हाल ही में गुरूवार को म्यांमार व बांग्लादेश के बीच में रोहिंग्या मुसलमानों की सुरक्षित घर वापसी को लेकर समझौता हुआ। इस समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए दोनों देशों ने रोहिंग्या की वापसी को लेकर प्रतिबद्धता जताई। इसके साथ ही अब कई मानवाधिकार संगठनों ने इस समझौते को लेकर आशंका जताई है।
मानव अधिकार संस्था के बिल फ्रेलिक ने रोहिंग्या वापसी को लेकर हुई संधि को गंभीर नहीं मानते हुए हास्यापद करार दिया। फ्रेलिक ने कहा कि पहले तो म्यांमार के द्वारा लाखों रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार किया गया और उनके घरों को आग लगा दी गई।
इस वजह से रोहिंग्या को अपनी जमीन व संपतियों को छोड़कर बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर होना पड़ा। वहीं दूसरी ओर अब म्यांमार सरकार खुली बाहें फैलाकर के अपने सुगंधित गाँवों में शरणार्थियों का स्वागत करने को बेताब है। इस तरह से फ्रेलिक ने म्यांमार सरकार व इस संधि को लेकर तंज कसा।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को करनी चाहिए निगरानी
मानव अधिकार संस्था के बिल फ्रेलिक ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को रोहिंग्या शरणार्थियों की सुरक्षित घर वापसी का निरीक्षण खुद करना चाहिए। फ्रेलिक के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगरानी के बिना रोहिंग्या की वापसी जोखिमभरी साबित हो सकती है।
क्योंकि दोनों देशों की बीच में क्या संधि हुई है और उसकी क्या शर्ते है, इसकी विस्तृत जानकारी किसी को भी नहीं दी गई है। आगे कहा कि म्यांमार में रोहिंग्या की वापसी के दौरान उन्हें कैंप में नहीं ठहराया जाना चाहिए।
बल्कि रोहिंग्या की उनके देश में वापसी उनकी जगह पर होनी चाहिए। जिन घरों को म्यांमार की सेना ने आग के हवाले कर दिया था उन घरों को दोबारा सरकार द्वारा बनाए जाने चाहिए। ताकि रोहिंग्या वापसी कके इन घरों में रूक सके।
गौरतलब है कि करीब 6 लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को अपना घर व देश छोड़कर पलायन को मजबूर होना पड़ा था। दरअसल कई मानवाधिकार संगठनों को म्यांमार व बांग्लादेश के बीच हुई संधि पर विश्वास नहीं हो पा रहा है।
क्योंकि दोनों देशों ने अभी तक इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं दी है। रोहिंग्या का वापस से रखाइन प्रांत में जाना, वहां के लोगों को पसंद नहीं भी आ सकता है। साथ ही म्यांमार सरकार द्वारा रोहिंग्या की सुरक्षा को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है।