राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार ने विधानसभा में एक अध्यादेश पेश किया है। इसके मुताबिक कोई भी व्यक्ति सरकार की मंज़ूरी के बिना नेताओ और अफसरों के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं करा सकता है। इसके अलावा जब तक इस मामले में एफआईआर दर्ज नहीं हो जाती, प्रेस में इसकी रिपोर्ट भी नहीं की जा सकेगी। ऐसे मामले में किसी का नाम लेने पर लगभग 2 साल की सजा का भी प्रावधान रखा गया है, हालंकि सरकार के इस विधेयक का विपक्ष से लेकर मीडिया तक सभी ने विरोध किया है।
क्या है पूरा अध्यादेश
वसुंधरा सरकार के लाये इस कानून के अनुसार बिना सरकार की इजाज़त के किसी पद पर कार्यान्वित व्यक्ति चाहे वह पंच, सरपंच, विधायक, सांसद या अफसर-कर्मचारी हो, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है। इसी विधेयक में आगे मीडिया की आज़ादी पर भी बंदिश लगाई गयी है, इसके अनुसार बिना इज़ाज़त के मीडिया के खबर छापने पर भी पाबंदी होगी। राजे सरकार ने इस विधेयक में एक ओर नया कानून लाने की बात कही है जिसके अनुसार लोकसेवक के खिलाफ कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं करा सकता है, खुद पुलिस भी एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती है।
इतना ही नहीं इसके अलावा लोकसेवक के खिलाफ कोई कोर्ट नहीं जा सकता है, और ना ही कोई जज किसी लोकसेवक के खिलाफ कोई आदेश ला सकता है। साथ ही मीडिया भी किसी लोकसेवक के खिलाफ बिना सरकार की इजाजत के आरोप लगा सकती है।
इस अध्यादेश के अनुसार किसी भी लोकसेवक की शिकायत करने से पहले सरकार की इजाजत लेनी होगी। 180 दिन के अंदर सरकार का एक सक्षम अधिकारी के समक्ष शिकायत प्रस्तुत करनी होगी जिसकी इजाज़त वह अधिकारी देगा, ओर 180 दिन के अंदर सक्षम नहीं पाया तो खुद ही इज़ाज़त समझा जायेगा।
इस कानून का उल्लंघन करने पर सरकार ने इस विधेयक के साथ सजा का प्रावधान भी रखा है। सरकार के इस प्रावधान के अनुसार इस कानून का उल्लंघन करने वाले दंड के भागी होंगे उन्हें 2 साल तक की सजा का प्रावधान लाया गया है।
कांग्रेस का विरोध
राजस्थान में वसुंधरा सरकार द्वारा लाये गए इस विधेयक का विपक्षी दल कांग्रेस ने जोरदार विरोध किया है। कांग्रेस ने इसे काला कानून बताया है। इस बिल का विरोध करते हुए कांग्रेस ने विधानसभा सदन का वाकआउट किया, वही कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सचिन पायलट की अगुवाई में कांग्रेस ने सदन के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। स्थानीय प्रशाशन ने इस विरोध मार्च की इज़ाज़त नहीं दी तो कांग्रेस के लोगो ने गिरफ्तारियां दी। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने राजस्थान सरकार द्वारा लाये गए इस कानून को काला कानून बताया और कहा है कि जब तक यह बिल वापस नहीं लिया जाता तब तक हम चैन से नहीं बैठेंगे।
पायलट ने आगे कहा कि यह काला कानून है, इसके जरिये पिछले चार सालो में हुए भ्रष्टाचारों को छुपाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने आगे कहा कि एक ओर मोदीजी कहते है की ना खाऊंगा ओर ना खाने दूंगा, दूसरी ओर उन्ही की मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार के लिए दरवाजे खोल दिए है, कांग्रेस इसे लागु होने नहीं देगी।
भाजपा में भी विरोध
राजस्थान में बीजेपी सरकार के लोक सेवको को सरंक्षण देने वाले क्रिमिनल लॉ में संशोधन बिल को सदन में पेश किया गया है, जिसका विपक्ष के अलावा खुद के पार्टी के विधायकों ने भी खुलकर विरोध कर दिया है। बीजेपी के दो विधायक नरपत सिंह राजवी ओर घनश्याम तिवाड़ी ने इस बिल का विरोध किया है। नरपत सिंह और घनश्याम तिवाड़ी ने कहा है कि ये बिल बीजेपी के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के विरोध में लाया गया बिल है, इसलिए हम इसका समर्थन नहीं करेंगे। राजवी ने कहा है कि ये बिलकुल ही गलत कानून है इससे भ्रष्टाचार खत्म होने की जगह और भ्रष्टाचार बढ़ेगा।
बीजेपी नेता घनश्याम तिवाड़ी ने कहा है कि यह हमारी पार्टी के सिद्धांतो के खिलाफ है। हमने इमरजेंसी का विरोध इसलिए नहीं किया था कि बीजेपी सत्ता में आकर ऐसे कानून का निर्माण करे। उन्होंने आगे कहा कि अध्यादेश को हाईकोर्ट में चुनौती मिली है और याचिका में कहा गया है कि इसके कारण समाज में एक बड़े हिस्से को इससे अपराध करने का लाइसेंस मिल सकता है।
हाईकोर्ट पहुंचा विवाद
राजस्थान के लाये हुए विवादित अध्यादेश की लड़ाई अब राजस्थान हाईकोर्ट पहुँच गयी है। सोमवार को इस अध्यादेश को एक वकील ने राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वकील ए.के. जैन ने वसुंधरा सरकार के इस अध्यादेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
मीडिया ने भी किया विरोध
राजे सरकार द्वारा लाये इस विवादित बिल को लेकर एडिटर्स गिल्ड ने भी विरोध किया है और कहा है कि यह बिल वसुंधरा सरकार द्वारा मीडिया को परेशान करने के लिए लाया गया है। साथ ही गिल्ड ने राजस्थान सरकार से इस हानिकारक अध्यादेश को वापस लेने की मांग की है, और कहा है कि ऐसे बिल को वापस लिया जाए जो लोकसेवको,न्यायधिशो और नेताओ के खिलाफ आरोपों पर उसकी मंज़ूरी के बिना मीडिया को रिपोर्टिंग करने से रोकता है। एडिटर्स गिल्ड ने अपने बयान में कहा है कि प्रत्यक्ष रूप से यह अध्यादेश न्यायपालिका और नौकरशाही को झूठे एफआईआर से बचाने के लिए लाया गया है, लेकिन इसका असली परिपेक्ष मीडिया को तंग करना और नौकरशाही में हो रहे गलत कामो को छुपाना है, यह सविधान द्वारा दी गयी मीडिया की आज़ादी पर एक घातक हमला है।
एडिटर्स गिल्ड ने आगे वसुंधरा सरकार को देते हुए कहा कि राज्य सरकार इस अध्यादेश को तुरंत वापस ले और इसे कानून बनाने से परहेज करे। उन्होंने आगे कहा कि सरकार फर्जी और झूठे मुकदमो के खिलाफ सख्त कदम उठाने की बजाय सरकार ऐसा बिल लायी है जो संदेशवाहक(मीडिया) को चुप करना चाहता है। आगे बयान में एडिटर्स गिल्ड ने कहा की हम हमेशा अदालतों में दायर एफआईआर की सही, संतुलित और जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग की वकालत करते है।
सरकार की सफाई
इस पुरे मामले में विवाद बढ़ते देखकर राज्य सरकार ने सफाई देते हुए कहा है कि यह अध्यादेश भ्र्ष्टाचारियो को बचाने के लिए नहीं लाया गया है इसका मुख्य उद्देश्य दुर्भावना की वजह से होने वाली फर्जी मुकदमेबाज़ी को रोकना है।
बीजेपी सरकार ने अपने सभी नेताओ को इस अध्यादेश के बचाव में लगा दिया है, जिसमे नेताओ ने इस अध्यादेश का बचाव करते हुए कहा है कि 2013 से 2017 के बीच 156(3) के तहत हुए 73% केस पुलिस ने बंद कर दिए है, ये केस गलत पाए गए है दुर्भावना के मक़सद से केस दायर किये गए है। आगे सफाई देते हुए राज्य सरकार ने कहा कि साढ़े तीन साल में भ्र्ष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने कुल 1158 केस दायर किये, भर्ष्टाचार निरोधक 818 कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के तहत पकड़ा था।
राहुल गाँधी का तंज
राजस्थान सरकार द्वारा लाये गए इस विधेयक को लेकर प्रदेश से लेकर देश की राजनीती गरमा गयी है इस विवादित बिल को लेकर विपक्षी दलों ने राजे को खासा घेर लिया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष जो की आजकल अपनी नई राजनीती को लेकर उभर रहे है उन्होंने इस मामले पर ट्वीट करते हुए कहा है कि मैडम चीफ मिनिस्टर, हम 21वीं सदी में रह रहे है। यह साल 2017 है 1817 नहीं। इस ट्वीट के साथ उन्होंने अध्यादेश की खबर का लिंक भी शेयर किया था।
Madam Chief Minister, with all humility we are in the 21'st century. It's 2017, not 1817. https://t.co/ezPfca2NPS
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 22, 2017
इस ट्वीट में उन्होंने सन 1817 को लेकर ट्वीट किया जो एक तरह से वसुंधरा राजे पर व्यंग्य माना जा रहा है क्योकि 1816 में ग्वालियर के राजा दौलतराव सिंधिया अंग्रेजो से पिंडारियो के दमन को लेकर मदद मांगी थी, जिसमे 1817 में दौलतराव सिंधिया और अंग्रेजो के बीच पूर्ण सहयोग का दावा करते हुए ग्वालियर संधि हुई थी। राहुल गाँधी अपने राजनीती में आजकल काफी आक्रामक रूप से बीजेपी और आरएसएस पर हमला कर रहे है, इससे पहले भी उन्होंने सरदार पटेल के पत्रों का हवाला देते हुए आरएसएस पर जम कर हमला बोला था।
महाराष्ट्र की तर्ज पर लाये है यह बिल : कटारिया
इस बिल को सदन में राज्य के गृहमंत्री गुलाबचंद्र कटारिया ने पेश किया और जब उनसे इस अध्यादेश पर हमलो का सामना करना पड़ा तो उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि यह बिल महाराष्ट्र में लाये गए बिल की तर्ज पर है, लेकिन गृहमंत्री इस मामले में पूरी बात बताना भूल गए उन्होंने यह नहीं बताया कि जो महराष्ट्र में बिल पेश किया गया है उसमे मीडिया की आज़ादी को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है वही राजस्थान सरकार ने इस मामले में 2 साल की सजा का प्रावधान रखा है।
बिल पर पुनर्विचार
सरकार द्वारा लाये गए इस अध्यादेश के कारण बीजेपी को कई हमलो का सामना करना पड़ रहा है, इसी कारण राजे ने अध्यादेश की समीक्षा करने का निर्णय लिया है। सब तरफ से हो रही आलोचना के बाद राजे सरकार ने इस निर्णय पर समीक्षा करने की सोची है। बीजेपी को इस बिल को पेश करने में विपक्ष के अलावा खुद के पार्टी के विधायकों का भी विरोध झेलना पड़ा है, इसी कारण राजे सरकार इस बिल पर फिर से एक बार विचार करने की सोच रही है