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    गुरूवार को लोक सभा ने उपभोक्ता संरक्षण बिल, 2018 (Consumer Protection Bill 2018) पारित किया जो ग्राहक अधिकारों एवं माल या सेवा की कमी के सन्दर्भ में की गयी शिकायतों का निवारण के नियमों को लागू करता है। यह बिल 1986 वाले अधिनियम की जगह लेगा। बता दे की 1986 अधिनियम उपयोगकर्ताओं को दोषपूर्ण उत्पादों या सेवाओं में कमी के लिए मुआवजों की मांग करने की अनुमति देता है।

    उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान का बयान :

    इस बिल को पारित करने के लिए केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि यह बिल गैर विवादास्पद था और उपभोक्ताओं के हित में था एवं पक्षपातपूर्ण राजनीति से ऊपर था। बिल के अनुसार, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता शिकायतों का निर्णय लेने के लिए उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग स्थापित किए जाएंगे और जिला और राज्य आयोगों की अपील अगले स्तर पर और सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय आयोग से सुनाई जाएगी।

    उपभोक्ता संरक्षण बिल, 2018 के कुछ विशेष प्रावधान

    1. यह बिल जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग को उपभोक्ता की शिकायतों पर निर्णय लेने के लिए स्थापित करने का प्रावधान करता है।
    2. यह बिल केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अधिकारियों को उपभोक्ता अधिकारों को बढ़ावा देने, उनका संरक्षण करने एवम उनको सही तरीके से लागू करने की शक्ति देता है।
    3. यदि किसी वस्तु में कमी की वजह से उपभोक्ता को किसी प्रकार की क्षति पहुँचती है तो एक उपभोक्ता उस वस्तु के निर्माता, विक्रेता या सेवा प्रदाता से उत्पाद देयता की मांग कर सकता है।
    4. यह बिल अनुचित एवं प्रतिबंधित व्यापार प्रथाओं को भी परिभाषित करता है।
    5. अब उपभोक्ता शिकायतों को उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की सहायता से इलेक्ट्रानिकली भी दायर करवा सकते हैं।

    विभिन्न स्तरों पर होंगे आयोग

    उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग देश में विभिन्न स्तरों पर खोले जायेंगे। ये जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर क्रमशः 1 करोड़, 1 से 10 करोड़ एवं 10 करोड़ से ज्यादा के आर्थिक क्षेत्राधिकार के साथ खोले जायेंगे।

    • जिला स्तरीय आयोग 1 करोड़ तक की शिकायत सुनेगा एवं इन आयोगों में किन्हीं भी अनुबंधों गलत ठहराने की शक्ति होगी।

    By विकास सिंह

    विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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