भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद म्यांमार की पहली यात्रा पर सोमवार को जायेंगे। इस यात्रा का मकसद म्यांमार के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना है। म्यांमार ने नवम्बर में क्यौक्पय पोर्ट प्रोजेक्ट का समझौता चीन के साथ किया था। भारत के अधिकारी इस बंदरगाह से अपनी सुरक्षा को खतरा मान रहे हैं।
President Kovind met Daw Aung San Suu Kyi, the State Counsellor of Myanmar, at the Presidential Palace. The two leaders discussed various bilateral and multilateral issues. pic.twitter.com/incZhnVhoA
— President of India (@rashtrapatibhvn) December 11, 2018
विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा कि भारत ने रखाइन प्रांत में विकास कार्य करने की प्रतिबद्धता दिखाई थी। बांग्लादेश से रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी के लिए भारत ने 250 हाउसिंग यूनिट के निर्माण का वादा किया था। उन्होंने कहा कि कई शरणार्थी वापस नहीं लौट रहे हैं, लेकिन पहले 50 यूनिट को राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान म्यांमार क सौंप दिया जायेगा।
भारतीय सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि भारत के लिये ग्वादर बंदरगाह से ज्यादा खतरनाक क्यौक्पु बंदरगाह है। म्यांमार और चीन ने नवम्बर में इस परियोजना पर हस्ताक्षर किये थे। म्यांमार के कर्ज के डर के कारण चीन ने इस प्रोजेक्ट की कीमत 7 अरब से घटाकर 1.5 अरब कर दी थी।
राम नाथ कोविंद म्यांमार की राजधानी नय पई तव और यांगून की यात्रा करेंगे साथ ही वह अपने समकक्षी यु विन म्यिंत और स्टेट काउंसलर अंग सान सु की से मुलाकात करेंगे। राष्ट्रपति के साथ एक उच्च स्तर का प्रतिनिधि समूह भी जायेगा। बीते तीन वर्षों में म्यांमार के भारत के साथ आर्थिक, राजनीतिक और रक्षा समझौते में वृद्धि हुई है और अब राष्ट्रपति म्यांमार के साथ महत्वपूर्ण साझेदारी कर भारत की प्रतिबद्धता को साबित करेंगे।
इस यात्रा के दौरान राष्ट्रपति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों से मुलाकात करेंगे। साथ ही वह कई विकास परियोजनाओं का भी दौरा करेंगे। भारत की एक्ट ईस्ट पालिसी और पड़ोसी पहले की नीति म्यांमार में अमल होती नहीं दिखाई देती है। यह एक मात्र आसियन देश है जिसकी जमीन और जलीय सीमा भारत से लगती है। भारत के उत्तर पूर्व के विकास के लिए म्यांमार रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है।