नई दिल्ली, 8 मई (आईएएनएस)| सचिन तेंदलुकर और वी.वी.एस. लक्ष्मण 14 मई को कथित ‘आसानी से प्रभावित होने वाले’ (ट्रैक्टेबल) हितों के टकराव के मुद्दे पर बीसीसीआई लोकपाल डी. के. जैन के सामने पेश होंगे। लेकिन, जिस बात पर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के कई अधिकारियों की त्योरियां चढ़ीं हैं वह सीईओ राहुल जौहरी का लोकपाल के सामने बोर्ड का प्रतिनिधित्व करना है।
बीसीसीआई कार्यकारियों का कहना है चूंकि इस मामले में बोर्ड की एक उप-समिति, क्रिकेट सलाहकार समिति (सीएसी) शामिल है और सीईओ ही बोर्ड का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए जौहरी द्वारा बोर्ड का प्रतिनिधित्व उचित है। लेकिन बोर्ड के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों कहा कि जौहरी कैसे लोकपाल के सामने जा सकते हैं जबकि सर्वोच्च अदालत जुलाई में उनके खिलाफ यौन शोषण के मामले की सुनवाई करने वाली है।
एक अधिकारी ने कहा, “बीसीसीआई की तरफ से हर बार जौहरी को लोकपाल के सामने जाने की क्या जरूरत है? यह बात ध्यान में रखनी होगी कि उनके खिलाफ यौन शोषण का मामले पर अभी फैसला आना है और इसे लेकर सीओए में भी गतिरोध है। सीओए इस मसले को सुलझा नहीं सकती। सिर्फ लोकपाल ही इस मुद्दे पर फैसला ले सकते हैं सिवाय उस स्थिति के जिसमें सर्वोच्च न्यायालय एक स्वतंत्र जांच का अदेश नहीं दे दे।”
अधिकारी के मुताबिक, “जौहरी का लोकपाल के सामने बीसीसीआई के प्रतिनिध के तौर पर जाना नैतिक तौर पर गलत है। सर्वोच्च अदालत में भी इस संबंध में याचिका की सुनवाई होनी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चीजें बद से बदतर होती जा रही हैं।”
अधिकारी को एक और बीसीसीआई अधिकारी का समर्थन मिला है जिन्होंने कहा है कि स्थिति ऐसी हो गई है कि जब जौहरी का मामला लोकपाल के सामने आएगा तो खुद वह फायदे की स्थिति में हो सकते हैं।
उन्होंने कहा, “इस शक में दम है। सीईओ की खुद की स्थिति साफ नहीं है और उनका लोकपाल के सामने बीसीसीआई का प्रतिनिधित्व करना अपने आप में पहचान को बढ़ावा देना है। लोकपाल के सामने संबंधित कागजात भेज देना ही काफी था और अगर मैं सही हूं तो यह मुद्दा नई दिल्ली में हुई सीओए की बैठक में भी उठाया गया था।”