श्रीलंका में नाटकीय राजनीतिक संकट का हाल ही में समापन हुआ है। श्रीलंका के वित्त अधिकारी ने स्वीकार किया कि वे चीनी बैंक से 300 करोड़ का कर्ज लेने पर विचार कर रहा है। श्रीलंका इसी वर्ष विदेश कर्ज को चुकाने की योजना बना रहा है। वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक इस योजना पर बातचीत के लिए सरकार ने तीन सदस्यीय समिति का गठन भी किया है।
वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता एमआर हुसैन ने कहा कि इस कर्ज का भुगतान तीन वर्षों में करना है। उन्होंने कहा कि श्रीलंका को इस वर्ष 5.9 अरब डॉलर के कर्ज का भुगतान करना है, और जिसका 40 प्रतिशत हमें पहले तीन वर्षों में चुकाना है। उन्होंने कहा कि एक अरब डॉलर की रकम इसी हफ्ते चुकाई गयी है।
श्रीलंका पर सबसे अधिक कर्ज चीन का है, जो उनकी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के कारण हुआ है। चीन ने श्रीलंका में भारी रकम का निवेश किया है जो समुंद्री मार्ग, हवाई मार्ग और राज्य मार्ग के निर्माण में इस्तेमाल हुआ है। चीन ने एक बंदरगाह शहर के पुनर्निर्माण में 1.5 अरब डॉलर की रकम का निवेश किया है।
चीन के कर्ज के जाल में फंसाने के लिए राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना ने पूर्ववर्ती सरकार की काफी आलोचनायें की थी। पूर्ववर्ती सरकार ने उच्च ब्याज डर पर चीन को कई निर्माण कार्य के प्रोजेक्ट सौंपे थे। चीन के आर्थिक दबाव के कारण विपक्षी दलों ने सरकार की काफी आलोचनायें की थी।
हाल ही श्रीलंका ने आर्थिक कर्ज के कारण चीन को अपना हबंटोटा बंदरगाह 99 साल के कर्ज पर दे दिया था। इस निर्णय की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना हुई थी। अमेरिका ने चीन की परियोजना को कर्ज का मकडजाल करार दिया था। भारत भी इस परियोजना का विरोध करता रहा है, खासकर सीपीईसी परियोजना का भारत मुखर आलोचक रहा है। यह प्रोजेक्ट पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरती है और भारत इसे अपनी संप्रभुता पर खतरा मानता है।