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    2जी स्पेक्ट्रम,राजा और कनिमोझी

    देश में हुए सबसे बड़े घोटाले 2जी स्पेक्ट्रम मामले में आज दिल्ली एक अदालत ने फैसला देते हुए, आरोपी ए. राजा और कनिमोझी को बरी कर दिया है। 2010 में हुए इस घोटाले में यूपीए के पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और एम के कनिमोझी आदि के नाम शामिल थे। सात साल पहले भारत के महालेखाकार विनोद राय ने अपनी रिपोर्ट में 2008 में हुए 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का जिक्र करते हुए कहा कि देश को एक लाख 76 हजार रूपए का नुकसान हुआ है। तब कंपनियों को नीलामी के बजाय पहले आओ और पहले पाओ की नीति पर लाइसेंस दिए गए थे। जिसके कारण देश के सरकारी खजाने को बड़ा नुकसान हुआ था।

    इस मामले में 6 साल पहले सुनवाई शुरू हुई थी जिसमे 17 आरोपियों पर आरोप तय हुआ था। कोर्ट ने फैसले के दौरान सभी आरोपियों पर धारा 409 के तहत सरकारी कर्मियों के साथ मिलकर आपराधिक षडयंत्र रचने, धारा 120बी के तहत आपराधिक षडयंत्र और धारा 420 के तहत धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए थे। लेकिन सभी आरोप तय करने के बाद भी अदलात को इनके खिलाफ कोई ठोस सबुत नहीं मिला।

    इस घोटाले में 17 आरोपियों में से 14 व्यक्ति और 3 कम्पनिया शामिल थी, जिनमे (रिलायंस टेलीकॉम, स्वान टेलीकॉम, यूनिटेक वायरलेस) शामिल थी। इन 17 आरोपियों में दक्षिण राजनीती के दो बड़े नेताओ के नाम शामिल थे। आइये जानते है, इस फैसले के बाद आरोपियों को कितनी सजा मिली?

    किसको क्यों और कब मिली सजा

    ए. राजा, जो यूपीए सरकार में दूर संचार मंत्री रह चुके हैं, एवं द्रमुक नेता कनिमोझी को इस मामले में फैसला आते ही पार्टी पद से इस्तीफा देना पड़ा। 2जी मामले में इन दोनों को 2 फरवरी 2011 को जेल जाना पड़ा। करीब 14 महीने बाद इन दोनों को जमानत मिल गई। इनपर यह आरोप था कि इन्होने नियम कायदों को पीछे करते हुए 2जी स्पेक्ट्रम की विवादित नीलामी की। सीबीआई के तय किये गए आरोपों के अनुसार राजा ने 2001 में तय की गई दरों को 2008 में स्पेक्ट्रम को बेच दिया था। राजा ने स्पेक्ट्रम अपनी चुनिंदा कंपनियों से पैसे लेकर बेच दिया था। लेकिन हाल ही में आए कोर्ट के फैसले में राजा इस मामले में दोषमुक्त करार दिए गए है।

    एमके कनिमोझी– द्रमुक के प्रमुख और 5 बार मुख्यमंत्री पद पर विराजमान रह चुके एम् करूणानिधि की बेटी और राज्य सभा सांसद कनिमोझी पर ए राजा के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगा था। उन पर आरोप था कि उन्होंने अपने टीवी चैनल कालैगनार टीवी के लिए 200 करोड़ रुपयों की रिश्वत डीबी रियलटी के सहसंस्थापक शाहिद बलवा से ली, बदले में ए राजा ने न सिर्फ गलत ढंग से स्पेक्ट्रम दिलाया बल्कि कालैगनार टीवी को मान्यता दी और डीटीएच सेवा में शामिल करा दिया। साथ ही उनपर कर चोरी करने के आरोप भी लगे। इस मामले में कनिमोझी को सीबीआई ने 20 मई 2011 को गिरफ्तार किया लेकिन उसी साल 28 नंवबर को उन्हें बेल मिल गई।

    इन दो चर्चित नाम के अलावा कुछ बड़े नौकरशाह भी इस मामले में संलिप्त रहे

    सिद्धार्त बेहुरा– यूपीए की सरकार में दूरसंचार मंत्री रहे ए राजा के कार्यकाल में दूरसंचार सचिव थे। सीबीआई ने इनपर यह आरोप लगाया था कि बेहुरा राजा और अन्य लोगो के साथ इस काम में शामिल थे। बेहुरा पर आरोप था कि उन्होंने अन्य कंपनियों के आवेदन का मौका नहीं देने के लिए काउंटर बंद करा दिया था। इस मामले में बेहुरा भी राजा के साथ गिरफ्तार किये गए थे लेकिन 2 मई 2012 को उन्हें भी जमानत मिल गई।

    आरके चंदोलिया– जिस समय यह पूरा घोटाला हुआ उस समय चंदोलिया ए राजा के पूर्व निजी सचिव थे और उन पर आरोप था कि उन्होंने बेहुरा और राजा समेत कई लोगों के साथ मिलकर कुछ ऐसी निजी कंपनियों को लाभ दिलाया। साथ ही वह आवेदन के समय (3:30 से 4:30 के बीच) खुद काउंटर पर बैठे थे ताकि दूसरी कंपनियां आवेदन करने में कामयाब नहीं हो सके। चंदोलिया भी 2 फरवरी 2011 को गिरफ्तार किए गए और 1 दिसंबर, 2011 को जमानत मिलनी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने अखबारों में उनके बारे में पढ़कर स्वतः संज्ञान लिया और जमानत रद कर दी। हालांकि 9 मई, 2012 को वह भी रिहा हो ही गए।

    संजय चंद्रा– सीबीआई के अनुसार यूनिटेक के पूर्व महाप्रबंधक संजय चंद्रा की कंपनी भी इस स्पेक्ट्रम घोटाले में लाभ हासिल करने वाली कई कंपनियों में शुमार थी। उन पर आरोप है कि स्पेक्ट्रम हासिल करने के बाद यूनिटेक ने स्पेक्ट्रम को विदेशी कंपनियों को ज्यादों दामों पर बेच कर भारी मुनाफा कमाया था। आरोप तय होते ही चंद्रा को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन 24 नंवबर को वे रिहा भी हो गए।

    शहीद बलवा– उनपर यह आरोप था कि उन्होंने सरकारी मुलाजिम के साथ मिलकर साजिश रची थी जिससे उनकी कंपनी स्वॉन टेलीकॉम और डीबी रियलटी को बहुत कम दामों में स्पेक्ट्रम आवंटित किया गया था। लेकिन वह भी 29 नंवबर को रिहा कर दिए गए।

    आसिफ बलवा– शाहिद बलवा के भाई और कुसगांव फ्रूट्स और वेजीटेबल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक आसिफ की कंपनी में 50% हिस्सेदारी थी। उनपर भी यह आरोप था कि वह भी सरकारी मुलाजिम से मिलकर साजिश कर रहे थे। आरोप तय होने पर आसिफ को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन 28 नंवबर को वे छूट गए थे।

    करीम मोरानी– सिनेयुग फिल्म्स के प्रमोटर और निदेशक करीम पर आरोप था कि उन्होंने कुसगांव फ्रूट्स और वेजिटेबल प्राइवेट लिमिटेड से 200 करोड़ रुपए से ज्यादा लिए और कनिमोझी को 200 करोड़ रुपए रिश्वत के रूप में दिए ताकि शहीद बलवा की कंपनियों को स्पेक्ट्रम आवंटित करा दिया जाए।

    विनोद गोयनका– स्वॉन टेलिकॉम और डीबी रिएलटी के निदेशक विनोद पर आरोप लगे कि उन्होंने अपने साझीदार शाहिद बलवा के साथ मिलकर आपराधिक षड्यंत्र में भाग लिया था। आरोप तय होने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन कुछ महीने बाद उन्हें भी बेल मिल गई।

    सुरेन्द्र पिपारा, हरी नायर और गौतम दोषी– अनिल अंबानी समूह की कंपनी (रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप) के 3 शीर्ष अधिकारियों पर भी इन पूरे साजिश में शामिल होने का आरोप लगा। इन तीनो ने सरकारी मुलाजिम के साथ मिलकर बहुत कम दामों में कंपनियों को स्पेक्ट्रम आवंटित किया था। जिसके कारण इन तीनो अधिकारीयों पर आरोप तय कर उन्हें सलाखों के पीछे भेज दिया गया। लेकिन इनके जेल में रहने का सिलसिला ज्यादा दिन नहीं रहा और ये लोग जमानत पर बहार आ गए।

    शरथ कुमार– इनपर भी सरकारी मुलाजिम के साथ मिलकर साजिश करने का आरोप लगा और कम दामों में कंपनी को स्पेक्ट्रम आवंटित करने के जुर्म में इन्हे भी गिरफ्तार किया गया।
    इसके अलावा तीन कम्पनियां भी इस मामले में शामिल है जिनपर चार्जशीट दाखिल की गई थी। इन कंपनियों में यूनिटेक वायरलेस, रिलायंस टेलीकॉम और स्वान टेलीकॉम शामिल है।