आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू हाल के दिनों में मोदी विरोधी विपक्षी एकता का मसीहा बन कर उभरे हैं। लेकिन पूर्व का उनका राजनितिक इतिहास उनकी इस महत्वकांक्षा की तरह में रोड़ा है।
बिहार के रामविलास पासवान की तरह नायडू अपने सहयोगियों के लिए एक भरोसेमंद साथी कभी नहीं रहे। कई बार सत्ता के रुझान को देखते हुए उनकी राजनितिक पसंद और साथी बदलते रहे। जिस तरह से उन्होंने भाजपा को गले लगाया फिर हाथ झटक दिया वो इसका ताजा उदाहरण है।
नायडू अब विपक्षी पार्टियों के बीच न्यूनतम साझा कार्यक्रम की बात कर रहे हैं लेकिन वो पूर्व में NDA के साथ के वक़्त में नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियों जैसे नोटबंदी, जीएसटी, कैशलेस अर्थव्यवस्था के बहुत बड़े समर्थक रहे हैं जबकि मौजूद वक़्त में नायडू जिन पार्टियों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं वो मोदी की हर आर्थिक नीति के घोर विरोधी रहे हैं।
नायडू पहले भी अपनी राजनितिक पसंद को लेकर अस्थिर रहे हैं। एक वक़्त वो लेफ्ट पार्टियों के साथ थे उसके बाद वाजपेयी के नेतृत्व में पहली NDA सरकार के साथ जुड़ गए। उसके बाद 2002 में गुजरात दंगो के मुद्दे पर भाजपा का साथ छोड़ दिया और ये कहा कि भाजपा के साथ गठबंधन उनकी ऐतिहासिक भूल थी। उसके बाद नायडू ने 2009 में लेफ्ट पार्टियों और TRS के साथ एक अलग मोर्चा बनाया उसके बाद 2014 में हवा के रुख को भांपते हुए भाजपा के साथ जुड़ गए।
चार साल तक भाजपा के साथ रहने के दौरान नायडू ने मोदी की नीतियों की जमकर तारीफ़ की। उसके बाद अचानक से आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा के मुद्दे पर NDA से अलग हो गये और भाजपा और मोदी के घोर आलोचक बन गए।
वैसे नायडू की अस्थिरता विपक्षी पार्टियों के लिए कोई ख़ास महत्त्व नहीं रखता क्योंकि विपक्षी पार्टियों के झुण्ड में से ज्यादातर पिछले कई वर्षों से यही करते आये हैं।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि जिस विरोधी मोर्चे की अगुआई नायडू करना चाहते हैं क्या उस मोर्चे में नायडू के नेतृत्व को अन्य क्षेत्रीय पार्टियां स्वीकार करेंगी? बंगाल में ममता बनर्जी भी इन 4 सालों में कई बार खुद के नेतृत्व में मोदी विरोधी पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश कर चुकी हैं।
तेलुगु देशम पार्टी के अलावा, तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडू में अन्नाद्रमुक और द्रमुक, कर्नाटक में दवेगौडा की जेडीएस और उत्तर प्रदेश में मायावती की बसपा ये सभी पार्टियां कई बार चुनावों में अपना पाला बदलती रहती है।
ओडिसा में नवीन पटनायक खुद को कभी किसी गठबंधन के साथ नहीं दिखाते ओडिसा में लेकिन भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद भी भाजपा और बीजद के रिश्ते तल्ख़ नहीं हुए। नितीश कुमार की अगुआई वाली जेडीयू अब भाजपा के साथ है। तमिलनाडू में भी अन्नाद्रमुक और भाजपा में करीबी है। ऐसे में भाजपा विरोधी पार्टियों को एकजुट करना और खुद मोर्चे का मसीहा बनना नायडू के लिए आसान नहीं होगा।