म्यांमार के ताक़तवर आर्मी प्रमुख ने बयान दिया कि संयुक्त राष्ट्र को देश की सम्प्रभुता में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र की जांच टीम ने सुरक्षा कॉउन्सिल से दरख्वास्त की कि म्यांमार के उच्च पदों पर आसीन आर्मी के कर्मचारियों को अंतराष्ट्रीय अपराध अदालत में ले जाया जाए।
आर्मी प्रमुख ने कहा कि सेना को म्यांमार की राजनीतिक जीवनशैली से दूर रखे। उन्होंने कहा कि किसी देश, संगठन और समूह को देश की सम्प्रभुता में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। म्यांमार के आंतरिक मसले को गलत निगाहों से देखा जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की 444 पेज की रिपोर्ट में पिछले साल अगस्त में शुरू हुए हिंसक मिलिट्री कैम्पेन में रोहिंग्या पर किये अत्याचारों की जानकारी का दावा किया गया। जांचकर्ताओं ने कहा कि आर्मी या रखाइन मोब ने हत्याएं, बलात्कार, प्रताड़ित, जनजीवन को तहस नहस करने के लिए हिंसा के अंतिम पड़ाव को भी पार कर लिया था।
सत्तर हज़ार मुस्लिम अल्पसंख्यकों को देश छोड़कर भागना पडा। ये अल्पसंख्यक बांग्लादेश में शरणार्थी बनकर रह रहे है लेकिन उनको डर है की उन्हें बिना किसी सुरक्षा के वापस म्यांमार भेज दिया जायेगा। म्यांमार मिलिट्री इन तथ्यों को नकार रही रही है। उनका कहना है उन्हें रोहिंग्या अलगाववादियों को बाहर निकलना था।
विशेषज्ञों का कहना है कि राजनैतिक अड़चनों की वजह से मुश्किलें खड़ी हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय अदालत में इस मामले के उठने से म्यांमार पर दबाव बना है। अदालत बिना किसी समझौते के म्यांमार में जांच कर सकती है।
पिछले माह फेसबुक ने आरोप लगाते हुए कहा कि धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाले देश में आर्मी मजे से सोशल मीडिया का आनद उठा रही है नतीजतन कई उच्च अधिकारीयों का अकाउंट बंद को कर दिया गया।
आंग सू की ने यूएन की रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि यह रिपोर्ट एकतरफा कार्रवाई पर आधारित है। जांच टीम ने नोबेल विजेता आंग सु की को भी इस नृशंस अपराध का भागीदार माना। हाल ही में आंग सु की ने मिलिट्री पर कटाक्ष करते हुए कहा की रखाइन के मसले से बेहतरी से निपटा जा सकता था।
आर्मी प्रमुख ने कहा की उनका सत्ता में घुसने का कोई मंसूबा नहीं है। दुनिया के देश वही लोकतान्त्रिक प्रणाली अपनाते है जो उन्हें भाता है। उन्होंने कहा की देश को आर्मी के विवादों का अंत करना होना ताकि देश बहुदलीय लोकतंत्र बना रहे। उन्होंने कहा वह आंतरिक शान्ति के लिए प्रयास करते रहेंगे। शरणार्थी कैंप में रह रहे रोहिंग्या समुदाय को म्यांमार सरकार द्वारा नागरिककता न देने पर बांग्लादेश ने उन्हें वापस भेजना से इंकार कर दिया।