केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने आज कहा कि अगले कुछ सालों में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने को तैयार है। उन्होंने कहा कि सरकार छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) के जरिए जीडीपी का 20 फीसदी मैन्युफैक्चरिंग (विनिर्माण) करना चाहती है।
प्रभु ने कहा कि इस आर्थिक विकास के लिए हमने एक कारगर रणनीति बना ली है, जिसके जरिए हम जीडीपी का 20 फीसदी विनिर्माण कर सकेंगे।
उन्होंने कहा, इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अगले कुछ सालों में हमारी जीडीपी 5 खरब (5 ट्रिलियन) अमेरिकी डॉलर हो जाएगी। जिसमें से 20 फीसदी यानि 1 खबर डॉलर विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) के माध्यम से आएगा। सरकार की कोशिश है कि इसका एक बड़ा हिस्सा छोटे उद्योगों की तरफ से आए।
जाहिर है वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका है, जिसका जीडीपी करीबन 19 ख़रब डॉलर है। दूसरे स्थान पर चीन है जिसका जीडीपी 11.8 ख़रब डॉलर है। जापान तीसरे स्थान पर है, जिसका जीडीपी 4.8 खरब डॉलर है, हालाँकि जापान की विकास दर काफी धीमी है। ऐसे में यदि भारत प्रभु द्वारा बताए गए 5 ख़रब के जीडीपी को पा लेता है, तो भारत आसानी से तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।
उन्होंने कहा, “भारत सरकार वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के तहत पूरी दुनिया में अपनी पहचान कायम करने का प्रयास कर रही है।” प्रभु ने कहा कि इस प्रक्रिया के तहत अफ्रीकी तथा अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग का हिस्सा बनने से हम खुश हैं। एसएमई के एक कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने कहा कि वैश्विक विकास दर तेजी से बढ़ रही है, हांलाकि यह विकास दर तीव्र हो सकती थी, यदि छोटे और मध्यम उद्योगों में ज्यादा निवेश किया जाता।
उन्होंने कहा कि 2008 की वैश्विक मंदी के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि बैंकों को फेल होने बचाने के लिए इनमें ज्यादा मात्रा में पैसे निवेश किए गए थे। लेकिन वे भूल गए कि बैंकों को विफल होने से बचाने के लिए इनमें जितनी ज्यादा मात्रा में निवेश किए गए, यदि यही धनराशि छोटे और मध्यम उद्योगों (एसएमई) में निवेश करते तो वैश्विक विकास दर कुछ और होती।
सुरेश प्रभु ने कहा कि एसएमई ग्लोबल इकॉनोमी की रीढ़ हैं। यही छोटे और मध्यम उद्योग भारत के निर्यात में काफी योगदान करते हैं और बड़े स्तर पर रोजगार सृजन करते हैं।