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    नरेंद्र मोदी

    लखनऊ/वाराणसी, 29 अप्रैल (आईएएनएस)| वाराणसी संसदीय सीट से विपक्षी दलों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी खड़ा न कर लगता है एक बार फिर उनकी जीत आसान कर दी है, एक तरह से मोदी को वाक ओवर दे दिया है। हालांकि सपा और कांग्रेस दोनों इससे इनकार करती हैं, और उनका कहना है कि मोदी के खिलाफ उनके प्रत्याशी मजबूत हैं।

    कांग्रेस ने अपने पुराने प्रत्याशी अजय राय को मोदी के मुकाबले खड़ा किया है, जबकि सपा-बसपा गठबंधन की तरफ से सपा के टिकट पर शालिनी यादव मैदान में हैं। एक समय कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की चर्चा थी, लेकिन अजय राय की उम्मीदवारी घोषित होने के साथ इस चर्चा पर विराम लग गया है।

    ये वही अजय राय हैं, जो 2014 में मोदी के खिलाफ अपनी जमानत जब्त करा चुके हैं। वह तीसरे स्थान पर रहे थे। उसके बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी वह पिंडरा सीट पर तीसरे स्थान पर रहे थे। लगातार दो चुनाव हार चुके राय को भी कांग्रेस मजबूत उम्मीदवार बता रही है।

    कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता उमाशंकर पाण्डेय कहते हैं, “हम पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। हमारे प्रत्याशी अजय राय पांच बार के विधायक हैं। वह बनारस की मिट्टी में जन्मे हैं। वह जनता के पसंदीदा उम्मीदवार हैं। इस बार का चुनाव 2014 जैसा नहीं है। मोदी जी ने पांच सालों में बनारस के लिए कुछ काम नहीं किया है। जनता उन्हें नकार देगी। परिणाम चौंकाने वाले होंगे।”

    सपा-बसपा गठबंधन की उम्मीदवार शालिनी यादव के परिवार का कांग्रेस से पुराना रिश्ता रहा है। वह कांग्रेस के दिवंगत नेता और राज्यसभा के पूर्व उपसभापति श्यामलाल यादव की पुत्रवधू हैं। बनारस में मेयर के चुनाव में उन्हें मात्र 1़ 13 लाख वोट मिले थे, और वह चुनाव हार गई थीं।

    लेकिन सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, “हमारी पार्टी ने वाराणसी से बहुत मजबूत प्रत्याशी उतारा है। वह पूरी ताकत से चुनाव लड़ रही हैं। वह कड़ी टक्कर भी दे रही हैं। वाक ओवर वाली बात पूरी तरह गलत है। देश को नया प्रधानमंत्री मिलने जा रहा है।”

    दोनों दल अब चाहे जो कहें, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस बार वाराणसी का चुनाव चर्चा से बाहर हो गया है। 2014 में मोदी के खिलाफ आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल चुनाव हार जरूर गए थे, लेकिन उन्होंने कड़ी चुनौती पेश की थी। केजरीवाल के कारण देश-दुनिया की नजर 2014 में वाराणसी सीट पर आ टिकी थी। हालांकि केजरीवाल को दो लाख से कुछ अधिक वोटों से ही संतोष करना पड़ा था, और नरेंद्र मोदी 5 लाख 81 हजार वोट पाकर विजयी हुए थे। कांग्रेस के अजय राय को लगभग 76 हजार वोट मिले थे। सपा के कैलाश चौरसिया को 45,291 और बसपा के विजय प्रकाश जायसवाल को 60,़579 वोट हासिल हुए थे।

    नरेंद्र मोदी 2014 के चुनाव में एक रणनीति के तहत वाराणसी गए थे, और वह अपने मकसद में सफल भी हुए थे। इस बार भी उनका मकसद पुराना ही है। ऐसा समझा जा रहा था कि विपक्ष मोदी को घेरने के लिए कोई साझा और मजबूत उम्मीदवार उतारेगा। वाराणसी से विपक्षी उम्मीदवारों की घोषणा में देरी से भी इस संभावना को बल मिला था। प्रियंका की उम्मीदवारी की चर्चा चल पड़ी थी। लोगों में उत्सुकता बढ़ी थी। लेकिन पहले शालिनी यादव और फिर अजय राय की उम्मीदवारी की घोषणा के साथ ही वाराणसी सीट को लेकर लोगों की उत्सुकता ठंढी पड़ गई।

    वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं, “बनारस, लखनऊ सहित कुछ ऐसी सीटें थीं, जहां कांग्रेस और सपा-बसपा की तरफ से मजबूत चेहरा उतारने की रणनीति बनी थी। परंतु आपसी मतभेद के चलते ऐसा नहीं हो सका। जिस दिन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ से पर्चा भरा, उसी दिन सपा-बसपा और कांग्रेस ने अपने-अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए। यही स्थित बनारस में भी देखने को मिली। विपक्ष एकजुट होकर बनारस में मजबूत प्रत्याशी उतारता तो इसका बड़ा संदेश जाता।”

    उन्होंने आईएएनएस से कहा, “2014 में मोदी के खिलाफ अरविंद केजरीवाल लड़ने आए थे। वह भले ही चुनाव हार गए, लेकिन केजरीवाल के कारण वाराणसी का चुनाव दुनिया भर में चर्चा का विषय रहा था।”

    एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक प्रेमशंकर मिश्र के अनुसार, “सपा-बसपा गठबन्धन के पास मजबूत चेहरे का अभाव था। वर्ष 2009 के चुनाव में मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ मुख्तार अंसारी ने कड़ी टक्कर जरूर दी थी, लेकिन इस बार गठबन्धन शायद ऐसा जोखिम नहीं लेना चाहता था, जिससे धुव्रीकरण होता। कांग्रेस की तरफ से प्रियंका के चुनाव लड़ने की चर्चा भले हो रही थी, लेकिन कांग्रेस अपने ट्रम्प कार्ड को खराब नहीं करना चाहती थी। अगर प्रियंका चुनाव हारतीं तो गांधी परिवार की राजनीति खत्म हो जाती।”

    उन्होंने कहा, “हां, कांग्रेस ने अजय राय के अलावा वाराणसी में कोई मजबूत प्रत्याशी दिया होता तो लड़ाई दिलचस्प होती, और आसपास की सीटों पर भी इसका प्रभाव दिखता। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।”

    वाराणसी में अंतिम चरण के तहत 19 मई को मतदान होगा, और मतगणना 23 मई को होगी।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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