राजस्थान में विधानसभा चुनाव सिर्फ 4 दिन दूर हैं और विश्लेषक काफी करीब से राज्य के तीन हाई प्रोफाइल और वीआइपी सीटों के समीकरण का विश्लेषण कर रहे हैं।
ये तीन हाई प्रोफाइल सीट हैं वर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का झालर पाटन, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सरदारपुरा और संभावित मुख्यमंत्री सचिन पायलट का टोंक।
इनमे से वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत की सीट उनके लिए एक मजबूत गढ़ है जबकि सचिन पायलट पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।
झालरापाटन
झालर पाटन वसुंधरा राजे सिंधिया का गढ़ है। वो झालर पाटन से तीन बार चुन कर विधानसभा आ चुकी हैं लेकिन इस बार उनकी ये लड़ाई इतनी आसान नहीं रहने वाली। कांग्रेस ने उनके खिलाफ पूर्व भाजपा नेता जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र सिंह को उतारा है। मानवेन्द्र राजपूत हैं और सीट के जातीय समीकरणों को देखें तो उनका पलड़ा भारी नज़र आता है।
झालर पाटन के 2,73,404 मतदाताओं में से 15 फीसदी मतदाता मुसलमान हैं जबकि 13 फीसदी एससी-एसटी, 11 फीसदी ओबीसी, 7 फीसदी ब्राह्मण और 12 फीसदी राजपूत-सौंधिया, 6 फीसदी दांगी और 5-5 फीसदी माली और महाजन है।
राजपूत और सौंधिया का समर्थन हासिल कर वसुंधरा राजे को पटकनी देने के लिए कांग्रेस ने राजपुर समुदाय के मानवेन्द्र सिंह को मैदान में उतारा है। राजपूत भाजपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है और ये जनसंघ के दिनों से ही भाजपा के साथ है। कांग्रेस को मुसलमानों का समर्थन पहले सी ही हासिल है।
लेकिन ये सब मानवेन्द्र और कांग्रेस के लिए इतना आसान नहीं है। राजे ने झालर पाटन 3 बार जीता है और वो राज्य की मुख्यमंत्री भी हैं तो उनकी पकड़ अपने क्षेत्र के मतदाताओं पर कहीं ज्यादा है। जबकि बारमेड से आने वाले मानवेन्द्र का बाहरी होना उनके खिलाफ जा रहा है।
टोंक
टोंक से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट उम्मीदवार हैं। सचिन पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। टोंक एक मुस्लिम बहुत सीट है। और भाजपा ने यहाँ मुसलमानों का समर्थन हासिल करने के लिए एक्माय्र मुस्लिम उम्मीदवार युनुस खान को पायलट के सामने खड़ा किया है।
टोंक के 2,22,000 मतदाताओं में से 45,000-50,000 के बीच मुस्लिम मतदाता है जो करीब 20 फीसदी है। 17 फीसदी एससी-एसटी,14 फीसदी गुज्जर, 4 फीसदी राजपूत, 3 फीसदी माली और 5-5 फीसदी ब्राह्मण और जाट हैं।
पायलट गुज्जर समुदाय से आते हैं और वो इस सीट के इतिहास में कांग्रेस के पहले हिन्दू उम्मीदवार हैं जबकि भाजपा ने पहली बार किसी गैर हिन्दू को यहाँ से मैदान में उतारा है ताकि मुसलमानों के वोट हासिल कर सके।
कांग्रेस का गणित है कि मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देंगे और गुज्जर अपने कास्ट के पायलट को वोट देंगे और ये दोनों मिलकर पायलट को आसानी से जिता देंगे।
विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने इस मुस्लिम बहुल सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार को खड़ा कर एक ट्रम्प कार्ड खेला है। लेकिन जिस तरह झालर पाटन में मानवेन्द्र का बाहरी होना उनके आड़े आ रहा वासे ही टोंक में युनुस खान का बाहरी होना उनके आड़े आ रहा।
सरदारपुरा
दो बार कांग्रेस के मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत की ये परंपरागत सीट है। अशोक गहलोत ने यहाँ से 4 बार विधानसभा चुनाव जीता है।
सरदारपुरा सीट पर कुल 2,27,141 मतदाताओं में 1,17,120 पुरुष और 1,10,021 महिला मतदाता हैं। सरदारपुरा पर करीब 20 फीसदी राजपूत, 18 फीसदी माली, 5 फीसदी ब्राह्मण, 9 फीसदी एससी -एसटी और 9 फीसदी कुम्हार-जाट-विश्नोई समुदाय के वोट हैं।
गहलोत माली समुदाय से आते हैं। और उनकी अपने परंपरागत वोटरों में गहरी पैठ है। पिछली बार की तरह इस बार भी भाजपा ने शम्भू सिंह खेतासर को उम्मीदवार बनाया है जो गहलोत से 18,478 वोटों से हार गए थे। खेतासर राजपूत है और 2013 में उन्होंने अशोक गहलोत को अच्छी टक्कर दी थी।
राजनितिक विश्लेषक मानते हैं कि जातीय समीकरणों ने झालर पाटन, सरदारपुरा और टोंक के चुनावी टक्कर को काफी दिलचस्प बना दिया है।