जापान, भारत और श्रीलंका की सरकार कोलोंबो बंदरगाह के कंटेनर टर्मिनल को विकसित करने के लिए राजी हो गए हैं। इस बंदरगाह ने बीआरआई के तहत चीन के विशाल निवेश को आकर्षित किया था। पूर्वी कंटेनर टर्मिनल के लिए तीनो देश आगामी महीनो में ज्ञापन पत्र पर हस्ताक्षर करेंगे। यह कोलोंबो बंदरगाह के दक्षिणी भाग में स्थित है और इसका विस्तार कर बड़े जहाजों को यहां प्रवेश करने की अनुमति दी जाएगी।
जापान के विदेश मंत्रालय ने इसके बाबत कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। जापान अपनी “मुक्त और खुले इंडो पैसिफिक रणनीति” के तहत क्षेत्र में एक अहम भूमिका निभाने की योजना पर अमल कर रहा है। चीन की महत्वकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव ने श्रीलंका में काफी निवेश किया है।
चीन ने साल 2013 में बीआरआई परियोजना का ऐलान किया था और इसकी अनुमानित लागत एक ट्रिलियन डॉलर है। इसका मकसद कारोबार में वृद्धि और आर्थिक संबंधों को सुधारने और विश्व में चीन के हितो का फैलाव है। पोर्ट सिटी कोलोंबो का निर्माण चीन कम्युनिकेशन कंस्ट्रक्शन कंपनी यानी सीसीसीसी कर रहा था। यहां मरीना, शॉपिंग मॉल, अस्पताल और 21000 अपार्टमेंट व घरो का निर्माण करना था।
विश्व की संबसे शीर्ष कंपनियों में शुमार सीसीसीसी का सालाना रेवेन्यू फ़ेडेक्स कंपनी से भी अधिक है। इस कंपनी के चीन से बाहर 100 देशों में 700 प्रोजेक्ट हैं, जिसकी लागत 100 अरब डॉलर से भी अधिक है। सीसीसीसी और उसके लाभार्थियों पर कई विवाद हुए हैं कि उनके प्रोजेक्टस को कर्ज का जाल करार देकर आलोचना की गयी थी।
दक्षिणी श्रीलंका में स्थित हबनटोटा बंदरगाह को मज़बूरन 99 वर्षों के लिए चीन के हवाले करना पड़ा था इस उदाहरण से बीआरआई में शामिल देशों के साथ गलत होने अंदाजा लगाया जा सकता है। श्रीलंका ने बंदरगाह के निर्माण के लिए भारी कर्ज उधार ले लिया जिसे वह चुकता करने में असक्षम था और कर्ज से राहत लिए बंदरगाह बीजिंग को सौंप दिया था।