कुछ समय से यह खबर आ रही थी की रिलायंस जल्द ही लोजिस्टिक्स स्टार्टअप ग्रैब को खरीद सकता है हालांकि इस पर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई थी। लेकिन शनिवार 2 मार्च को इस मामले में एक आधिकारिक घोषणा रिलायंस द्वारा की गयी जिसमे बताया गया की रिलायंस ने कुल 14.9 मिलियन डॉलर में इस स्टार्टअप का अधिग्रहण कर लिया है।
रिलायंस द्वारा घोषणा :
BSE फिलिंग के दौरान मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस ने बयान दिया की इसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रियल इंवेस्टमेंट्स एंड होल्डिंग्स लिमिटेड कंपनी ने हाल ही में ग्रैब के इक्विटी शेयर में हिस्सेदारी को कुल 14.9 मिलियन डॉलर में खरीदकर इस स्टार्टअप का अधिग्रहण किया है।
इस कंपनी का अधिग्रहण करने से इसके पास इसकी कुल 83 प्रतिशत इक्विटी पर नियंत्रण हो गया है। इस निवेश से रिलायंस को अपने डिजिटल कॉमर्स इनिशिएटिव को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी और इसके साथ ही रिलायंस की लोजिस्टिक्स सुविधाओं में भी सुधार होगा।
निवेश की योजना :
इसके साथ ही रिलायंस ने यह भी घोषणा की है की आगे उसकी इस स्टार्टअप में निवेश करने की और भी योजना हैं। यहाँ बताया गया है की मार्च तक इस कंपनी में रिलायंस द्वारा कुल 5 मिलियन डॉलर का और निवेश किया जाएगा। इस निवेश के बाद रिलायंस इस स्टार्टअप कंपनी का पूर्ण अधिग्रहण करेगा। अतः मार्च में इस कंपनी का रिलायंस द्वारा अधिग्रहण पूरा हो जाएगा।
ग्रैब कंपनी को 2013 में जिग्नेश पटेल, निशांत वोरा एवं प्रतिश संघवी द्वारा स्थापित किया गया था। यह कंपनी कई तरह की डिलीवरी सुविधाएं प्रदान करती है जैसे फर्स्ट माइल सर्विस, लास्ट माइल सर्विस, रिवर्स डिलीवरी इत्यादि। ये अपने काम में कुशल हैं और इसके चलते ही इसके कई बड़े क्लाइंट्स हैं जैसे मैकडोनाल्डस, मिन्त्रा, बिग बास्केट आदि।
मुकेश अंबानी करेंगे नया ई-कॉमर्स प्लेटफार्म लांच :
9वें वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट में संबोधन के दौरान मुकेश अम्बानी ने कहा “जिओ और रिलायंस रिटेल मिलकर गुजरात में हमारे 12 लाख छोटे खुदरा विक्रेताओं और दुकानदारों को सशक्त और समृद्ध बनाने के लिए एक अनूठा नया ई-कॉमर्स प्लेटफार्म लॉन्च करेंगे।”
यदि रिलायंस द्वारा वर्तमान में ई-कॉमर्स प्लेटफार्म लांच किया जाता है तो यह समय उसके लिए अनुकूल होने वाला है क्योंकि कुछ समय पहले सरकार ने ई-कॉमर्स कंपनियों के नियमों में संशोधन किया था। नए नियमों के मुताबिक़ 1 फरवरी से कोई भी फर्म अपनी हिस्सेदारी की कंपनियों के उत्पादों को ज्यादा नहीं बेच पाएंगी एवं इसके अतिरिक्त ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर कोई एक्सक्लूसिव डील को भी मंजूरी नहीं मिलेगी।