कोलकाता, 25 जुलाई (आईएएनएस)| हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में मुख्य मुकाबला सिर्फ दो दलों- तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच केंद्रित होकर रह गया था। मगर अब लगातार तीन दशकों तक राज्य में शासन करने वाले वाम मोर्चा कांग्रेस की मदद से खुद को दोबारा सशक्त करने की कोशिश कर रहा है।
लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद 2011 में टीएमसी से हारने के बाद वाम मोर्चा अब राज्य की राजनीति में क्षेत्रीय दल बनकर रह गया है, जहां ममता बनर्जी की राज्य में पकड़ अभी भी मजबूत है और इस भाजपा राज्य में अपने पांव जमाने के लिए बुरी तरह प्रयासरत है।
हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में वाम मोर्चे को प्रदेश की 42 सीटों में से एक भी सीट नहीं मिली और उसकी वोट हिस्सेदारी सिर्फ सात प्रतिशत रही।
इस स्थिति में वाम दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी संभावनाएं बढ़ाने के लिए कांग्रेस के साथ काम कर रहा है। वहीं कांग्रेस भी राज्य में अपनी स्थिति बेहतर करने बेसब्री से प्रयासरत है।
पहले कट्टर प्रतिद्वंद्वी रहे दोनों दलों को उम्मीद है कि उनके संयुक्त और सहयोगी प्रयासों से वे विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी गणित को समझ लेंगे।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के प्रदेश सचिव सूर्यकांत मिश्रा ने राज्य में भाजपा-विरोधी और टीएमसी विरोधी ताकतों का एक समग्र मंच बनाने का आवाह्न किया है।
माकपा की अगुआई में वाम मोर्चा ने 2016 में पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ सीट बंटवारा किया था लेकिन सत्तारूढ़ टीएमसी को 294 में से 211 सीटें लाने से नहीं रोक पाया था। टीएमसी को 44.91 प्रतिशत वोट मिले थे।
कांग्रेस ने 2016 में कुल सीटों की लगभग एक-तिहाई सीटों पर चुनाव लड़ा था और शेष सीटों पर माकपा और वाम दल की अन्य पार्टियों ने चुनाव लड़ा था। जहां वाम दलों ने मिलकर 32 सीटों पर जीत दर्ज की, वहीं कांग्रेस को 44 सीटों पर जीत मिली।