सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को रोहिंग्या मुस्लिमों से जुडी एक याचिका ख़ारिज कर दी, इस याचिका में याचिकाकर्ताओं द्वारा सुप्रीमकोर्ट से अनुरोध किया गया था, की वे सिलचर के जेल में बंद सात अवैध रोहिंग्या मुस्लिमों को म्यांमार भेजने से रोके। लेकिन इस याचिका को सुप्रीमकोर्ट ने स्वीकार करने से इंकार कर दिया हैं।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस के कौल, जस्टिस के एम जोसफ के पीठ ने रोहिंग्या शरणार्थीयों को स्वदेश भेजने के केंद्र सरकार के फैसले में दखल देने से इंकार कर दिया हैं। मोहम्मद सलीमुल्लाह द्वारा दायर याचिका पर बोलते हुए याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट के सामने कहा, “रोहिंग्याओं को म्यांमार भेजने से पहले संयुक्तराष्ट्र के अधिकारीयों को उनसे मिलने का अवसर देना चाहिए।”
“रोहिंग्या लोग म्यांमार सेना द्वारा अंजाम दिए गए नरसंहार से अपनी जान बचा कर देश(भारत) में आए हैं। इनमें से ज्यादातर लोगों की पहचान करने को म्यांमार सरकार ने मन कर दिया हैं। अब संयुक्तराष्ट्र भी इन्हें शरणार्थी मानता हैं। इसलिए पहले संयुक्त राष्ट्र के अधिकारीयों को उनसे मिलने का अवसर देना चाहिए। अगर वे फिर भी अपने देश लौटना चाहते हैं, तो उन्हें म्यांमार भेज देना चाहिए।”
केंद्र सरकार के ओर से आतिरिक्त सलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “वह सात रोहिंग्या देश में अवैध तरीके से रह रहे थे, और उन्हें म्यांमार भेजेने के लिए म्यांमार की सरकार से बातचीत की गयी हैं। जिसके बाद नयी दिल्ली स्थित उनके राजदूत ने उन्हें म्यांमार सरकार द्वारा नागरिक के रूप में पहचाने जाने की बात कही थी, जिसके बाद उन सात रोहिंग्याओं को म्यांमार भेजा जा रहा हैं।”
याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, “भूषण जी, सरकार के अनुसार वे(सात रोहिंग्या नागरिक) देश में अवैध तरीके से रह रहे थे और वे जिस देश से आए हैं, वह देश उन्हें वापिस लेने के लिए तयार हैं।”
जब प्रशांत भूषण ने पीठ के सामने कहा की यह कोर्ट का कर्तव्य हैं की वे जीवन की रक्षा करें(किसी भी व्यक्ति पर अन्याय होने न दें)। तभी मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने यह कहते हुए इस याचिका पर आगे सुनवाई करने से इंकार कर दिया की, “पीठ(सुप्रीमकोर्ट) कोर्ट के कर्तव्यों को प्रशांत भूषण से जानने की पीठ को जरुरत नहीं हैं। कोर्ट अपने सभी कर्तव्य और अधिकार भलीभांति जानता हैं।”