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    रोहिंग्या मुस्लिम

    नई दिल्ली, 16 अगस्त (आईएएनएस)| क्या हजारों अवैध रोहिंग्या प्रवासियों को भारत में शरणार्थी का दर्जा मिलेगा या उन्हें निर्वासित किया जाएगा? यह सवाल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय किया जाना है। उम्मीद है कि 17 नवंबर को भारत के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के सेवानिवृत्त होने से पहले यह तय हो जाएगा।

    दो रोहिंग्या मुस्लिमों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें मुस्लिम समुदाय के 40,000 सदस्यों को उनकी जन्मभूमि म्यांमार निर्वासित करने की सरकार की योजना को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कहा था कि वे वहां की सरकार के आदेशों पर भेदभाव और डर के चलते अपनी मूल भूमि से भाग गए। जुलाई में, शीर्ष अदालत ने उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की।

    अक्टूबर 2018 में, भारत ने पहली बार सात रोहिंग्या मुस्लिमों को म्यांमार भेजा था। इस निर्वासन से रोहिंग्याओं के बीच भारतीय शरणार्थी शिविरों से स्वदेश भेजे जाने का डर व्याप्त हो गया। शीर्ष अदालत ने उन लोगों के निर्वासन को रोकने से इनकार कर दिया।

    महान्यायवादी तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष तर्क दिया था कि उनका प्राथमिक आग्रह निर्वासन के संबंध में किसी भी प्रस्ताव को रोकने के लिए था और इस समुदाय के अधिकारों के बारे में अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को लागू करना चाहिए।

    मेहता ने तर्क दिया कि प्रमुख सवाल समुदाय की सटीक पहचान के बारे में था -चाहे वे शरणार्थी हों या अवैध प्रवासी हों और क्या उन्हें शरणार्थी के रूप में मान्यता दी जा सकती है।

    अदालत ने कहा कि वह इस मुद्दे को देखेगी और इसमें शामिल पक्षों से अगली सुनवाई में याचिका पूरी करने को कहा।

    मामले से जुड़े एक वकील ने कहा, “चूंकि प्रधान न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई के लिए सहमत हो गए हैं, इसलिए उम्मीद है कि वह अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले इस पर फैसला सुनाएंगे। लेकिन, अयोध्या मामले पर दैनिक सुनवाई के कारण रोहिंग्या मामले पर अंतिम सुनवाई लंबित है।”

    शीर्ष अदालत ने एक साल के भीतर बांग्लादेशी नागरिकों और रोहिंग्या शरणार्थियों सहित अवैध प्रवासियों और घुसपैठियों को पहचानने और निर्वासित करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करने पर भी सहमति जताई थी।

    वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की एक दलील में दावा किया गया था कि भारी संख्या में अवैध प्रवासियों ने विशेष रूप से संवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्रों में एक विशाल भूखंड पर कब्जा कर लिया है, जिसमें ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत गंभीर मसला निहितार्थ’ है।

    उपाध्याय ने अवैध प्रवासियों पर अवैध और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने, हवाला माध्यमों से धन जुटाने और मानव तस्करी करने का आरोप लगाया।

    अपनी याचिका में, उन्होंने कानून में संशोधन करने और अवैध प्रवासन को सं™ोय और नॉन-कम्पाउंडेबलअपराध घोषित करने का निर्देश देने की मांग की थी।

    By विकास सिंह

    विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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