श्रीलंका के राष्ट्रपति द्वारा सत्ता से बर्खास्त किये गए रानिल विक्रमसिंघे ने बुधवार को सदन में अपने बहुमत को साबित कर दिया है। सदन में 225 सांसदों में से 117 ने रानिल विक्रमसिंघे के लिए विशवास प्रस्ताव का समर्थन किया था। संसद में बर्खास्त प्रधानमंत्री के समर्थन से राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना पर दबाव बढ़ सकता है। राष्ट्रपति ने नाटकीय अंदाज़ में 26 अक्टूबर को रानिल विक्रमसिंघे को पद से बर्खास्त कर दिया था और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को पदाभार सौंप दिया था।
राष्ट्रपति के इस कदम से देश में राजनीतिक उथल-पुथल शुरू हो गयी थी। महिंदा राजपक्षे संसद में दो बार बहुमत साबित करने में असफल रहे हैं। तमिल माइनॉरिटी पार्टी ने विशवास प्रस्ताव के समर्थन में मत दिया है, हालांकि जनता विमुक्थी पेरामुना के छह सांसद विश्वास प्रस्ताव का समर्थन करते हैं तो रानिल विक्र्म्सिंशे को सदन में पूर्ण बहुमत मिल जायेगा।
रानिल विक्रमसिंघे और महिंदा राजपक्षे दोनों प्रधानमन्त्री पद पर अपना दावा ठोकते हैं, विक्रमसिंघे के मुताबिक उनके पास सदन में बहुमत के बावजूद उन्हें प्रधानमंत्री न स्वीकारना अवैध है। महिंदा राजपक्षे के समर्थकों ने संसद का बहिष्कार जारी रखा है।
राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना ने हाल ही में कहा था कि वह मतभेदों और रानिल विक्रमसिंघे की नीतियों से नाखुश होने के कारण, उन्हें दोबारा प्रधानमंत्री पद पर स्वीकार नहीं करेंगे। संसद के अध्यक्ष कारू जयसूर्या 18 दिसम्बर तक सदन को रद्द कर दिया है। बर्खास्त प्रधानमन्त्री ने ऐलान किया कि उनके हजारो समर्थक अगले हफ्ते राजधानी की सड़कों पर उमड़ेंगे।
राष्ट्रपति को हिटलर की उपाधि
रानिल विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति को कहा कि हिटलर या अन्य तानाशाहों की तरह व्यवहार न करें। पूर्व प्रधानमन्त्री ने कहा कि संसदीय बहुमत यह निर्णय लेता है कि प्रधानमंत्री कों बनेगा, राष्ट्रपति नहीं कह सकता है कि वह क्या चाहता है। उन्होंने कहा कि सभी को संविधान का पालन करना होगा।
श्रीलंका की संसद के 122 सांसदों ने पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजक्षे को अदालत में चुनौती दी थी। जिस पर अदालत ने राजपक्षे और उनके मंत्रियों पर सुनावाई तक विभागों की जिम्मेदारी सँभालने पर रोक लगा दी थी।