चेतावनी के बावजूद भारत ने साथ रोहिंग्या समुदाय के नागरिकों को म्यांमार वापस भेजने पर संयुक्त राष्ट्र ने भारत की आलोचना की है। यूएन ने कहा म्यांमार भेजे गए सात लोगों की सुरक्षा और हिफाज़त के लिए वह चिंतित है।
यूएन ने चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि सालों से म्यांमार कि सेना का दमन झेल रहे अल्पसंख्यक रोहिंग्या समुदाय के सात लोगों को वापस नर्क में भेजा जाना अफ़सोसजनक है।
यूएन ने कहा कि यह बेहद खेदजनक है कि भारतीय विभागों ने उनके अनुरोध का कोई जवाब नहीं दिया है। साथ ही यूएन भारतीय विभागों के द्वारा म्यांमार भेजे गए शरणार्थियों कि सुरक्षा इंतजामात के बाबत जानकारी मांगी है।
यूएन विभाग के कार्यकर्ता ने भारत को आगाह किया कि वह अंतर्राष्ट्रीय संधि का उल्लंघन कर रहा है। शरणार्थियों का म्यांमार वापस लौटना खतरनाक साबित हो सकता है।
रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय बौद्ध बहुसंख्यक देश म्यांमार के अल्पसंख्यक है। जिन्हे म्यांमार अपने देश का नागरिक नहीं मानता बल्कि बंगाली घुसपैंठियें समझता है। म्यांमार में सेना कि दमनकारी नीति के कारण सात लाख बीस हज़ार रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने बांग्लादेश में शरण ली है।
म्यांमार के सेना ने अल्पसंख्यक समुदाय पर हिंसा करने के आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने बताया कि वे रोहिंग्या चरमपंथियों को ढूढ़ने के लिए यह अभियान चला रहे थे।
अलबत्ता यूएन ने कहा ऐसे कई सबूत है जो साबित करते हैं कि म्यांमार कि सेना ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को अमानवीय तरीके से पीटा और नृशंस काण्ड किये थे।
नई दिल्ली ने बताया कि यह समुदाय राष्ट्र सुरक्षा के लिए खतरा है क्योंकि इस से अधिकतर के आतंवादी समूहों से सम्बन्ध है। सरकार के मुताबिक भारत में 40 हज़ार रोहिंग्या मुस्लिमो ने पनाह ले रखी है और सभी को म्यांमार वापस भेजा जायेगा।
शीर्ष न्यायलय में इस आदेश के विरुद्ध याचिका दायर की गयी है। यूएन ने कहा कि भारत के साथ 18 हज़ार रोहिंग्या शरणार्थियों ने पंजीकरण कराया है।