बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रत्यर्पण में देरी के कारण म्यांमार की आलोचना की है। म्यांमार में हिंसा के कारण लाखों की संख्या में रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश की सरहद पर आये थे। साल 2017 में म्यांमार की सेना की कारवाई के कारण करीब 740000 रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश के कॉक्स बाजार के भीड़भाड़ वाले शिविरों में गुजर बसर करने को मज़बूर है।
रविवार को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बयान से लगा कि उनके सब्र का बाण कमजोर होता जा रहा है। दोनों सरकारों ने नवंबर 2017 में प्रत्यर्पण संधि पर दस्तखत किये थे और इसके बाद किसी भी रोहिंग्या की वापसी नहीं हुई है। हसीना ने कहा कि “म्यांमार के साथ समास्या यह है कि वह रोहिंग्या शर्णार्थियों को किसी भी कीमत पर वापस नहीं लेना चाहते हैं।”
साथ ही उन्होंने कॉक्स बाजार के जिले में कार्यरत अंतरराष्ट्रीय सहायता विभागों की भी आलोचना की है जो जबरन विस्थापन का विरोध करते हैं। हसीना ने कहा कई “वह संकट के अंत के लिए दिलचस्प नहीं है। दिक्कत यह है कि सहायता समूह शरणार्थियों को वापस भेजना ही नहीं चाहते हैं।”
बांग्लादेश ने कहा था कि “वह रोहिंग्या शरणार्थियों को देश वापस लौटने के लिए मज़बूर नहीं करेगा।” लेकिन हसीना ने प्रत्यर्पण के खिलाफ प्रदर्शन के आयोजनकर्ताओं के खिलाफ जांच की मांग की है। उन्होंने पूछा किसने आंदोलन के लिए भड़काया था। रोहिंग्या शरणार्थियों को सहायता मुहैया करने वालो को बेहद आपत्ति है।”
उन्होंने कहा कि “सरकार ने बशन चार द्वीप में रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए बेहतर घरो और ढांचों का निर्माण किया है। इन ढांचों का निर्माण बंगाल की खाड़ी में बंजर और बाढ़ रहित क्षेत्रों में किया गया है।” हाल ही में जारी रिपोर्ट के मुताबिक म्यांमार रोहिंग्या शरणार्थियों के वापसी के लिए लुभाने की कोशिश में जुटा है।