अमेरिका के वाईस एडमिरल जेम्स मल्लोय ने बहरीन में कहा कि “क्षेत्र में चिंताओं के बढ़ने के बावजूद ईरान ने अपनी सेना को वापस नहीं बुलाया है।” सऊदी अरब की राज्य कंपनी अरामको की दो साइट्स पर ड्रोन हमले के बाद खाड़ी में तनाव बढ़ गए थे।
इस हमले ने देश के आधे तेल उत्पादन को प्रभावित किया है और पांच प्रतिशत वैश्विक सप्लाई पर असर डाला है। वैश्विक ताकतों अमेरिका, सऊदी अरब, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने इस हवाई हमले के लिए ईरान को कसुवार ठहराया था। इस हमले की जिम्मेदारी यमन के हौथी विद्रोहियों ने ली थी।
एडमिरल ने कहा की “अमेरिका और ईरान एक सम्बन्ध राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के परमाणु सन्धि को तोड़ने के निर्णय के बाद काफी तनावपूर्ण है। राष्ट्रपति ने संधि को खत्म करने के बाद तेहरान पर सभी प्रतिबंधो को वापस थोप दिया था। इन प्रतिबंधो ने ईरान की अर्थव्यवस्था पर असर डाला था और कई निवेशो को हानि पंहुचायी थी जो ईरान की परमाणु संधि के तहत वादे किये गए थे।
उन्होंने कहा कि “ईरान दबाव की स्थिति को कम न करने के लिए अपनी सेना को वापस नहीं बुला रहा है।” इस हवाई हमले के बाद अमेरिका ने मध्यपूर्व में निगरानी को बढ़ा दिया था। वांशिगटन ने सऊदी अरब और यूएई में सैनिको की तैनाती को मंजूरी दी थी।
अमेरिका ने खाड़ी में एक रडार सिस्टम, एक पैट्रियट मिसाइल की बैटरी और करीब 200 सैनिको को भेजा था। सऊदी अरब पर सिलसिलेवार कई हवाई हमलो के बाद तनाव की स्थिति बढ़ गयी थी।