संयुक्त राष्ट्र मानवीय सहायता प्रमुख ने कहा कि म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रान्त से रोहिंग्या 70000 शरणार्थियों का भागकर बांग्लादेश आने के कारण में कोई प्रगति नहीं हुई है। मार्क लोकॉक हाल ही बांग्लादेश की यात्रा से वापस आये हैं। उन्होंने कहा कि “म्यांमार विश्वास कायम नहीं कर पाया है कि जिसके तहत रोहिंग्या मुस्लिम वापस मुल्क में जा पाए।”
रोहिंग्या की मांग
उन्होंने कहा कि “वह कुछ चीजों की सुनिश्चितता चाहते हैं मसलन, आवाजाही की आज़ादी, शिक्षा तक पंहुच, रोजगार और सुविधाएं हैं।” बौद्ध बहुल देश में रोहिंग्या मुस्लिमों को बांग्लादेश के बंगाली कहा जाता है जबकि उनके पूर्वज दशकों से उस सरजमीं पर जीवन यापन कर रहे हैं। उन्हें साल 1982 से नागरिकता देने के लिए इंकार किया जाता है और इससे वह बेघर हो गए और उन्हें आज़ादी व मूल अधिकार से वंचित कर दिया गया था।
हालिया संकट की शुरुआत साल 2017 में रोहिंग्या चरमपंथी समूह ने म्यांमार के सुरक्षा सैनिको पर हमला किया था। इसकी प्रतिक्रिया म्यांमार की सेना ने एक बर्बर अभियान से दी और उन पर बलात्कार, हत्या और घरो को आगजनी करने के आरोप लगाए थे।
यूएन सहायता प्रमुख ने पत्रकारो से कहा कि “वह बेहद घबराये हुए हैं कि यूएन ने रोहिंग्या के लिए 96.2 करोड़ डॉलर की मदद की अपील की है और उनका मेज़बान देश बांग्लादेश को 17 फीसदी ही दिया गया है। मेरे ख्याल से विश्व इसमें दिलचस्पी नहीं ले रहा है। पिछले साल हमने 70 फीसदी दंड हासिल किया था। हम पीछे की तरफ भाग रहे हैं।”
यूएन का बांग्लादेशी दौरा
उन्होंने कहा कि “अगर हमें वित्तीय सहायता नहीं मिली तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।” शरणार्थियों के लिए यूएन उच्चायोग के प्रमुख फिलिप्पो ग्रान्डी, इंटरनेशनल आर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन के डायरेक्टर जनरल एन्टोनियो वीटोरिनो और यूएन सेक्रेटरी जनरल के अधीन मानवीय मामलो और तत्काल राहत संयोजक मार्क लोकॉक तीन दिवसीय यात्रा पर बुधवार को ढाका पंहुचें थे।
संयुक्त बयान में उन्होंने रोहिंग्या शरणार्थियों की जरुरत पर जोर दिया और शरणार्थियों के लिए सुरक्षित और सतत समाधान पर कार्य करने की जरुरत है ताकि वे अपने मुल्क लौट सके। बांग्लादेश की सरकार ने यूएन के तीनो अधिकारीयों के समक्ष चिंता व्यक्त की थी। उनकी चिंताए जगजाहिर थी, जैसे ड्रग उद्योग भीड़भाड़ कॉक्स बाजार के लोगो का इस्तेमाल अपनी अवैध गतिविधियों के लिए करता है।”