रोहिंग्या शरणार्थियों के देश वापस लौटने में सबसे बड़ा अड़ंगा म्यांमार सरकार है। म्यांमार में सरकार की कार्रवाई अभी भी जारी है। बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों का आगमन अभी तक जारी है। म्यांमार में रह रहे रोहिंग्या मुस्लिम निरंतर पाबन्द आवाजाही, जबरन मज़दूरी और मनमाने ढंग से गिरफ़्तारी की समस्यों को झेल रहे हैं।
म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय पर सैन्य अभियान को शुरू हुए डेढ़ साल बीत चुका है। यह रोहिंग्या चरमपंथ समूह द्वारा सुरक्षा चौकियों पर हमले की प्रतिक्रिया थी। इस सैन्य अभियान के कारण सात लाख रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश की सरजमीं पर पंहुच गए थे। इनमे से एक भी वापस म्यांमार जाने को राज़ी नहीं है।
म्यांमार सरकार द्वारा सुरक्षित और गरिमापूर्ण हालातों की स्थापना के बावजूद रोहिंग्या शरणाथियों को म्यांमार अभी भी उनके लिए संकटग्रस्त लगता है। संजातीय समूहों का सफाया करने वाले अभियान के अपराध का दारोमदार अभी किसी ने नहीं लिया है, बल्कि गंभीर मानव अधिकार उल्लंघन और कई पाबंदियां अभी भी जारी है। उत्तरी क्षेत्र के सुरक्षा हालात अभी भी काफी खराब है।
अगस्त, 2017 में इस नरसंहार की शुरुआत से अब सैंकड़ो या हज़ारो की संख्या में ही रोहिंग्या मुस्लिम म्यांमार में मौजूद है। रोहिंग्या समुदाय लम्बे अरसे से भेदभाव और उत्पीड़न झेल रहे थे, इसमें नागरिकता न देना भी शामिल है। इस अभियान के बाद म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुस्लिमों की आवाजाही पर अधिक पाबन्दी लगा दी थी।
बांग्लादेश भाषा बोलने वाले रोहिंग्या मुस्लिमों ने देश से भागने के लिए म्यांमार बॉर्डर गार्ड पुलिस को चकमा देने के लिए दलालों को पैसे दिए थे। रोहिंग्या मुस्लिमों के मुताबिक सुरक्षा बलों की पाबन्दी के तहत उन्हें अपने खेतों में काम करने और यात्रा करने से रोका जाता था।
मौंगड़ाव शहर के नजदीक गाँव की एक महिला ने बताया कि “हम इधर-उधर नहीं जा सकते हैं। दिन ब दिन हालात और बुरे हो रहे थे। बिना भय के हम किसी स्थान पर नहीं का सकते थे। गाँव के अधिकतर लोग वहां से भागने के बारे में सोचते थे। उत्तरी रखाइन के एक युवक ने बताया कि “उसे हर कार्य के लिए ले जाया जाता था, इसमें सप्लाई, भोजन पकाना और निर्माण कार्य शामिल है। जब म्यांमार की सेना आती थी तो वह गाँव में कहते थे कि तुम्हे सब करना होगा। अगर तुम मना करोगे, तो तुम्हे बुरी तरह पीटा जायेगा और जेल भेजा जायेगा।”
म्यांमार की सेना और अरकान आर्मी की झड़प के कारण हालात बेहद बिगड़ते जा रहे थे, इसलिए मयंमार की सेना ने सफाया अभियान की शुरुआत की। अरकान को रोहिंग्या चरमपंथ से जोड़ा जाता है। रोहिन्या शरणार्थियों ने बताया कि “अराकन के सदस्यों को पनाह देने का आरोप म्यांमार की सेना रोहिंग्या शरणार्थियों पर लगाती थी और इसका सहारा लेकर हमारा शोषण और उत्पीड़न करती थी। जनवरी 2019 में सरकार ने उत्तरी रखाइन तक पंहुच को बंद कर दिया था। दो अंतर्राष्ट्रीय सहायता संगठन संघर्ष न होने वाले क्षेत्र मौजूद थे। मानवीय सहायता पर आश्रित रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए हालत अधिक बदतर हो गए थे।”
120000 रोहिंग्या मुस्लिमों और साल 2012 से विथापित हुए मुस्लिमों के लिए हालातों में सुधार के लिए म्यांमार की सरकार ने कुछ कार्य नहीं किया। उन्हें शिविरों में गुजरा करना पड़ा, लेकिन यह शिविर खुली हवा का जेल था। यह प्रदर्शित करता है कि बांग्लादेश से लौटने के बाद रोहिंग्या मुस्लिमों के साथ कैसे व्यवहार किया जायेगा। अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बावजूद रोहिंग्या समुदाय के लिए म्यांमार की सरकार ने कुछ नहीं किया। म्यांमार की सेना के वरिष्ठ अधिकारीयों पर अतिरिक्त प्रतिबन्ध भी लगाए गए थे।