छत्तीसगढ़ में एक चरण का मतदान हो चूका है जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में अभी वोटिंग होनी बाकी है। इस बार चुनाव प्रचार से भाजपा के दो मुख्य नारे ‘अच्छे दिन’ और ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ गायब है।
इसका कारण ये है कि पिछले चुनावों से इतर भाजपा राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता में है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा पिछले 15 सालों से सत्ता में है तो अब अच्छे दिनों का वादा नहीं कर सकती, और दूसरा ये राज्य पिछले 15 सालों से कांग्रेस मुक्त हैं और अब कांग्रेस इन राज्यों में वापसी को तैयार है।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से इतर राजस्थान में जनता को हर 5 साल में सत्ता बदलने की आदत है और सारे ओपिनियन पोल इस बात की और इशारा कर रहे हैं कि इस बार भी यहाँ ये परंपरा कायम रहने वाली है।
ओपिनियन पोल्स के अनुसार राजस्थान में कांग्रेस आ रही है, तेलंगाना में जीत सकती है और मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में काफी नजदीकी मुकाबलों में कांग्रेस को बढ़त हासिल है।
2019 के लोकसभा से पहले कांग्रेस की कोशिश स्कोर को 4-0 करने की है और भाजपा की चिंता खुद को सफाये से बचाना है।
भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिंता ये नहीं है कि इन चुनावों में बढ़त हासिल करने के लिए कांग्रेस ने कोई ऐसा असरदार रणनीति अपनाया है जिससे भाजपा चित हो जाए, भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात है कि उनके दो मुख्यमंत्री शिवराज चौहान और वसुंधरा राजे का अपने सत्ता विरोधी लहर के बोझ से दबने वाले हैं।
राजस्थान
इनमे भी राजस्थान की हालत सबसे ज्यादा ख़राब है। 5 साल पूरा करने से पहले ही वसुंधरा राजे के खिलाफ राजस्थान में बहुत जल्दी गुस्सा भर गया और वो हद से ज्यादा अलोकप्रिय हो गई।
ढाई साल में ही वसुंधरा ने राज्य में जातीय समीकरणों की बखिया उधेड़ दी, अपने वादे पुरे नहीं कर पायीं, कमजोर प्रशासन, सारा सत्ता वसुंधरा के करीबियों के ईद गिर्द ही सिमटा रहा, एक एक कर पार्टी के नेता वसुंधरा से नाराज होकर पार्टी छोड़ जाते रहे और केंद्रीय नेतृत्व इन सब को चुपचाप देखता रहा।
सी वोटर के चुनाव पूर्व सर्वे में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट प्रतिशत का अंतर 8 से भी अधिक होने का अनुमान जताया गया है। राजे की लोकप्रियता उनसे कहीं कम अनुभवी सचिन पायलट के नीचे दब गई जबकि सचिन के पास आरएसएस जैसा कैडर बेस भी नहीं था।
राजे पिछले दो दशक से राजस्थान में भाजपा का चेहरा हैं। वो राज्य में भाजपा की सबसे लोकप्रिय और मजबूत चेहरा रही हैं। उन्होंने अपने आस पास किसी नेता को उभरने ही नहीं दिया। पार्टी में ऐसा कोई नहीं है जो 2019 में वसुंधरा की जगह के सके और जनता में वसुंधरा के प्रति गुस्से को कम कर सके।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़
अगर भाजपा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अब भी मुकाबले में बची है तो इसके लिए उसे राज्य की विपक्षी पार्टी कांग्रेस का शुक्रगुजार होना चाहिए। राज्य में शिवराज चौहान के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर तो लेकिन कांग्रेस उस लहर का फायदा नहीं उठा पा रही। शिवराज सिंह चौहान जमीन से जुड़े नेता है जिनकी अपनी लोकप्रियता है।
लेकिन 15 साल राज करने के बाद भी कांग्रेस जनता के मन में उनके लिए वैसा गुस्सा उभार नहीं पाई जैसा राजस्थान में वसुंधरा के लिए जनता के मन में है। इसने लोगों के मन में कांग्रेस की चुनाव जीतने की काबिलियत पर शक पैदा किया है।
लिहाजा राज्य में ‘शिवराज का कोई विकल्प नहीं’ फैक्टर उन्हें बचा रहा है। जिस कारण मध्य प्रदेश में नजदीकी मुकाबला फंसा हुआ है।
ठीक उसी तरह छत्तीसगढ़ में रमन सिंह भी पिछले 15 साल से सत्ता में हैं लेकिन उनकी छवि साफ़ है।
15 साल में उनपर कोई आरोप नहीं लगे और फिर उनके खिलाफ गुस्से वाले वोटों को काटने के लिए राज्य में बसपा और अजीत जोगी का गठबंधन भी मौजूद है जो त्रिकोणीय मुकाबले में एक तरह से भाजपा के मददगार साबित हो रहे हैं।
ये तींनो राज्यों में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की परीक्षा है। आखिरी वक़्त में मोदी का चुनावी दौरा छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भाजपा के पक्ष में परिणामो को झुका सकता है लेकिन राजस्थान में ऐसा होना मुश्किल है क्योंकि वहां तो ये स्लोगन फ़िज़ाओं में तैर रहे हैं ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, रानी तेरी खैर नहीं’ राजस्थान और मध्य प्रदेश के वोटरों के मन में प्रधानमंत्री पद के लिए कोई दुविधा नहीं है।
प्रधानमंत्री पद पर मोदी बड़े अंतर से राहुल से आगे हैं तो 2019 में जनता मोदी के लिए वोट कर सकती है लेकिन 2018 में वो ऐसा करेगी इस पर संशय के बादल छाए है और वो 11 दिसंबर के बाद साफ़ हो जाएगा।