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    दिल्ली में रोहिंग्या

    म्यांमार से सैन्य दमन के कारण भागकर अन्य मुल्कों में पनाहगार बनने को मज़बूर रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय की देशवापसी को लेकर बांग्लादेश और भारत सरकार म्यांमार पर दबाव बना रही है। हालांकि रोहिंग्या शरणार्थियों को देश वापसी के लिए मनाना मुश्किल होता दिख रहा है।

    भारत म्यांमार और बांग्लादेश पर देश वापसी की प्रक्रिया को तत्काल शुरू करने के लिए दबाव बना रहा है। ढाका को उम्मीद है कि भारत म्यांमार पर रोहिंग्या नागरिकों को सुरक्षित माहौल मुहैया कराने के लिए बेहतर तरीके से दबाव बना सकता है।

    अगस्त 2017 में हुए नृशंस कांड के बाद 12 लाख रोहिंग्या नागरिकों ने म्यांमार से भागकर पड़ोसी मुल्कों में पनाह ली  थी। यूएन के मुख्य सचिव एंतानियो गुटरेस ने भारत दौरे के दौरान कहा था कि नई दिल्ली को इस भयानक मानवीय विपदा के समय बांग्लादेश का सहयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा था म्यांमार की सरकार पर रोहिंग्या अल्पसंख्यकों को सुरक्षित माहौल मुहैया कराने के लिए दबाव बनाना चाहिए ताकि देश वापसी प्रक्रिया शुरू हो सके।

    इसी तर्क पर बांग्लादेश ने कहा कि भारत मानवीय मदद कर रहा है लेकिन देशवापसी के लिए नई दिल्ली को म्यांमार पर नैतिक दबाव बनाने के लिए मज़बूत समर्थन करना होगा। बांग्लादेश सरकार ने बीजिंग चीन से अनुरोध किया था कि म्यांमार के खिलाफ लाए प्रस्ताव में वीटो का इस्तेमाल न करे।

    बांग्लादेशी सलाहकार ने कहा कि चीन ने म्यांमार को आसरा दे रखा है। म्यांमार सामने आये तो मसला जल्दी निपट जायेगा। हालाँकि बीजिंग ने बांग्लादेश के म्यांमार पर दबाव बनाने के बाबत को जवाब नहीं दिया।

    बांग्लादेश की विदेश मंत्री ने बताया कि म्यांमार के साथ हुए समझौते को नौ माह बीत चुके हैं। उन्होंने बताया कि 6000 शरणार्थी देशवापसी के लिए तैयार है। उन्होंने कहा भारत पांच साल में 25 मिलियन डॉलर की परियोजना के साथ म्यांमार में प्रवेश कर चुका है। भारत ने उत्तरी रखाइन में पायलट प्रोजेक्ट के अंतगर्त 250 घर बनाने की योजना बनाई है। बांग्लादेश भारत द्वारा निर्माणाधीन इन मकानों की समीक्षा करेगा। साथ ही म्यांमार को आगामी बैठक में बांग्लादेश देशवापसी के इच्छुक शरणार्थियों की सूची सौंपेगा।

    बांग्लादेशी विदेश मंत्री ने बताया कि भारत ने दावा किया है कि उन्होंने 250 मकानों का निर्माण कर दिया है। उन्होंने कहा शरणार्थी यहां झोपड़ियों में रह रहे हैं इंसान ऐसे नहीं रह सकते हैं। भारत के बाद चीन ने भी म्यांमार में 1000 घर के निर्माण की पेशकश की थी।

    राजनीतिज्ञों के मुताबिक देशवापसी की प्रक्रिया संभव न होने का कारण म्यांमार और बांग्लादेश में बीच अविश्वास है। अगस्त में दिए बयान में म्यांमार की नेता आंग सान सू की ने कहा था कि म्यांमार शरणार्थियों की देशवापसी के लिए तैयार है लेकिन बांग्लादेश इसमें टांग अड़ा रहा है।

    यूएन के मुताबिक रोहिंग्या समुदाय पर हुई हिंसा का रखाइन में अभी भी गंभीर प्रभाव है। वहां समुदायों के मध्य सीमित बातचीत और मुस्लिम समुदाय की धार्मिक गतिविधियों पर पाबंदी है।

    अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक अदालत ने रोहिंग्या समुदाय पर हुए अत्याचार की जाँच शुरू की थी ताकि कार्रवाई के लिए पर्याप्त मौजूद हो। हालाँकि म्यांमार इस अंतर्राष्ट्रीय शाखा का सदस्य नहीं है।

    भारत के अधिकारी ने बताया कि भारत ने दोनों देशों को सलाह दी है कि शरणार्थियों के देशवापसी की प्रक्रिया को जल्द शुरू किया जाए। भारत ने रोहिंग्या अल्पसंख्यक समुदाय के साथ हुए अत्याचार को म्यांमार का आंतरिक मामला कहा और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के किसी भी निंदा करने वालो की झुंड में शामिल होने से इंकार कर दिया।

    म्यांमार की संवेदनशीलता के कारण भारत ने आधिकारिक बयानों में रोहिंग्या शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है। बांग्लादेश में 10 मिलियन से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी कॉक्स बाजार के निकट 6000 वर्ग में बने 30 शिविरों में दिन रह रहे हैं।

    अवामी लीग के वरिष्ठ नेता ने बताया कि रोहिंग्या शरणार्थियों के मसले के कारण आगामी संसदीय चुनावों में शेख हसीना की साख बढ़ेगी। हालाँकि स्थानीय नागरिक पीएम हसीना के इस कृत्य से नाखुश हैं।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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