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    पोप-फ्रांसिस-बांग्लादेश

    ईसाई धर्म के सबसे प्रमुख पोप फ्रांसिस सोमवार को म्यांमार पहुंच चुके है। पोप फ्रांसिस 27-30 नवंबर तक म्यांमार व 30 नवंबर से 2 दिसंबर तक बांग्लादेश के दौरे पर रहेंगे। वेटिकन ने अगस्त में पोप फ्रांसिस के कार्यक्रम की घोषणा की थी।

    पोप के म्यांमार दौरे पर सभी की निगाहें टिकी हुई है। क्योंकि संभावना जताई जा रही है कि पोप फ्रांसिस रोहिंग्या मुसलमानों पर हुए अत्याचारों को लेकर कुछ सलाह दे सकते है। साथ ही रोहिंग्या मुद्दे को लेकर अपनी विचार रख सकते है।

    दरअसल म्यांमार एक बौद्ध धर्म मानने वाला देश है। बौद्ध-बहुसंख्यक म्यांमार में मुस्लिम अल्पसंख्यक के लिए बहुत कम सहानुभूति है। अगस्त माह में रखाइन प्रांत में रोहिंग्या पर काफी अत्याचार किए गए। जिसके बाद लाखों की संख्या में रोहिंग्या बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हुए है।

    अब म्यांमार के लोगों ने तो रोहिंग्या का नाम पूरी तरह से भुला ही दिया है। यहीं नहीं म्यांमार सरकार ने उन्हें नागरिकता से भी वंचित कर रखा है। इसके बदले उन्हें बांग्लादेश से अवैध अप्रवासियों के लिए बंगाली शब्द से पुकारा जा रहा है।

    अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या बौद्ध बहुमत बाले म्यांमार देश में रोहिंग्या मुसलमानों से चिढ़ने वाले लोगों के सामने पोप फ्रांसिस रोहिंग्या मुद्दे को लेकर बात करेंगे या नहीं। अगर बात करते है तो म्यांमार के लोगों की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी ये भी काफी मुख्य बिन्दु है।

    पोप ने रोहिंग्या के बारे में पहले क्या है ?

    गौरतलब है कि पोप फ्रांसिस इस साल में करीब तीन बार अलग-अलग मौकों पर रोहिंग्या की दुर्दशा के बारे में बात कर चुके है। उन्होंने रोहिंग्या को अच्छे और शांतिपूर्ण लोगों के रूप में वर्णित किया। इसके लिए उन्होंने कैथोलिकों से उनके लिए प्रार्थना करने का भी आग्रह किया।

    फरवरी 2017 में उन्होंने रोहिंग्या को भाई-बहिन बताया। वहीं अगस्त में हुई कार्रवाई के बाद पोप फ्रांसिस ने पीड़ा जताई। इसके बाद बांग्लादेश में शरणार्थी शिविरों में रह रहे रोहिंग्या बच्चों की दुर्दशा के बारे में बताया।

    क्या वह रोहिंग्या का नाम लेंगे?

    संभावना जताई जा रही है कि पोप फ्रांसिस म्यांमार दौरे पर रोहिंग्या के मुद्दे को लेकर बात कर सकते है। हालांकि म्यांमार में रहने वाले कैथोलिक अल्पसंख्यक समुदाय ने पोप को रोहिंग्या शब्द का इस्तेमाल न करने के बारे में भी कहा है।

    क्योंकि इन्हें डर है कि अगर पोप रोहिंग्या का मुद्दा उठाएंगे तो बौद्ध-धर्म के लोगों का अगला निशाना ईसाई अल्पसंख्यक हो सकते है। वेटिकन के अधिकारियों ने संकेत दिया है कि उन्होंने सलाह को गंभीरता से लिया है।