीएम खुद ही आलोचना कर रहा है और विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब नहीं दे रहा है। हम क्या कहेंगे उस पीसीसी प्रेसिडेंट को? मुझे मालूम है कि लोगों को लगा कि निकम्मा- नाकारा शब्द कैसे काम ले लिया, मेरा उनके प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं है। स्वतः ही कई बार मन में भाव आते हैं कि एक जिम्मेदारी होती है जब हम पदों पर आते हैं, जिम्मेदारी बन जाती है, जिम्मेदारी निभाएं। हाईकमान है, शिकायत करते हैं, आज तक ये परंपरा रही है, मुख्यमंत्री के खिलाफ आप डेलिगेशन लेकर जाओ, अकेले जाओ, बात करो, बताओ कि भई मैं ये फील करता हूं। सरकार में काम नहीं हो रहे हैं, मुख्यमंत्री से हमें शिकायत है, अच्छा व्यवहार नहीं है, गवर्नेंस अच्छी नहीं चल रही है, मंत्रियों के बारे में शिकायत है, कुछ भी कीजिए कोई दिक्कत नहीं है, पार्टी के अंदर रहकर कीजिए। आप पार्टी के मुखिया होने के बाद में, आप 6-8 महीने से ये कॉन्सिपरेसी चल रही है बीजेपी के साथ मिलकर और आप सरकार को गिराने का कोई षड्यंत्र चल सकता है क्या? मेरे ख्याल से मेरी जिंदगी के अंदर मैंने कभी सुना नहीं कि पार्टी का खुद का मुखिया ही अपनी पार्टी की सरकार को गिराने के लिए षड्यंत्र में शामिल हो। तो गुस्सा होना स्वाभाविक है। व्यक्तिगत रूप से आज भी उनसे स्नेह करता हूं, हम मिलते हैं तो अच्छी हंसी-मजाक चलती है, अच्छा व्यवहार रखते हैं और महसूस होने देते ही नहीं हैं कि हमारे बीच में कोई मतभेद भी है।”

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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