स्टालिन द्वारा राहुल गाँधी को 2019 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताये जाने के बाद विपक्षी पार्टियों ने एक सुर में असहमति जताई है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा यदि कोई अपना मत रखता है तो ये जरूरी नहीं कि बाकी सब का भी उस मुद्दे पर वही मत हो।
सपा अध्यक्ष ने कहा ‘लोग भाजपा से नाखुश हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री, ममता जी, शरद पवार जी सभी विपक्षी नेताओं को एक महागठबंधन बनाने के लिए साथ ले कर आने की कोशिश कर रहे हैं। यदि कोई (स्टालिन) अपना मत रखता है तो ये जरूरी नहीं कि गठबंधन के सभी सहयोगी उस पर एकमत हो।”
चेन्नई में करूणानिधि के प्रतिमा के अनावरण के मौके पर डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी का नाम विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री उम्मीदवार के लिए प्रस्तावित किया था। उन्होंने कहा था कि इस देश से साम्प्रादायिकता को भगाने और लोकतंत्र की स्थापना करने की ताकत राहुल गाँधी में है। राहुल की वजह से ही कांग्रेस को विधान्सबह चुनावों में जीत मिली है लोकतांत्रिक शक्तियों को एकत्रित करने के लिए हमें एक मजबूत नेतृत्व की जरूरत है। इसलिए मैं राहुल गाँधी का नाम इसके लिए प्रस्तावित करता हूँ। मुझे उम्मीद है अन्य पार्टियाँ इसपर विचार करेंगी।”
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स्टालिन के प्रस्ताव को विपक्षी खेमे से कोई साथ नहीं मिला। पहले ममता बनर्जी, फिर सीताराम येचुरी, फिर शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और फिर अखिलेश यादव ने इसे सिरे से नकार दिया।
पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि इया तरह के अपरिपक्व बयान से विपक्षी एकता खतरे में पद सकती है। कोई भी निर्णय चुनाव बाद सभी दलों की बैठक के बाद ही होना चाहिए।
शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी कहा कि अभी प्रधानमंत्री पद पर चर्चा की कोई जरूरत नहीं है। कांग्रेस ने खुद ही घोषणा कर दिया जबकि ये चुनाव परिणाम के बाद तय होना चाहिए।
विपक्षी दलों की ओर से आये विरोध के बाद कांग्रेस बैकफुट पर आ गई। पार्टी के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा कि “कांग्रेस ने कभी ये नहीं कहा कि उसके अध्यक्ष राहुल गाँधी महागठबंधन की सूरत में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। प्रधानमंत्री का चुनाव अगले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल होने के बाद होगा।
पिछले हफ्ते 21 विपक्षी पार्टियों ने एक मीटिंग में 2019 में भाजपा को हारने की रणनीति पर चर्चा की। मायावती की बहुजन समाज पार्टी और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी इस महाबैठक से दूर रही थी।
मध्य प्रदेश में कमलनाथ के शपथग्रहण समारोह में भी जब सारे विपक्षी कुनबे के एकत्र होने का अनुमान लगाया जा रहा था उस वक़्त भी मायावती, अखिलेश यादव और ममता बनर्जी समारोह से गैरहाजिर रहे थे। हालाँकि ममता ने अपना एक दूत भेजा था।
एक तरफ जहाँ भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि वो नरेंद्र मोदी के नेतृत्त्व में ही 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरेगी वहीँ विपक्ष में अभी से ही सिरफुटौव्वल शुरू हो गया है।