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    आदिवासी बहुल राज्य झारंखड के विधानसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद कांग्रेस और खासकर पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को आदिवासी वर्ग में अपनी पैठ फिर से बनने की आस जाग गई है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी में होने वाले तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव का उपयोग कर कांग्रेस पूरे देश के आदिवासियों के बीच अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने की जुगत में लग गई है।

    किसी दौर में कांग्रेस की आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग के बीच गहरी पैठ हुआ करती थी, कांग्रेस का वोटबैंक भी यही वर्ग हुआ करता था, मगर सियासी हालात में आए बदलाव से धीरे-धीरे कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक ही उसके हाथ से खिसकता चला गया और पार्टी का जनाधार भी सिमटता गया। बीच-बीच में मिलने वाली चुनावी सफलताएं कांग्रेस में आस जगा जाती है। झारखंड के विधानसभा चुनाव बाद भी ऐसा ही कुछ हो रहा है।

    छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शुक्रवार से तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव शुरू हो रहा है। इस महोत्सव में देश के केंद्र शासित राज्यों सहित पच्चीस राज्यों के आदिवासी दल हिस्सा ले रहे हैं। यह ऐसा मौका होगा, जब एक साथ एक ही स्थान पर पूरे देश के आदिवासियों के प्रतिनिधि मौजूद रहेंगे। लिहाजा, राहुल गांधी इस आयोजन का राजनीतिक उपयोग करने में नहीं चूकना चाहते।

    सियासी लिहाज से कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ का राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस को झारखंड में भले ही कम स्थानों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला हो, मगर जितने भी स्थानों पर पार्टी लड़ी, उसमें से अधिकांश में वह जीती है।

    झारखंड की 81 में से 31 सीटें कांग्रेस के खाते में महागठबंधन से आई थी, इनमें से 16 में कांग्रेस जीती। कांग्रेस सात आदिवासी बहुल सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से छह पर जीत मिली। इससे राहुल गांधी और कांग्रेस को उम्मीद जागी है कि आदिवासी वर्ग में पकड़ मजबूत रखी जा सकती है।

    राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर मानते हैं कि राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव कांग्रेस को फिर खड़ा करने की राजनीति का हिस्सा है। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार तो चला ही रहे हैं, साथ ही कांग्रेस को कैसे खड़ा किया जाए, इस पर भी काम कर रहे हैं।

    उन्होंने कहा, “कांग्रेस के बड़े नेता, जिनमें इंदिरा गांधी, राजीव गांधी प्रमुख हैं, हमेशा आदिवासियों के बीच जाकर उनकी वेशभूषा पहनकर यह संदेश देते रहे हैं कि हम तुम्हारे साथ हैं।”

    रायपुर में भूपेश बघेल सरकार राहुल गांधी की मौजूदगी में आदिवासियों का राष्ट्रीय आयोजन कर यही संदेश देना चाहती है। यह राजनीतिक सम्मेलन के जरिए संभव नहीं था। इसलिए सांस्कृतिक आयोजन के जरिए आदिवासियों में पैठ बनाने की कोशिश की गई है।

    भाजपा नेता केदार गुप्ता ने कहा, “कांग्रेस आदिवासी संस्कृति और नृत्य के नाम पर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रही है, यह वास्तव में आदिवासी संस्कृति का दुरुपयोग है।”

    उन्होंने कहा, “किसानों की धान खरीदी का समय चल रहा है, वहीं राज्य की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। ऐसे में यह समय इस तरह के आयजनों का नहीं है।”

    गुप्ता ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा, “सरकार को सड़क, बिजली सहित अन्य व्यवस्थाओं पर ध्यान देना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भारत श्रेष्ठ भारत योजना चलाई है, जिसका मकसद एक राज्य की संस्कृति को दूसरे राज्य तक पहुंचाना है। आदिवासी नृत्य महोत्सव उसी की नकल है।”

    वहीं कांग्रेस इस आयोजन को राजनीतिक लाभ के लिए होने वाला आयोजन मानने को बिल्कुल भी तैयार नहीं है। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा, “केंद्र और राज्य सरकारों में संस्कृति विभाग होता है, उसका मकसद संबंधित राज्य की संस्कृति को बढ़ावा देना है, छत्तीसगढ़ का भी संस्कृति विभाग यही कर रहा है।”

    उन्होंने भाजपा पर कटाक्ष करते हुए कहा, “वास्तव में भाजपा संस्कृति का विरोध करती रही है। राज्य की भूपेश बघेल सरकार राज्य की संस्कृति को स्थापित करने के प्रयास कर रही है, जो भाजपा को यह रास नहीं आ रहा है।”

    छत्तीसगढ़ का आदिवासी महोत्सव सियासी तौर पर कांग्रेस को कितना लाभ देगा, इसका अंदाजा न तो कांग्रेस को है और न ही विपक्षी दल भाजपा को। मगर इतना तो तय है कि कांग्रेस को देशभर के आदिवासियों के प्रतिनिधियों के बीच अपनी बात पहुंचाने का इससे बड़ा मंच और बेहतर अवसर आसानी से नहीं मिल सकता।

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