अमेरिका ने शुक्रवार को सऊदी अरब, जॉर्डन और संयुक्त अरब अमीरात को 8.1 अरब डॉलर के हथियार भेजने की मंज़ूरी की आधिकारिक पुष्टि कर दी है। इस उपकरणों में एयरक्राफ्ट सपोर्ट मेंटेनेंस में खुफ़िया व निगरानी और मुनिशन्स व अन्य सप्लाई शामिल है।
राज्य सचिव माइक पोम्पिओ ने ट्वीट कर कहा कि “कांग्रेस के द्वारा प्रदान किये गए अधिकारों के तहत हम कार्य कर रहे हैं। हम एआरएम एक्सपोर्ट कंट्रोल एक्ट के तहत के तहत आधिकारिक तौर पर कांग्रेस को सूचित करते है कि हम जॉर्डन, सऊदी अरब और यूएई को 22 हथियार बेच रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि “इसमें से कई बेचने वालो उपकरणों को हमने करीब 18 महीने पहले कांग्रेस के सामने प्रस्तावित किया था लेकिन इस पर कार्रवाई विफल रही थी। अमेरिका खाड़ी और समस्त विश्व में अपने सहयोगियों के लिए विश्वसनीय सुरक्षा साझेदार है और रहेगा। यह हमारी सुरक्षा के लिए मौलिक है।”
अमेरिकी सांसद बॉब मेनेंडेज ने कहा था कि “अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का प्रशासन ने यूएस सेल्स आर्म्स लेजिस्लेशन के प्रावधान को लागू किया है जिसके तहत व्हाइट हाउस बिना कांग्रेस में प्रस्ताव पारित किये सऊदी अरब को हथियार बेच सकता है।”
कांग्रेस की मांग को खारिज करते हुए ट्रम्प ने सार्वजानिक स्तर पर कहा कि वह यमन के संघर्ष में सऊदी अरब की मदद का अंत नहीं करेंगे और इसके लिए कांग्रेस द्वारा पारित प्रस्ताव पर राष्ट्रपति ट्रम्प ने वीटो का इस्तेमाल कर दिया था। वांशिगटन अब भयानक गतिरोध में शामिल है। अमेरिका को ईरान को धमकाने के लिए मज़बूत क्षेत्रीय साझेदारो की जरुरत है।
विश्वनीय ख़ुफ़िया विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, पर्शियन गल्फ में ईरान छोटी नावों में मिसाइल भर रहा था। ट्रम्प प्रशासन ने पश्चिमी एशिया में अपनी सैन्य मौजूदगी में काफी इजाफा किया है। हाल ही में एक जंगी विमान और बी-52 बमवर्षक, एंटी मिसाइल डिफेन्स सिस्टम और एक युद्धपोत की तैनाती की मंज़ूरी दी थी।