संयुक्त राष्ट्र ने शुक्रवार को 270000 से अधिक बांग्लादेश में निर्वासित रोहिंग्या शरणार्थियों के पंजीकरण की पुष्टि की है और भविष्य में स्वेच्छा से म्यांमार वापस लौटने के अधिकारों की रक्षा के लिए पहचान पत्र मुहैया किये जा चुके है। बयान में यूएन की शरणार्थी एजेंसी ने कहा कि म्यांमार में पीढ़ियों से रहने के बावजूद रोहिंग्या मुस्लिम आधिकारिक नागरिकता और दस्तावेज लेने के लिए अक्षम है। वे बेघर हो गए हैं और अपने मूलभूत अधिकारी से वंचित है।
यूएन उच्चायुक्त फिलिपो ग्रान्डी ने कॉक्स बाजार की हालिया यात्रा के दौरान कहा कि “पहचान होना ही मूल मानव अधिकार है। याद रखिये कि इनमे से अधिकतर लोगो की पूरी जिंदगी कोई उचित पहचान नहीं रही थी। अत्यधिक उन्नत जीवन के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है।”
इससे बांग्लादेश में शरणार्थियों की मौजूदगी के आंकड़ों में भी सुधार हुआ है। यह विभागों और मानवीय साझेदारों को शरणार्थियों की जरूरतों को बेहतर समझने में मदद करता है। यह उन्हें प्रभावी ढंग से योजना बनाने और लक्ष्य हासिल करने की अनुमति देता है।
बयान के मुताबिक, रोहिंग्या को बायो-डाटा या बायोमेट्रिक डाटा के इस्तेमाल से पंजीकृत किया गया है। इस फिंगरप्रिंट और आँखों की पुतलियों के स्कैन ने उन्हें एक पहचान मुहैया की है। पंजीकरण प्रक्रिया के बाद शरणार्थियों को एक प्लास्टिक का आईडी कार्ड दिया गया था जिसमे एक फोटो, मूल सूचना और जन्मतिथि और लिंग जैसी सूचना थी।
12 वर्ष से अधिक के शरणार्थियों को ही पहचान पत्र मुहैया किया गया है। कार्ड में सभी सूचना अंग्रेजी और बंगाली में हैं और इसमें म्यांमार को उनके उनके देश के तौर पर इंगित किया गया है। यह दस्तावेज बांग्लादेश सरकार के सहयोग से ही बनाये गए हैं और इनमे सरकार और यूएन दोनों का लोगो है।
बांग्लादेश में यूएनएचसीआर रजिस्ट्रेशन अफसर नुरुल रोचयति ने कहा कि “यह कार्य उनके यहां के संरक्षण के लिए हैं और वापसी के अधिकार इसमें शामिल है। जब वह सुरक्षित होंगे तभी सुरक्षा और गौरव के साथ वापस लौट सकेंगे।”