गुजरात चुनाव में प्रचार कर रहे राहुल गाँधी का एक नया रूप देखने को मिल रहा है। शायद यही कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने उन्हें अब बड़ी जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी कर ली है। गुजरात चुनाव के लिए राहुल गाँधी ने पूरी कमान अपने और अपनी युवा टीम के हाथ में ले रखी है। इस चुनाव प्रचार में वे गंभीर और सटीक विपक्ष के रूप में उभर रहे है। इस चुनावी प्रचार के दौरान कई बार उन्होंने ऐसे व्यंगात्मक तरीके से हमले किये जैसे 2014 के लोकसभा के चुनाव से पहले पीएम मोदी कांग्रेस को लेकर किया करते थे।
ताजपोशी को लेकर बोली सोनिया
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को जब राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है इस बात का जवाब देना पड़ेगा। राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाने को लेकर सोनिया गाँधी से पूछा गया तो उन्होंने कहा की फिलहाल उनकी निगाहें गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव पर है। राहुल भी इन चुनावो में व्यस्त है जल्द ही उन्हें एक बड़ी जिमेदारी सौंपी जाएगी। प्रणब मुखर्जी की आत्मकथा की लॉन्चिंग के मौके पर सोनिया गाँधी ने कहा कि आप बड़े समय से यह पूछ रहे है और अब ये होने जा रहा है। आगे उन्होंने कहा कि इसकी घोषणा दिवाली बाद हो सकती है।
पहले भी उठ चुकी है मांग
राहुल गाँधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग पहले भी कांग्रेस में कई बार उठ चुकी है। राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाने के लिए कुछ राज्यों ने प्रस्ताव पारित कर अध्यक्ष बनाने की मांग भी उठायी है। हाल ही में उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की इकाई ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी को कांग्रेस में अध्यक्ष बनाने के लिए एक प्रस्ताव पास किया गया। इससे पहले मध्यप्रदेश की कई इकाइयों ने भी इसे लेकर 9 अक्टूबर को कई प्रस्ताव पारित किये गए।
क्यों हुई है मांग तेज
राहुल गाँधी को कांग्रेस का सुप्रीमो बनाने की मांग बढ़ने के कई कारण है। पार्टी के नेतृत्व को देखते हुए एक युवा चेहरा लेके आने के लिए पार्टी के कार्यकर्ताओ और सदस्यों ने मांग उठायी है। पिछले कुछ समय से राहुल गाँधी के व्यक्तित्व में कुछ बदलाव देखने को मिल रहा है पिछले कई समय से राहुल गाँधी अपने चुनावी दौरों में आरएसएस और बीजेपी पर खुल के हमला कर रहे है जिससे कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रताओ में जोश और विश्वास उत्पन हुआ है ख़ास बात यह है कि राहुल के किये गए हुए हमलो पर बीजेपी और आरएसएस को अपने बड़े नेताओ को जवाबदेही देने के लिए मैदान में उतरना पड़ा है। इससे साफ जाहिर होता है कि अब कहीं ना कहीं राहुल गाँधी के व्यक्तित्व को लेकर जहां पहले बीजेपी उन्हें हलके में लेती थी वही बीजेपी आज उनको इस तरह मैदान में देखकर शंकित है।
क्या है अध्यक्ष बनने के मायने
राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनने को लेकर कवायदे तो बहुत पहले से लगाई जा रही है, परन्तु राहुल के अध्यक्ष बनने से राजनैतिक और वैचारिक मायने में कांग्रेस पर काफी बड़ा असर होने वाला है, जिस तरह राहुल गाँधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी पर हमले करके अपनी राजनीती को चमका रहे है उससे साफ़ जाहिर होता है की कही न कही राहुल गाँधी के शक्शियत में काफी परिवर्तन हो रहा है। राहुल गाँधी के इस चुनाव में आरएसएस और बीजेपी पर किये गए गंभीर और तीखे हमलो से देखा जा सकता है की वह अब एक नए मुकाम पर पहुँचने को तैयार है। राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पार्टी के कार्यकर्ताओ में नयी ऊर्जा का संचार होगा जिससे उन्हें आगे आने वाले चुनावो में मदद मिलेगी।
एक युवा नेता के हाथ में बागडोर आने से पार्टी के युवा कार्यकर्ताओ में एक नई ऊर्जा का संचार होगा एक उत्साह की लहर दौड़ उठेगी। कांग्रेस का अध्यक्ष एक युवा नेता होगा तो वह खुलकर किसी मुद्दे पर अपनी राय रख सकेंगे। एक ऐसे दौर में जहा बीजेपी ने कांग्रेस मुक्त भारत का कैंपेन चलाया था, उसी वक़्त में जब कांग्रेस की अपने वक़्त की सबसे बुरी हालत है, उस वक़्त कांग्रेस को अपने पास एकलौता चेहरा दिख रहा है जिसका नाम राहुल गाँधी है।
राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से कांग्रेस को एक मनोवैज्ञानिक मदद भी मिलेगी, राहुल के एक युवा नेता होने के कारण पार्टी के कार्यकर्ता उनके साथ एक अच्छे संपर्क के साथ कार्य कर सकेंगे। राहुल गाँधी के पास जो नए विचार है उनसे उनकी पार्टी को आने वाले चुनाव में काफी फायदा हो सकता है, एक तरफ जहा बीजेपी राहुल गाँधी को लेकर काफी समय से बयानबाज़ी करती नज़र आयी है, वही अब राहुल गाँधी उन्ही रास्तो पर चलते हुए बीजेपी को घेरते हुए नजर आ रहे है।
राहुल का विरोध भी, समर्थन भी
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के राहुल को लेकर दिए इस बयान से पहले कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर ने इस विषय पर पहले ही तल्ख़ टिपण्णी कर दी है, उनसे जब कांग्रेस अध्यक्ष बनने में राहुल के नाम की कवायदों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस में सिर्फ दो लोग ही अध्यक्ष हो सकते है एक तो बेटा और दूसरी माँ।
वही दूसरी और समर्थन की बात की जाए तो पार्टी के बड़े दिग्गजों ने इस बात के लिए हामी भर दी है कांग्रेस के राजस्थान के नेता सचिन पायलेट ने कहा है कि राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की पार्टी कार्यकर्ताओ में सामान्य भावना, लोग चाहते है की वे पार्टी को आगे आकर लीड करे, उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस के संघठन के चुनाव दिवाली बाद होंगे जिससे अध्यक्ष जल्द ही चुना जायेगा और अध्यक्ष पार्टी को आगे आकर लीड करेगा।
सोनिया से सीखनी होंगी राजनीती
राहुल गाँधी अब जब कांग्रेस की बागडोर अपने हाथ में लेने जा रहे है, उन्हें कांग्रेस की राजनीती से पहले सोनिया से बहुत कुछ सीख़ लेनी होगी, सोनिया गाँधी लगभग 19 साल तक कांग्रेस की अध्यक्ष रही। अपने पति और अपनी सास की मौत के बाद भी उनकी राजनीती में आने की मंशा कुछ ज्यादा नहीं थी, लेकिन कांग्रेस के दिग्गज नेताओ ने उन्हें सक्रिय राजनीती में आने को मजबूर किया। कांग्रेस में उन्होंने सबसे पहले एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप में राजनीती में प्रवेश लिया, कांग्रेस में सम्मिलित होने के 63 दिन बाद ही वे कांग्रेस की अध्यक्ष के रूप में चुन ली गयी।
सोनिया गाँधी के 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। आरएसएस और बीजेपी ने उनपर विदेशी होने का आरोप लगाकर उनपर हमला किया लेकिन कांग्रेस ने उनका साथ नहीं छोड़ा, इसके अलावा बोफोर्स मामले को लेकर भी उनपर हमला किया गया, हालाँकि 1999 में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। इन सब चुनौतियों के बाद भी वे कांग्रेस को एकजुट करने में पीछे नहीं रही, इसका फायदा उन्हें 2004 के लोकसभा के चुनाव में मिला यूपीए को एक तरफ 218 सीट मिली वही एनडीए को 181 सीट मिली। कांग्रेस ने लेफ्ट के साथ गठबंधन करके सरकार बनायीं और सरकार चलायी। सोनिया गाँधी का दबदबा 2009 के चुनाव में और बढ़ा जहा अकेले कांग्रेस को 206 सेट मिली वही बीजेपी के सीटों की संख्या 116 हो गयी थी। हालाँकि 2014 लोकसभा चुनाव में जो कांग्रेस को 44 सेट म्मिली वो सबसे कांग्रेस की सबसे बुरी हालत थी, उस वक़्त भी कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गाँधी थी।
सोनिया गाँधी को हर प्रकार की चुनौतियों का सामना करने को तैयार रहना होगा चाहे वो पक्ष द्वारा किया हुआ हमला हो या पक्ष से हुआ आत्मघाती हमला। सोनिया गाँधी पर केवल विपक्ष ने ही हमला नहीं किया, उनको पक्षधरों से भी कई बार निपटना पड़ा था, वर्ष 1999 में जब सोनिया गाँधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बने कुछ ही वक़्त हुआ था तभी उन्हें अपनी ही पार्टी के लोगो के विरोध का सामना करना पड़ा था, भारत का प्रधानमंत्री बनने के चक्क्र में कांग्रेस के तीन बड़े नेताओ (शरद पंवार, पी. ए. संगमा, और तारिक़ अनवर) ने सोनिया गाँधी को चुनौती दे दी थी। इसका जवाब देते हुए सोनिया गाँधी ने पार्टी के नेता से इस्तफ़ा देने की पेशकश की जिसके फलस्वरूप पार्टी के बाकी लोगो ने सोनिया गाँधी का सपोर्ट किया और उन तीनो नेताओ बाहर कर दिया गया।
राहुल गाँधी को यह बात समझ लेनी चाहिए कि उनका मुकाबला एक बेहद ताक़तवर प्रतिनिधि से है। उन्हें हर प्रकार की चुनौतियों का सामना करने को तैयार रहना होगा चाहे वो पक्ष द्वारा किया हुआ हमला हो या पक्ष से हुआ आत्मघाती हमला। उन्हें बीजेपी के खिलाफ आक्रमण करने का बहुत कम मौका मिलेगा जिसमे उन्हें उसका पूरा फायदा उठाना होगा और अपनी पार्टी को खोई ज़मीन वापिस दिलवाने में मशक़्क़त करनी होगी। अगर वे इस मौके का लाभ उठाने में सक्षम रहे तो शायद यह कांग्रेस का एक पुनःजन्म ही माना जायेगा।