रोहिंग्या शरणार्थियों के विवासन को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आखिरी फैसला आने वाला है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में इस मुद्दे पर सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने पर विचार कर रही है।
क्या है मामला?
2017 में केंद्र सरकार ने यह घोषणा की थी कि भारत के अलग-अलग राज्यों में अवैध रूप से रह रहै रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजा जायेगा।
इस फैसले के बाद कुछ समूह सुप्रीम कोर्ट गए थे। उनका कहना था कि रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजना मानव अधिकारों का हनन होगा।
सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्या शरणार्थियों के पैरोकार सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ट वकील तथा आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता प्रशांत भूषण हैं।
केंद्र सरकार का रुख
इस मामले में भाजपा की केंद्र सरकार ने कद रुख अख्तियार किया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एफिडेविट में कहा था कि भारत में बसे 40 हज़ार रोहिंग्या शरणारथी हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं तथा उन्हें विवासित कराना जरूरी है।
केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि रोहिंग्या मुसलमानों को इस तरह से बसाना देश की जनसांख्यिकी से खिलवाड़ करना है।
केंद्र सरकार ने सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्टों का भी हवाला दिया जिसमे कहा गया है कि रोहिंग्या कैम्पों में पाकिस्तान की आईएसआई की पहुंच है। और इन शरणार्थियों को पाकिस्तान भारत में आतंकी हमले करवाने के लिए प्रशिक्षित कर सकता है।
रोहिंग्या विवाद
रोहिंग्या मुसलमान मुख्य रूप से म्यांमार के रखाइन प्रांत के रहने वाले हैं। बौद्ध बहुल म्यांमार की सेना पर रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के आरोप लगते रहे हैं। इस वजह से रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से भारत व बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में पलायन कर रहे हैं।
बांग्लादेश का कौक्स बाज़ार क्षेत्र रोहिंग्या शरनार्थियों से भरा पड़ा है। भारत मे रोहिंग्या शरणार्थियों की सबसे बड़ी बस्ती जम्मू में है। ऐसे में यह सवाल भी लाजमी है कि पूर्वी सीमा से इतना दूर उन्हें बसाने का उद्देश्य क्या था? वो भी एक ऐसे प्रांत में जहां इस्लामिक कट्टरपंथियो का अत्यधिक प्रभाव है।
राजनैतिक उठा-पटक
इन शरणार्थियों को देश में बसाने की जुगत में लगे लोग राजनैतिक फायदे के लिए ऐसा कर रहे हैं। रोहिंग्या भविष्य में उनके लिये वोट-बैंक का काम कर सकते हैं। ठीक उसी तरह जैसे बंगाल में बांग्लादेशी मुसलमान तृणमूल व लेफ्ट पार्टियों के लिए वोट-बैंक बने हुए हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध
सुरक्षा एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बांग्लादेश में स्थापित शरणार्थी कैम्पों में राहत का कार्य हाफ़िज़ सईद की संस्था जमात-उद-दावा भी कर रही है।
ऐसे में सम्भावना है कि इन शरणार्थियों में कट्टरवाद का प्रचार हुआ हो। इन शरणार्थियों के बीच जासूसों की नियुक्ति करना भी कोई मुश्किल काम नहीं है।
अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला देता है?