म्यांमार में सेना के अत्याचार के कारण अन्य देशों में शरण लेने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों के केस की सुनवाई भारत की शीर्ष अदालत ने जनवरी 2019 तक टाल दी है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को अदालत मुल्तवी करते हुए कहा कि इस केस में अंतिम निर्णय जनवरी 2019 को लिया जायेगा।
म्यांमार में हिंसा के कारण हजारों रोहिंग्या शरणार्थियों ने भारत और बांग्लादेश में शरण ली थी। म्यांमार से भागने के बाद लगभग 40 हज़ार रोहिंग्या मुस्लिम भारत में पनाहगार हैं। संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी में 16 हज़ार रोहिंग्या मुस्लिमों का पंजीकरण है।
केंद्र सरकार ने साल 2017 में अदालत में कहा था कि रोहिंग्या मुस्लिमों की पहचान कर उन्हें वापस म्यांमार भेजा जायेगा। उन्होंने कहा कि रोहिंग्या मुस्लिम राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है क्योंकिं इस ताल्लुक कई आतंकी संगठनों के साथ है और इस्लामिक स्टेट इनका इस्तेमाल भारत में आतंकी गतिविधि को अंजाम देने के लिए इनका इस्तेमाल कर सकता है।
एक बैच ने शीर्ष अदालत में 40 हज़ार रोहिंग्या मुस्लिमों की केंद्र सरकार द्वारा लिए देश वापसी के निर्णय का विरोध करते हुए एक याचिका दायर थी। उन्होंने कहा था कि म्यांमार ने रोहिंग्या मुस्लिमों के साथ अत्याचा और हिंसक व्यवहार हुआ है, वहां का माहौल उनके लिए सुरक्षित नहीं है।
इस याचिका को दो रोहिंग्या शर्णार्थियो द्वारा दायर की थी। म्यांमार सेना की नरसंहार अभियान के बाद अगस्त 2017 में 6 लाख 50 हज़ार रोहिंग्या मुस्लिम रखाइन इलाके से भागकर पडोसी देशों में गए थे। हाल ही में म्यांमार में मुस्लिम समुदाय के निवास इलाके रखाइन में उनकी बांग्लादेश से देश वापसी के खिलाफ आन्दोलन किया जा रहा था।
लगभग 100 प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व बौद्ध संत कर रहे थे और राजधानी सिट्टवे से होकर यह प्रदर्शनकारी लाल बैनर लिए और नारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। बौद्ध संत ने कहा कि इस देश का हर एक नागरिक देश की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि इन बंगालियों को स्वीकार करने से हमारे देश और हमारा कोई फायदा नहीं होगा।
हाल ही में अमेरिका के उप राष्ट्रपति माइक पेन्स ने कहा कि आंग सान सू की को बिना किसी बहाने के रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार करने वाले सैनिकों पर कार्रवाई करनी चाहिए। माइक पेन्स ने कहा कि साथ ही सू की को एक वर्ष पूर्व गिरफ्तार किए गए दो पत्रकारों से माफी मांगनी चाहिए।