विषय-सूचि
रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है? (real time operating system in hindi)
रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग रियल टाइम एप्लीकेशन के लिए किया जाता है यानी ऐसे एप्लीकेशन के लिए जहां डाटा की प्रोसेसिंग एक निश्चित और बहुत छोटे समय में पूरी हो जानी चाहिए।
ये सामान्य कार्य करने वाले कंप्यूटर से अलग होता है जहां समय के विचार को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता जितना कि समय रियल टाइम सिस्टम में जरूरी होता है। RTOS एक टाइम शेयरिंग सिस्टम है जो क्लॉक इंटरप्ट पर आधारित है।
इंटरप्ट सर्विस रूटीन इंटरप्ट की सुविधा देता है जिसे सिस्टम द्वारा लाया जाता है। RTOS किसी प्रोसेस को एक्सीक्यूट करने के लिए प्रायोरिटी का प्रयोग करता है। जब कोई हाई प्रायोरिटी प्रोसेस सिस्टम में आता है तो सारे लो प्रायोरिटी प्रोसेस को हटा दिया जाता है ताकि उस हाई प्रायोरिटी प्रोसेस पर काम किया जा सके।
रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम प्रोसेस को सिंक्रोनाइज करता है। ऐसा इसीलिए ताकि वो एक दूसरे से संवाद कर सके। बिना समय को बर्बाद किये यहाँ संसाधनों के एफ़्फ़िकिएन्त तरीके से प्रयोग किया जा सकता है।
RTOS का प्रयोग ट्रैफिक सिग्नल को नियंत्रित करने में होता आ रहा है। नुक्लेअर रिएक्टर कण्ट्रोल साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट्स, मेडिकल इमेजिंग सिस्टम, इंडस्ट्रियल सिस्टम, फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम, होम एप्लायंस कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम पर कार्य करते हैं।
रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम बहुत तेज होते हैं और जल्द से जल्द रिस्पांस देते हैं। इन सिस्टम को ऐसे माहौल में प्रयोग में लाया जाता है जहां बड़ी संख्या में बाहरी घटनाओं को एक छोटे समय में स्वीकार कर के और बहुत कम समय में प्रोसेस करना अनिवार्य हो।
रियल टाइम प्रोसेसिंग को क्विक transaction की जरूरत होती है और जल्द से जल्द रिस्पांस करना इनकी खासियत।
उदाहरण के तौर पर मान लीजिये किसी पेट्रोलियम रिफाइनरी का एक माप है जो यह बताता है कि तापमान बहुत ज्यादा जा रहा है और किसी दुर्घटना या ब्लास्ट को रोकने के लिए तुरंत से तुरंत एक्शन लेने की जरूरत है।
रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम में प्रोग्राम को प्राइमरी और सेकेंडरी मेमोरी के बीच बस थोड़े से स्वैपिंग की जरूरत होती है। अधिकतर समय प्रोसेसर प्राइमरी मेमोरी में ही रहता है ताकि वो क्विक रिस्पांस दे सके। RTOS में मेमोरी मैनेजमेंट में ज्यादा समय नहीं खपाना पड़ता जैसे कि दूसरे सिस्टम्स में करना पड़ता है।
टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम इवेंट ड्राइव और डिजाईन को टाइम शेयर करने पर आधारित होते हैं।
इवेंट ड्रिवेन: इवेंट ड्रिवेन स्विचिंग में हायर प्रायोरिटी वाले टास्क को CPU सर्विस की लोअर प्रायोरिटी वाले टास्क से ज्यादा जरूरत होती है। इसे प्रायोरिटी शेड्यूलिंग भी कहा जाता है।
Time Sharing: स्विचिंग हमेशा पहले टाइम क्वांटम के बाद होता है जैसा कि राउंड रोबिन शेड्यूलिंग में होता है।
इन डिजाईन में हमे सामान्यतः प्रोसेस साइकिल के तीन स्टेट के साथ कार्य करना पड़ता है:
1) रनिंग: जब CPU किसी प्रोसेस को एक्सीक्यूट कर रहा होता है तब ये रनिंग स्टेट में होता है।
2) रेडी: When a process has all the resources require performing a process, but still it is not in running state because of the absence of CPU is known as the Ready state. जब किसी प्रोसेस के पास वो सभी संसाधन हैं जो किसी प्रोसेस को परफॉर्म करने के लिए जरूरी होते हैं लेकिन वो फिर भी CPU की अनुपस्थिति के कारण रनिंग स्टेट में नहीं हैतो उसे रेडी स्टेट कहा जाता है।
3) ब्लॉक्ड: जब किसी प्रोसेस के पास execution के लिए जरूरी सभी संसाधन नहीं हो तो वो ब्लॉक्ड स्टेट में होता है।
इंटरप्ट लेटेंसी: किसी डिवाइस द्वारा सर्विस देने से पहले generate किये गये समय को इंटरप्ट लेटेंसी कहते हैं। RTOS में इंटरप्ट को समय की एक निश्चित मात्र के लिए मेन्टेन किया जाता है , जैसे लेटेंसी टाइम bounded.
Memory Allocation: स्टैटिक और डायनामिक दोनों ही प्रकार के मेमोरी एलोकेशन का समर्थन करता है। दोनों ही एलोकेशन को अलग-अलग कार्य के लिए प्रयोग करते हैं। जैसे कि स्टैटिक मेमोरी एलोकेशन का प्रयोग compile और डिजाईन के समय स्टैक डाटा स्ट्रक्चर का प्रयोग कर के किया जाता है। डायनामिक मेमोरी एलोकेशन को रनटाइम हीप डाटा स्ट्रक्चर के लिए प्रयोग किया जाता है।
रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य (function of real time operating system in hindi)
1. प्रोसेसर और अन्य सिस्टम सनाधनों का प्रबन्धन करना ताकि एप्लीकेशन की जरूरतों को पूरा किया जा सके।
2. सिस्टम इवेंट्स के साथ सिंक्रोनाइज करना और उन्हें रिस्पांस देना।
3. प्रोसेस के बीच डाटा को efficient तरीके से मूव कराना ताकि इन प्रोसेस के बीच सहयोग स्थापित हो सके।
रियल टाइम सिस्टम को मल्टीटास्किंग करने वाला होना चाहिए। इसीलिए इनका मूल फंक्शन है कुछ निश्चित सिस्टम संसाधनों का प्रबन्धन करना जैसे कि CPU, मेमोरी और समय। हर संसाधन को जितने भी प्रोसेस हैं उनके बीच साझा करना चाहिए ताकि काम सही तरीके से हो। इनके कुछ और फंक्शन हैं:
1. RAM का सही तरह से प्रबंधन करना।
2.कंप्यूटर संसाधनों के लिए एक्सक्लूसिव एक्सेस प्रदान करना।
रियल टाइम का अर्थ हुआ फाइल्स को अपडेट करना उस डाटा के आधार पर जो त्रन्न्सक्तिओन की सूचना रखे हुए है। और ये काम किसी भी even से जुड़ते ही तुरंत होना चाहिए।
रियल टाइम सिस्टम के कुछ और उदाहरण हैं:
1.एयरलाइन्स रिजर्वेशन सिस्टम।
2.एयर ट्रैफिक कण्ट्रोल सिस्टम।
3.वैसे सिस्टम जो तुरंत अपडेट देते हैं।
4.वैसे सिस्टम जो स्टॉक मार्किट का छोटा से छोटा हाल भी बताते रहते हैं।
5.राडार कि तरह सुरक्षा के उपकरण।
रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम सामान्यतः preemptive प्रायोरिटी शेड्यूलिंग का प्रयोग करते हैं। ये एक से ज्यादा शेड्यूलिंग पालिसी का समर्थन करते हैं और यूजर को इन पॉलिसीस के साथ पैरामीटर सेट करने की इजाजत भी देते हैं।
जैसे कि राउंड रोबिन शेड्यूलिंग में टाइम स्लाइस जहां टास्क क्यू के अंदर के सभी टास्क को अधिकतम समय के लिए शेड्यूल किया जाता है जो कि टाइम स्लाइस पैरामीटर द्वारा सेट राउंड रोबिन की तरह होता है।
शेड्यूलिंग के लिए सैकरों प्रायोरिटी लेवल मौजूद हैं। कुछ ख़ास टास्क नॉन-preemptive के लिए के लिए भी होते हैं।
रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार (types of real time operating system in hindi)
1) सॉफ्ट तराल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम : किसी प्रोसेस को हो सकता है कि दिए गये डेडलाइन में एक्सीक्यूट नहीं किया जा सके। इसे क्रॉस कर के अगली बार बिना सिस्टम को नुक्सान पहुंचाए एक्सीक्यूट किया जा सकता है। इसके उदाहरण हैं डिजिटल कैमरा, मोबाइल फ़ोन इत्यादि।
2) हार्ड रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम : प्रोसेस को दिए गये डेडलाइन में ही एक्सीक्यूट होना चाहिए। डेडलाइन को क्रॉस करने की इजाजत इसमें नहीं होती। इसमें प्रीएंपसन टाइम एक माइक्रोसेकंड से भी कम होता है।
इसके उदाहरण हैं कार में एयरबैगकण्ट्रोल, एंटी-लॉक ब्रेक, इंजन कण्ट्रोल सिस्टम ,इत्यादि।
GPOS और RTOS के बीच का अंतर (difference between gpos and rtos)
जनरल पर्पस ऑपरेटिंग सिस्टम (GPOS) | रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम (RTOS) |
1) इसे डेस्कटॉप, पीसी और लैपटॉप के लिए प्रयोग किया जाता है। |
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2) प्रोसेस पर आधारित शेड्यूलिंग का प्रयोग होता है। | 2) राउंड रोबिन की तरह समय पर आधारित शेड्यूलिंग का प्रयोग होता है। |
3) इंटरप्ट लेटेंसी को इतना महत्वपूर्ण नहीं माना जाता। | 3) इंटरप्ट लैग बहुत कम होता है।कुछ माइक्रो सेकंड में मापा जा सकता है। |
4) कोई प्रायोरिटी inversion मैकेनिज्म उपस्थित नहीं रहता। | 4) प्रायोरिटी inversion मैकेनिज्म होता है। एक बार प्रोग्रामर द्वारा प्रायोरिटी सेट कर दी गई तो फिर इसे सिस्टम भी बदल नहीं सकता। |
5) कर्नेल ऑपरेशन को प्रीम्प्ट किया भी जा सकता है और नहीं भी। | 5) कर्नेल ऑपरेशन को प्रीम्प्ट किया जा सकता है। |
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