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    कुआं

    लखनऊ, 7 जुलाई (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश की राजधानी में भूजल की स्थित चिंताजनक हो चली है। जलदोहन के कारण प्राकृतिक भूजल भंडारों को भारी क्षति पहुंची है। सुकून की बात यह है कि यहां के रिद्धि किशोर गौड़ जलसंचय के माध्यम से कुओं और जलस्रोतों को जिंदा करने में लगे हैं।

    गोमती नदी की साफ -सफाई हो या उसमें गिरते गंदे नालों पर रोक की बात, लगातार सूख रहे कुओं का मुद्दा हो या फिर बेतरतीब खुद रहे बोरिंग पंप हो या समर्सिबल पम्प। रिद्धि लगातार इसके लिए संघर्ष करते रहे हैं। वह न किसी से चंदा लेते हैं, न ही प्रशासनिक मदद। बस, जनता के श्रम और सहयोग से मिशन को मुकाम तक पहुंचाने में जुटे हैं।

    रिद्धि अपने पिता राम किशोर गौड़ की प्रेरणा से जल व पर्यावरण संरक्षण से जुड़े हुए हैं। 30 वर्ष की आयु में साथियों के सहयोग से गोमती नदी के संरक्षण की मुहिम शुरू की। कुड़िया घाट की साफ-सफाई के साथ रोजाना शाम को गोमा की आरती शुरू कराई। जल संरक्षण के लिए पुराने लखनऊ में संदोहन देवी कुंड व कुओं का जीर्णोद्धार कराया। रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं, साथ ही भूजलस्रोतों को पुनर्जीवित भी कराते हैं।

    गौड़ बताते हैं कि पूरे लखनऊ के मंदिरों में कुएं और आसपास के हैंडपंप और बोरिंग फेल हो चुके हैं। मंदिर में स्थित कुओं रिचार्ज करने के लिए तीन फीट का गड्ढा खोदकर उसकी तली से एक पाइप कुएं के अंदर डाल दिया। कुएं के ऊपर एक जाली लगाई जाती है। उसमें कोयला, गिट्टी और मौरंग होती है।

    पानी उससे छनकर गड्ढे के अंदर जाता है। नलियों के निकास के आगे एक पत्थर लगा देते हैं, जिससे पानी बाहर न जा पाए। इस विधि से मंदिरों के कुएं रिचार्ज कराए जा रहा है। मंदिर के कुएं में जो नाली का पानी जाता है, वह दूषित नहीं होता है। ऐसे में वह कुआं दूषित नहीं माना जाता है।

    गौड़ अभी तक कई मंदिरों के कुओं को रिचार्ज कर चुके हैं। कई बोरिंग को ठीक कराया जा चुका है।

    उन्होंने बताया कि बहुत तेजी से विकसित हो रही कलोनी में बहुमंजिला इमारतों की बाढ़ सी आ गई है। इसके चलते पेयजल आपूर्ति के लिए बड़ी संख्या में नलकूपों का निर्माण किया गया है। नलकूपों से हर दिन बड़ी मात्रा में भूजल का दोहन किया जा रहा है।

    रिद्धि किशोर ने बताया कि अस्सी-नब्बे के दशक में शहर में भूजल 10 मीटर की गहराई तक मिल जाता था। लेकिन, निरंकुश दोहन के साथ कंक्रीट में तब्दील होते शहर के कई इलाकों में भूजल स्तर आज 50 मीटर की गहराई तक पहुंच गया है। शहर के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 45 फीसद भाग में भूजल स्तर की गहराई 30 से 50 मीटर तक पहुंच चुकी है, जो भू-पर्यावरणीय खतरे का संकेत है।

    उन्होंने बताया कि जितनी लापरवाही से लोग पानी को खर्च कर रहे हैं, वो आने वाली पीढ़ियों के लिए शुभ संकेत नहीं है। गोमती की साफ -सफाई के नाम पर आरबों रुपये का बजट हर सरकारों में पास जरूर होता है, कुछ मौकों पर नेता मंत्री दिया जलाकर थोड़ी देर अफसोस जरूर करते हैं। बारिश के बाद सारा पानी बहकर बर्बाद हो जाता है। लेकिन क्या जिस तरह अपार्टमेंट बनने के साथ ही पार्किं ग जरूरी हो जाता तो क्या अपार्टमेंट बनवाने वालों की जिम्मेदारी नहीं बनती कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को जरूरी करा दिया जाए।

    उन्होंने कहा कि भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। सरकारी विभागों को वर्षा जल संचयन पर ठोस नीति बनाकर काम करना चाहिए। बड़े प्लटों में इसे लागू कराएं, तभी बिजली, पानी का कनेक्शन दिया जाए।

    गौड़ कहते हैं कि हर जिम्मेदारी सरकारों की नहीं होती लोगों में भी इच्छाशक्ति की बहुत कमी है। आज लोग सेलिब्रिटी से मिलने हर काम को छोड़कर पहुच जाते हैं, लेकिन जल संचयन के लिए लोगों के पास कभी मौका नहीं होता। पूर्जा-अर्चना के बाद लोग बहुत बेफ्रिक से पूजा सामग्री नदियों में डालकर प्रदूषित कर रहे हैं। लोगों इसके प्रति जागरूक रहने की जरूरत है।

    उन्होंने कहा कि गोमती में 27 नाले गिर रहे हैं, जो प्रदूषण का प्रमुख कारण हैं। इन्हें बंद कराया जाना चाहिए। नदी की स्वच्छता के लिए सरकारी स्तर पर ठोस प्रयास हो। जन सहयोग से अभियान चलाया जाए। भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए नदी, कुआं, तलहटी और तालाबों में जल संचयन के प्रयास हों। गांवों में मनरेगा से तालाब खुदवाए जाते हैं, लेकिन अगले वर्ष वजूद मिट जाता है। इसके लिए ठोस योजना बने। पर्यावरण संरक्षण के लिए हरित पट्टियां विकसित की जाएं। पेड़ों की कटान पर रोकथाम लगे।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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