म्यांमार से सैकड़ों रोहिंग्या मुस्लिमों की छह नावों को समुंद्री और तटीय इलाकों पर देखा गया है। रोहिंग्या मुस्लिमों से भरी नावों को निकटवर्ती इलाकों और समुद्र का आस-पास पकड़ा गया है। अमूमन यात्राएं मानसून के मौसम में रूक जाती है और दोबारा जून में शुरू हो जाती है जो खतरनाक स्थितियों के लिए उत्तरदायी होती है। हालांकि बारिश के आखिरी समय अक्टूबर तक नावें दोबारा समुन्द्र पर दिखाई देने लगती है। बंगाल की खाड़ी और अंडमान समुन्द्र में अगस्त 2017 से लगभग 200 लोग अपनी जान गवां चुके हैं, इसमें से अधिकतर म्यांमार से होकर बांग्लादेश जाने वाले यात्री होते हैं।
मंगलवार को कथित 20 रोहिंग्या मुस्लिमों को एक नाव में इंडोनेशिया के द्वीप के तट पर पकड़ा गया था। हाल ही में म्यांमार की सेना ने अंडमान समुन्द्र में 38 रोहिंग्या मुस्लिमों को पकड़ा था, जो शरण के लिए मलेशिया भाग रहे थे। रोहिंग्या मुस्लिमों को म्यांमार की पुलिस ने गिरफ्तार कर वापस रखाइन राज्ये में भेज दिया था। रखाइन में हजारों रोहिंग्या मुस्लिमों को शिविरों में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
अलबत्ता इस बात की पुष्टि नहीं हो पायी है कि द्वीप पर पकडे गए लोग बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार या रखाइन से भाग रहे थे। म्यांमार की सेना और सठिया बौद्धों के अत्याचारों के कारण लाखों रोहिंग्या मुस्लिमों ने बांग्लादेश के कॉक्स बाज़ार में शरण ली थी। संयुक्त राष्ट्र ने इस नृशंस हत्याकांड को संजातीय समूह का सफाया बताया था।
म्यांमार से नावों द्वारा भागे रहे मुस्लिमों की स्थिति रखाइन इलाके की दुर्दशा को प्रदर्शित करता है। यूएन के मुताबिक म्यांमार अभी रोहिंग्या शरणार्थियों के निवास योग्य स्थान नहीं है। रखाइन में हजारों रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए शिविर ही उनका घर हैं, जहां वे बेहद बुरे हालातों में गुजर-बसर कर रहे हैं। मुस्लिम अल्पसंख्यकों को सिमित आज़ादी ही प्राप्त है।
18 नवम्बर को म्यांमार के रखाइन के निकट सिट्ट्वे गाँव और शिविरों से नाव में सवार होकर 93 रोहिंग्या मुस्लिम मलेशिया की तरफ शरण के लिए भाग गए थे लेकिन दुर्भाग्यवश एक सप्ताह बाद ही म्यांमार की नौसेना ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था।
संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद् के प्रवक्ता ने कहा कि पिछले के मुकाबले अब म्यांमार से अधिक नावों बांग्लादेश की तरफ बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि साल 2015 के मुकाबले इस बार नावों के आगमन का पैटर्न भिन्न है। उन्होंने कहा कि मयन्मार और बांग्लादेश की सरकार को इन नावों के संरक्षण के लिए जरुरी कदम उठाने चाहिए, क्योंकि नाव छोटी है और कम ही शरणार्थियों उस पर सवार हो सकते हैं।
साल 2017 में हुए नरसंहार में 650000 रोहिंग्या मुस्लिमों ने म्यांम्मार छोड़कर अन्य देशों में पनाह ली थी। इस वक़्त सबसे अधिक रोहिंग्या मुस्लिमों ने बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में शरण ले रखी है।