करतारपुर गलियारे के उद्धघाटन के बाद कश्मीरी पंडितों ने शारदा पीठ के श्रद्धालुओं के लिए ऐसे ही समझौते की मांग की थी। नियंत्रण रेखा पर यह महत्वपूर्ण मंदिर है। मुख्यधारा की राजनीतिक दलों पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने भी इसकी मांग की है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा था कि “उनकी सरकार कश्मीर में शारदा पीठ मंदिर को खोलने के साथ ही अन्य प्रस्तावों पर विचार कर सकती है।”
शारदा पीठ एक प्राचीन धार्मिक स्थल है। इसमे सबसे पुराना अध्ययन केंद्र है जिनकी अलग भाषा और संस्कृति है। मुज्जफराबाद से 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शारदा मंदिर में कश्मीरी श्रद्धालुओं के प्रवेश के लिए द सेव शारदा कमिटी एक अभियान चला रही है। उन्होंने कहा कि “उनके सदस्य दोनों तरफ है और उन्होंने केंद्र सरकार के समक्ष याचिका दायर की है और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को भी चिट्ठी लिखी है। अब हमने सुना है कि इमरान खान ने इसके बाबत बातचीत की है, इससे हमारी उम्मीदे काफी बढ़ गयी है।”
शारदा को कश्मीरी पंडित अपनी कुलदेवी मानते हैं। उन्होंने कहा कि “यहां तीन या चार पारम्परिक मार्ग है लेकिन हमें सिर्फ मौजूदा प्रवेश प्रणाली का इस्तेमाल करने की अनुमति चाहिए। हम मुजफ्फरबाद से होकर जाना चाहेंगे। मंदिर के आलावा यहां भारत की सबसे प्राचीनतम यूनिवर्सिटी है। जब हिन्दुवाद को खारिज किया जा रहा था और बौद्ध धर्म परवान चढ़ रहा था तब आदि शंकरचार्य ने हिन्दू धर्म को वापस पटरी पर लाने के लिए इस विश्विद्यलय का रुख किया था।”
उन्होंने दावा किया कि इस समिति के प्रयासों के बदौलत बीते जनवरी में अदालत ने इस पारम्परिक साइट के संरक्षण करने के आदेश दिए थे।”
हिंदुस्तान के विभाजन के दौरान यह मंदिर सीमा के दूसरे हिस्से में चला गया था, जिससे भारतीय तीर्थयात्रियों की पंहुच से यह दूर होता गया। आज़ादी से पूर्व लोग इस पवित्र स्थल की यात्रा किया करते थे। साल 2007 में कश्मीर के स्कॉलर अयाज़ रसूल नाज़की शारदा पीठ की यात्रा पर गए थे। उन्होंने कहा कि “मंडित का फर्श मिट्टी से ढ़का हुआ था। शारदा की भारत से यात्रा करने वाला मैं पहला व्यक्ति हूँ। कश्मीरी पंडितों के जहन में इस धार्मिक स्थल की काफी महत्वता है। शारदा एक समान जड़ों और वंश परंपरा के कारण हर एक कश्मीरी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। मेरे लौटने के बाद शारदा के दरवाजों को खोलने की मांग को तीव्रता मिल गयी थी।”
कनिष्क की हुकूमत के दौरान शारदा मध्य एशिया का सबसे बड़ा शैक्षिक संस्थान था। इसके आलावा यहां बौद्ध धर्म, इतिहास, भूगोल, संरचनात्मक विज्ञान, लॉजिक और फिलॉस्फी का ज्ञान दिया जाता था। एक समय पर शारदा में पांच हज़ार बुद्धिजीवी थे और यहां विश्व की सबसे बड़ी लाइब्रेरी भी थी। नाज़की ने कहा कि “स्थानीय लोग शारदा को अब भी यूनिवर्सिटी मानते हैं। इसका ढांचा हज़ार साल पुराना है, बड़ी ईंटो के आलावा यहां ज्यादा कुछ नहीं दिखेगा। बीते 70 वर्षों में मंदिर की जमीन पर कब्ज़ा नहीं किया गया है।”