आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहे वेनेज़ुएला को इस आपदा से बाहर निकालने के लिए लाए गए अमेरिकी प्रस्ताव के खिलाफ चीन और रूस ने वीटो का इस्तेमाल किया और प्रस्ताव को गिरा दिया। अमेरिका के विरोध के काऱण यह प्रस्ताव पारित होने में असफल साबित हुआ था।
अमेरिका के प्रस्ताव में वेनेज़ुएला में नए सिरे से चुनाव का आयोजन और बिना रोकटोक के मानवीय मदद मुहैया करने की मांग की गई थी। इस प्रस्ताव के समर्थन में नौ देशो ने मत दिया जबकि 15 सदस्यीय मंच में छह सदस्यों में प्रस्ताव के खिलाफ मत दिया। वही चीन और रूस ने इसके खिलाफ वीटो का इस्तेमाल किया था। इस परिषद में किसी भी प्रस्ताव को पारित करने में लिए नौ मतों की जरूरत होती है।
हालांकि प्रस्ताव को पारित करने में लिये यह भी जरूरी है कि पांच स्थायी सदस्यों में से कोई भी वीटो का इस्तेमाल न करें। यह पांच स्थायी सदस्य चीन, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस हैं। इस प्रस्ताव में शांतिपूर्ण तरीके से वेनेज़ुएला के मसले को सुलझाने की अपील की गई थी।
अधिकांश देशों ने राष्ट्रपति निकोलस मादुरो से राष्ट्रपति का पद त्यागने को कहा था और नए सिरे से चुनावों की मांग की थी। मेड्रिड, लंदन, पेरिस और अन्य यूरोपीय देश विपक्षी दल के नेता का समर्थन कर रहे हैं। हाल ही में राष्ट्रपति मादुरो को यूरोपीय संघ ने सत्ता छोड़ने का अल्टीमेटम दिया था।
निकोलस मादुरो ने कोलंबिया के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को तोड़ने का ऐलान किया है। खुद को वेनुजुएला का राष्ट्रपति घोषित करने वाले विपक्षी नेता जुआन गुइदो ने कहा कि लाखो स्वयंसेवक लोगों तक मानवीय सहायता पहुंचाने का कार्य करेंगे, इसमें दवाइयां और खाद्य पदार्थ शामिल है।
वेनुजुएला और कोलंबिया की सीमा पर कार्रवाई की तस्वीरें आयी है जिसमे सुरक्षा बल कार्यकर्ताओं पर गोले दाग़ रहे हैं। दूसरी तरफ प्रदर्शनमकर्मी चौकियों, सुरक्षाबलों और दंगविरोधियों पर पत्थर फेंक रहे हैं।
राष्ट्रपति मादुरो को सेना, रूस, चीन व दर्जनों अन्य राष्ट्रों का समर्थन प्राप्त है। वेनुजुएला आधुनिक दौर के सबसे बड़े आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। यह महंगाई ने रिकॉर्ड तोड़ एक करोड़ फीसदी उछाल मारी है। वेनुजुएला के राष्ट्रपति आर्थिक संकट के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय मदद लेने को तैयार नहीं है और उनके मुताबिक उनका देश भिखारी नहीं है। राष्ट्रपति की लापरवाही और हटी रवैये के कारण कई छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ा है। उनके खिलाफ देश में आक्रोश है, लोग उनकी गलत नीतियों और रवैये को इस आर्थिक संकट का जिम्मेदार मानते हैं।