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    सऊदी अरब की साइट

    सऊदी अरब के नेताओं के मुताबिक जीवाश्म ईंधन से निर्भरता को हटाने के लिए देश को परमाणु ऊर्जा की जरुरत है। लेकिन पहले रिएक्टर के निर्माण से खाड़ी देशों की चिंताएं बढ़ गयी है। सैटेलाइट की तस्वीरो के मुताबिक राजधानी रियाद के बाहरी इलाके में परमाणु रिएक्टर का कार्य अभी जारी है। इससे कट्टर दुश्मन ईरान के प्रभुत्व को कम करने के लिए सऊदी अरब के खड़े होने की आशंका बढ़ गयी है।

    परमाणु हथियार से सम्बन्धी चिंताओं को दूर करने के लिए विएना में स्थित इंटरनेशनल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी ने सऊदी के विभाग से अतिरिक्त सुरक्षा के उपायों पर रज़ामंदी जाहिर करने के लिए कहा है ताकि परमाणु तकनीक का इस्तेमालसिर्फ शांतिपूर्ण अनुप्रयोगों में किया जा सके।

    आईएईए में परमाणु जांच के पूर्व निदेशक रोबर्ट केली ने कहा कि “सऊदी का रिएक्टर का निर्माण कार्य एक माह के भीतर खत्म हो जायेगा।” ब्लूमबर्ग में बीत हफ्ते प्रकाशित हुई तस्वीरो की पहचान रोबर्ट ने ही की थी। गार्डियन अखबार के मुताबिक, मेरे ख्याल से उन्होंने सब कार्य खत्म कर दिया है। एक साल के बभीतर उस स्थान पर बिजली चालू हो गयी और छत भी पड़ चुकी है।

    वैज्ञानिक उद्देश्य

    विशेषज्ञों ने बताया कि जब ऐसा मुमकिन होगा तो सऊदी अरब का पहला परमाणु रिएक्टर उन्हें तुरंत प्रमुख परमाणु ताकत के तौर पर प्रदर्शित नहीं करेगा। विएना सेंटर की प्रमुख लौरा रॉकवुड यह बेहद छोटा रिएक्टर है जो विकास और अनुसंधान के लिए तैयार किया गया है।

    उन्होंने कहा कि “इस इंस्टालेशन का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण देना है और मेडिकल के क्षेत्रों में रिसर्च करना था मसलन, कैंसर के इलाज की जानकारी। सैटेलाइट की तस्वीरो का मतलब सऊदी की खुद के परमाणु प्लांट के निर्माण की इच्छा थी जो साबित हो गयी।”

    सऊदी अरब साल 2015 से इस परमाणु रिएक्टर के निर्माण की योजना बना रहा है जब उसने आईएनवीएपी के साथ समझौता किया था। यह अर्जेंटीना की सरकार समर्थित एक परमाणु कंपनी है जो अभी रियाद में रिएक्टर का निर्माण कर रही है।

    सऊदी अरब साल 2020 की दो परमाणु रिएक्टर्स के निर्माण की शुरुआत करने की इच्छा रखता है। अमेरिका, रूस, चीन, दक्षिण कोरिया की कंपनियों को रियाद ने शॉर्टलिस्ट कर लिया है और जल्द ही उनके साथ खरबो का कॉन्ट्रैक्ट्स साइन करेगी। डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन ने सऊदी अरब के साथ कार्य के लिए छह अमेरिकी कंपनियों का चयन किया है।

    अमेरिका के आलोचकों को यह भय है कि आखिरकार अमेरिका की तकनीक की मदद से सऊदी अरब परमाणु हथियार का निर्माण करेगा। बीते वर्ष सऊदी के क्राउन प्रिंस ने चेतावनी दी थी कि यदि ईरान भी परमाणु हथियारों का निर्यात करेगा तो हम भी ऐसा करेंगे।

    रॉकवुड ने कहा कि “पहली बार रियाद ने सार्वजानिक स्तर पर परमाणु हथियार के निर्माण की इच्छा व्यक्त की थी।”सऊदी अरब ने साल 1988 में परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किये थे। इसके पश्चात सऊदी ने ‘स्माल क्वांटिटी प्रोटोकॉल’ पर 2005 में हस्ताक्षर किये थे और नियमित निरिक्षण से खुद को आज़ाद कर लिया था। आईएईए ने एसक्यूपी में अतिरिक्त सुरक्षा के लिए कुछ संसोधन किये थे, जिसे सऊदी ने मानने से इंकार कर दिया था।

    उन्होंने कहा कि “एसक्यूपी पर हस्ताक्षर न करने वाला सऊदी आखिरी देश है और यह कभी समायोजित होने के लिए तैयार नहीं होगा। यह हैरतंअगेज़ है क्योंकि सऊदी अपने पडोसी मुल्क से अधिकतम पारदर्शिता की अपेक्षा रखता है। हालाँकि सऊदी को अतिरिक्त सुरक्षा के उपायों को ध्यान में रखते हुए इस पर दस्तखत कर देने चाहिए।”

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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