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    लीबिया की राजधानी में एलएनए

    लीबिया में जारी संघर्ष के बाबत बातचीत के लिए बीते महीने पश्चिमी राजदूतों ने तीन घटों तक लिबयन कमांडर खलीफा हफ्तार के साथ मुलाकात की ताकि उन्हें त्रिपोली में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त सरकार के लिए आक्रमक रवैया अपनाने से रोका जा सके।

    इस मामले से सम्बंधित दो सूत्रों के मुताबिक, राजनयिकों ने हफ्तार से देश को गृह युद्ध में न धकेलने का आग्रह किया था और कहा कि यदि वह राजनीतिक सुलह के लिए प्रतिबद्ध हो जाते हैं तो वह देश के नागरिको के सफलतम नेता बन सकते हैं। इस पर हफ्तार ने कहा कि वह प्रधानमंत्री के साथ बातचीत के लिए तैयार है लेकिन अगर सत्ता साझा करने की कोई डील नहीं हुई तो वह आक्रमण कर सकता है।

    इसके दो हफ्ते बाद, 4 अप्रैल को हफ्तार ने लिबयन नेशनल आर्मी के सैनिकों को राजधानी की तराव कूच करने के लिए भेजा था। इस दौरान यूएन के अध्यक्ष एन्टोनियो गुएटरेस लीबिया में मौजूद थे।

    फ्रांस, ब्रिटेन, इटली जैसी वैश्विक ताकतों के लिए साल 2011 में गद्दाफी के खात्मे के बाद लीबिया में हफ्तार का सैन्य अभियान सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। उन्होंने 75 वर्षीय हफ्तार को राजनीतिक समझौता करने को मानाने के लिए कई बार प्रयास किया है ताकि तेल और गैस उत्पादक देश में स्थिरता आ जाए। यह संघर्ष इस्लामी चरमपंथियों का के उत्पादन की तरहकार्य कर रहा है।

    हफ्तार के समर्थक मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात भी इस तत्काल कार्रवाई को देखकर हैरान हो गए। जनरल को सहायता मुहैया करने वाले फ्रांस के कूटनीतिक सूत्र ने कहा कि इस आक्रमक कार्रवाई के पूर्व कोई चेतावनी नहीं दी गयी थी। यूएन के अधिकारी ने कहा कि  जनरल सबकी झांसा दे रहा है और यह सब सिर्फ मानसिक खेल है।

    हफ्तार से मुलाकात करने वाले राजनयिकों ने हफ्तार के कट्टर बयान में कहा कि, लीबिया लोकतंत्र के लिए तैयार नहीं हैं और स्पष्ट कहा कि वह शहर को जबरन हथियाने के लिए प्रतिबद्ध है। राजनयिक ने कहा कि “मैंने हफ्तार पर दो साल बर्बाद किये हैं।”

    मिस्र, यूएई, फ्रांस

    खलीफा हफ्तार ने अपने बयानों और भाषणों में देश के दक्षिणी भाग पर नियंत्रण की प्रतिबद्धता जाहिर की है और साथ ही देश में हुकूमत के सन्देश भी दिए हैं। साल 2014 में पहली बार अपने मंसूबो का ऐलान करने के दौरान वह लीबिया के नक़्शे पर खड़े थे और उन्होंने सेना की वर्दी पहन रखी थी।

    साल 2014 में त्रिपोली में संघर्ष की शुरुआत के बाद पश्चिमी देशों ने लीबिया छोड़ दिया था। साल 2016 में लौटने से पूर्व दूतावासों को बंद कर दिया था और नाटो प्रशिक्षण कार्यक्रम का अंत कर दिया था। इस दौरान अरब देशों यूएई और मिस्र के लिए दरवाजे खुल गए,जो प्रशिक्षण और सैन्य सहायता मुहैया करने लग गए थे।

    साल 2017 की यूएन रिपोर्ट के मुताबिक, यूएई ने हफ्तार की सेना को एयरक्राफ्ट और सीअन्य वाहन दिए थे साथ ही अल खादिम में उनके लिए एयरबेस का भी निर्माण किया गया था। बेनग़ाज़ी में इस्लामिक चरमपंथियों के खिलाफ शुरू किये अभियान में हफ्तार प्रगति के लिए संघर्ष कर रही है। उनकी भारी बंदूकों और एयरक्राफ्ट से स्थानीय इमारत ध्वस्त हो गयी लेकिन उन्होंने विदेशी जिहादियों को वहां बसने नहीं दिया था।

    फ्रांस के लिए पूर्वी लीबिया में तेल की संपत्ति है और राजनीतिक लिहाज से फ्रांस यूएई और मिस्र के काफी करीब है। साल 2017 में फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मानुएल मैक्रॉन ने हफ्तार और अमेरिकी समर्थित सरकार के प्रधानमंत्री फ़ाएज़ अल सेरराज के साथ समझौते के लिए बातचीत की थी।

    फ्रांस के विदेश मंत्री जीन यवेस ले ड्रिअन ने दो साल में तीन बार लीबिया की यात्रा की है। 20 मार्च को उन्होंने त्रिपोली में सेरराज से मुलाकात की थी और उसके बाद हफ्तार से मिलने के लिए पूर्वी क्षेत्र में गए थे। सूत्र के मुताबिक, जब हफ्तार ने पूछा कि आप इतने समय तक क्यों नहीं आये तो फ्रांसीसी मंत्री ने कहा “हम आपकी विजय का इंतजार कर रहे थे।”

    मिस्र के राष्ट्रपति ने लीबिया में हालातो को खराब होने से रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई की जरुरत का आग्रह किया है। फ्रांस, इटली, यूएई,ब्रिटेन और अमेरिका ने जारी कर इस संघसर्ष के बाबत गहरी चिंता व्यक्त की है।

    साल 1969 में गद्दाफी की ताकत को बढ़ाने में हफ्तार जैसे अफसरों ने मदद की थी लेकिन साल 1980 में चाड के साथ जंग में उनकी हुकूमत गिर गयी और उनकी कैदी बना लिया गया था, इसके बाद सीएआईए द्वारा उन्हें बचाया जाना था। वह 20 सालो तक अमेरिका के वर्जीनिया शहर में रहे और साल 2011 में  के साथ हाथ मिला लिया था।

    एलएनए के बैनर के तले इस वक्त 200 सैनिक और 13 विमान थे लेकिन इसके बाद हफ्तार ने सैनिकों को आकर्षित किया था। बेनग़ाज़ी के बाद हफ्तार ने पूर्वी सीरिया पर पूरी तरह कब्ज़ा कर लिया था। इसके बाद दक्षिण पर भी नियंत्रण स्थापित किया और अब पश्चिम की तरफ बढ़ रहे हैं।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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