26 नवंबर को झालर पाटन मे श्री राजपूत करनी सेना के नेतृत्व मे कई राजपूत संगठनों मे आपस मे मीटिंग कि और कॉंग्रेस प्रत्याशी मानवेंद्र सिंह को समर्थन देने कि रणनीति पर चर्चा की।
झालर पाटन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का चुनाव क्षेत्र हैं जहां से वो 2003 से जीतती आ रही हैं। मानवेंद्र सिंह ने वसुंधरा राजे से नाराज होकर कॉंग्रेस जॉइन कर लिया और कोंग्रेस ने वसुंधरा को मात देने के लिए झालर पाटन से मानवेंद्र को ही मैदान मे उतार दिया।
दूसरी बार राजस्थान की गद्दी पर बैठी वसुंधरा और राजपूतों मे इतनी ज्यादा ठन गई कि जनसंघ के जमाने से ही भाजपा के वोटर रहे राजपूतों ने राजस्थान मे वसुंधरा और भाजपा के खिलाफ खुली जंग का ऐलान कर दिया। पश्चिमी राजस्थान जो राजपूतों का गढ़ माना जाता है वहाँ वसुंधरा के खिलाफ सबसे ज्यादा नाराजगी है। राजपूतों के लिए झालर पाटन सम्मान की लड़ाई बन गया है।
राजस्थान की कुल आबादी में राजपूतों की हिस्सेदारी 8 से 10 फीसदी है लेकिन वो अन्य समुदाय के वोटों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
करनी सेना के नेता लोकेन्द्र सिंह कालवी कहते हैं कि झालर पाटन की लड़ाई राजपूतों के लिए राजपूत बनाम गैर राजपूत हो चूका है।
इस लड़ाई की बीज तब पड़ी जब राजे ने मानवेंद्र सिंह के पिता और पूर्व वरिष्ठ भाजपा नेता जसवंत सिंह को बाड़मेर से लोकसभा का टिकट नहीं दिया। हालांकि जसवंत निर्दलीय लड़े और हार गए। भाजपा ने जाट नेता सोनाराम चौधरी को टिकट दिया था जो कॉंग्रेस छोडकर भाजपा मे आए थे।
एन्काउंटर
दो साल बाद जून 2016 मे एक हिस्ट्रीशीटर चतुर सिंह का जैसलमेर मे एन्काउंटर हुआ। आरोप लगे कि ये एक फ़र्ज़ी एन्काउंटर था। राजपूत इसकी सीबीआई जाँच के लिए सड़कों पर उतर आये। विरोध प्रदर्शन में जैसलमेर से भाजपा विधायक छोटू सिंह भी थे।
इस एन्काउंटर ने राजपूतों के मन में राजे के लिए राजपूत विरोधी होने का संदेह भर दिया। उसके बाद जून 2017 में गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के एन्काउंटर ने तो राजपूतों के गुस्से में उबाल ला दिया। आनंदपाल के एन्काउंटर के बाद करनी सेना के नेतृत्व में भारी हिंसात्मक विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ।
इस मुद्दे पर वसुंधरा के खिलाफ भाजपा के अंदर भी नाराजगी पनपने लगी। भाजपा विधायक घनश्याम तिवारी ने इस मुद्दे पर वसुंधरा का मुखर विरोध किया। इसके खिलाफ राजपूत सड़क के साथ साथ सोशल मिडिया पर भी एकजुट होने लगे।
राजपूत अपमान
सितम्बर 2016 में जयपुर डेवलोपमेन्ट अथॉरिटी ने राजमहल पैलेस होटल के गेट को सील कर दिया। ये होटल जयपुर स्वामित्व में था। इस घटना से राजस्थान के राजनीतिक गलियारों मे सबकी भौंहे तन गई। दिया कुमारी जी राजपरिवार की सदस्य थी वो भजोपा की विधायक थी उस वक़्त।
राजपरिवार ने जेडीए के खिलाफ कानूनी कारवाई की। जयपुर राजघराने की राजमाता पद्मिनी देवी ने सड़क पर विरोध प्रदर्शन किया जनता के साथ जिसे करनी सेना ने भी समर्थन दिया। इस विधानसभा चुनाव मे भाजपा ने दिया कुमारी को टिकट देने से इंकार कर दिया। हालांकि दिया ने खुद कहा कि वो चुनाव नहीं लड़ना चाहती।
अलवर और अजमेर लोकसभा उपचुनाव मे सीट हारने के बाद भाजपा के राज्य अध्यक्ष अशोक परमानी ने अपना स्तीफ़ा दे दिया तो जोधपुर के सांसद गजेन्द्र सिंह शेखावत का नाम अध्यक्ष पद के लिए सबसे आगे चल रहा था। वो केंद्रीय नेतृत्व की पसंद भी थे।
एकिन वसुंधरा राजे और उनके समर्थकों के विरोध के बाद मदन लाल सैनी को अध्यक्ष बनाया गया। सैनी वसुंधरा के करीबी थे।
शेखावत को अध्यक्ष न बनाने को राजपूतों ने अपने अपमान के तौर पर लिया और इस घटना ने भाजपा और राजपूतों के बीच कि खाई को और चौड़ी कर दी।
हालांकि राजपूत समुदाय के कुछ लोगों का मानना है कि राजपूतों और भाजपा के ये दूरी ज्यादा दिनो तक नहीं टिकने वाली। क्योंकि कुछ घटनाक्रम लगातार होते चले गए जिससे राजपूतों को लगा कि भाजपा उनके खिलाफ है। इसे मुख्यतः राजपूतों और भाजपा के बीच कि दूरी न कह कर राजपूतों और वसुंधरा के बीच कि दूरी कहा जाये।
विधानसभा मे भाजपा ने 28 राजपूतों को टिकट दिया है जबकि कॉंग्रेस ने मात्र 15 राजपूत उम्मीदवार उतारे हैं। राजपूत सिर्फ वसुंधरा से ही नाराज है इस बात कि तसकीद ये नारे करते हैं ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, महैयानी तेरी खैर नहीं’।