सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र सरकार को यह आदेश दिया है कि वे राजीव गाँधी हत्याकांड मामले में तीन महीने के अंतराल में फैसला सुनिश्चित करें। बता दें कि तमिलनाडु सरकार ने 2014 में राजीव गाँधी हत्याकांड में दोषी पाए गए 7 हत्यारों की सजा को ख़त्म करने की मांग की थी। जस्टिस रंजन गोगोई, ए एम सप्रे और नविन सिन्हा की तीन न्यायाधीशों की बेंच ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद को राज्य सरकार के पत्र पर फैसला लेने के लिए कहा है।
ज्ञात हो कि दो साल पहले, राज्य सरकार ने एक पत्र में पेरारीवलान, मुरुगन, संथन, नलिनी, रॉबर्ट पाइग, जयकुमार और रवीचंद्रन को जेल से रिहा करने का इरादा व्यक्त किया था, क्योंकि ये सभी 24 साल की जेल काट चुके हैं। यह मामला तभी से अटका हुआ है।
उनके इस अनुरोध को केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया था और कहा था कि यह मामला उप-न्यायिक है। तमिलनाडु सरकार द्वारा भेजे गए इस पत्र ने ये सवाल खड़े कर दिए थे कि सीबीआई द्वारा जांच किये गए एक मामले में क्या किसी राज्य सरकार को कैदियों की सजा कम करने का अधिकार है।
2015 में संविधान की एक पीठ ने यह फैसला किया था कि किसी केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांचे गए मामले में किसी भी राज्य सरकार को कैदियों की सजा कम करने का अधिकार नहीं होगा। अदालत ने यह माना था कि अपराधियों की माफी के मामलों का निर्णय केंद्र, राष्ट्रीय हित में अपनी कार्यकारी शक्ति का पालन करते हुए कर सकता है और उनकी सजा में बदलाव कर सकता है किन्तु किसी भी राज्य सरकार को यह अधिकार नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला केंद्र सरकार की उस अपील पर आया था जिसमे उन्होंने यह बात कही थी कि किसी भी राज्य सरकार को कैदियों की सजा कम करने का या उनको समय-समय पर रिहा करने की छूट नहीं होनी चाहिए। इसी अपील के जवाब में न्यायालय ने राज्य सरकार को आधिकारिक तौर पर यह आदेश जारी किया था।
2014 में भी अदालत ने तमिलनाडु सरकार के उस कदम पर रोक लगायी थी जिसमे उन्होंने तीन कैदियों मरुगन, संथन और अरविव के मृत्युदंड को आजीवन कारावास में तब्दील करने की बात कही थी।