शुक्रवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गगोई ने सुप्रीम कोर्ट में खुलासा किया है कि राफेल फैसले को संशोधित करने और याचिकाकर्ताओं द्वारा अदालत के 14 दिसंबर के फैसले पर पुन: विचार करने के लिए अलग-अलग समीक्षा याचिका पर सरकार का आवेदन अदालत की रजिस्ट्री में निष्क्रिय पड़ा हुआ है। दायर दस्तावेजों में दोषों को सुधारने के लिए वे वकीलों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
सीजेआई ने यह स्पष्ट बताया कि मामले को सूचीबद्ध करने में देरी अदालत के कारण नहीं, बल्कि केस से जुड़े वकीलों के कारण हो रही है। अदालत में आखिरी याचिका दायर किए हुए तकरीबन एक महीना गुजर चुका है।
सीजेआई के लिए सामने राफेल का मामला एक वकील द्वारा मौखिक रुप से आया था।
कोर्टरुम में वकीलों की भीड़ को कम करने और अपने शिकायत को मौखिक रुप से दर्ज करने को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश दिए थे। मौखिक रुप से केस दर्ज कर जल्द से जल्द उसका निपटारा किया जाना था। मुख्य न्यायाधीश के अंतर्गत इस तंत्र को तैयार किया है जिसके द्वारा दायर मामलों को उसी सप्ताह सूचीबद्ध किया जाता है।
हालांकि, बाद में यह विशेष वकील शिकायत करने लगा कि रजिस्ट्री उसके मामले को सूचीबद्ध नहीं कर रही थी।
इसपर सीजेआई ने जवाब दिया कि रजिस्ट्री में गलती नहीं हो सकती है। कुछ मामलों में चूक वकीलों से भी हो सकती है। सीजेआई ने राफेल मामले की स्थिति के उल्लेख में कहा कि वकीलों ने याचिकओं में गलतियों को ठीक नहीं किया और न ही अपने मामलों की जल्द सुनवाई की।
उन्होंने यह भी कहा कि “दूसरा पक्ष (वकील) इतने भी निर्दोष नहीं हैं।” राफेल मामले में अपने दोषों को ठीक करने के बजाय “याचिकाकर्ता (राफेल मामले में याचिकाकर्ताओं की समीक्षा) मीडिया में गए और व्यापक प्रचार का दावा करने लगे।”
15 दिसंबर, 2018 को राफेल फैसले में सुधार के लिए दायर किए गए सरकारी आवेदन के बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा क्योंकि सरकार ने अब तक अपने आवेदन की जल्द सुनवाई के लिए अदालत के समक्ष कोई मौखिक उल्लेख नहीं किया है।
36 राफेल विमानों के कीमत को लेकर शीर्ष अदालत की ओर से आए फेसले में कुछ अंग्रेजी व्याकरण संबंधी गलतियां थी।
पुन: विचार याचिका यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, प्रशांत भूषण और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह द्वारा दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि अदालत के फैसले को दोषपूर्ण रेखाओं से भरा गया है। वे चाहते हैं कि अदालत अपने “गलत” फैसले पर पुनर्विचार करे, जो राफेल सौदे को बरकरार रखने के लिए “गैर-मौजूद” कैग की रिपोर्ट पर निर्भर करता है।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि कैग की रिपोर्ट कल्पना पर आधारित है। इसमें कई अंकीय त्रुटियां हैं। सरकार जो दावा कर रही है कि यह कैग रिपोर्ट सच है, वह पूरा सच नहीं है। कैग एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है, जो केवल संसद के लिए जवाबदेह है। वास्तव में, सरकार सीएजी को निर्देश नहीं दे सकती है कि क्या करान है और क्या नहीं। याचिकाकर्ताओं ने फ्रांसीसी सरकार के बर्ताव पर भी सवाल खड़े किए हैं।