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    श्रीलंका की संसद का दृश्य

    श्रीलंका में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है। श्रीलंका की संसद ने राष्ट्रपति मैत्रिअला सिरिसेना पर दबाव बनाने के लिए सांसदों की तनख्वाह और अन्य खर्चों पर रोका लगा दी है। हालांकि इस पर अभी संशय बरकरार है कि इससे राजपक्षे के समर्थकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। पूर्व राष्ट्रपति और विवादित प्रधानमंत्री महिदा राजपक्षे के समर्थक सांसदों ने संसद में आयोजित मतदान प्रक्रिया का बहिष्कार किया था।

    श्रीलंका में जारी राजनीतिक संकट को दो वर्ष से अधिक बीत चुका है। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना ने रानिल विक्रमसिंह को प्रधानमन्त्री पद से बर्खास्त कर, पूर्व राष्ट्रपति महिदा राजपक्षे को सत्ता की कमान सौंप दी थी। राजपक्षे के खिलाफ सदन में दो बार अविश्वास प्रस्ताव पारित हो चुका है लेकिन वह प्रधानमन्त्री पद से इस्तीफा देने को मंज़ूर नहीं है।

    शुक्रवार को सदन में प्रधानमन्त्री कार्यालय का बजट निरस्त करने के लिए प्रस्ताव लाया गया था। इस प्रस्ताव के वक्त महिंदा राजपक्षे के समर्थकों ने बहिष्कार किया था उअर कहा कि यह गैर कानूनी है। संसद के स्पीकर कारू जयसूर्या ने कहा कि मंत्री, उपमंत्रियों और राज्य मंत्रियों के खर्चों को निरस्त करने के प्रस्ताव को पारित कर दिया गया है।

    इस प्रस्ताव का मकसद आला अधिकारियों के बजट और आवाजहन खर्च पर रोक लगानी थी। सरकारी मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने कहा कि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि इसे अमल में कब तक लाया जायेगा क्योंकि सांसदों की नियमित खर्च देय होंगे। राजपक्षे के समर्थक सांसद ने कहा कि यह प्रस्ताव गैरकानूनी था और इसके बाबत हमने स्पीकर को जानकारी दे दी थी। उन्होंने कहा हम ऐसे किसी गैर कानूनी प्रस्ताव में शामिल नहीं होंगे।

    शुक्रवार को 122 विधायकों ने महिंदा राजपक्षे के खिलग अदालत में अर्जी दायर की है, दो बार अविश्वास प्रस्ताव के बावजूद राजपक्षे ने प्रधानमंत्री पद पर कब्ज़ा जमा रखा है। इस केस की सुनवाई 7 दिसम्बर को होगा। राजपक्षे के दल ने कहा कि राष्ट्रपति ने अविश्वास प्रस्ताव को नहीं स्वीकार हिया इसलिए उनके दल की ही सरकार रहेगी।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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