तमाम ओपिनियन पोल में राजस्थान में कांग्रेस के आने की भविष्वाणी के बीच अचानक से राज्य का झालर पाटन विधानसभा सीट सके आकर्षण का केंद्र बन गया। मुख्यमंत्री और भाजपा की कद्दावर नेता वसुंधरा राजे की ये परंपरागत सीट अब स्वाभिमान, राजपूत गौरव और राजनितिक प्रतिशोध का अखाड़ा बन चुका है। दरअसल कांग्रेस ने यहाँ से 65 वर्षित वसुंधरा के खिलाफ पूर्व भाजपा नेता वरिष्ठ जसवंत सिंह के 54 वर्षीय बेटे मानवेन्द्र सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है।
मानवेन्द्र सिंह के मैदान में उतरने से वसुंधरा के लिए ये चुनाव अब आसान नहीं रह गया है। पिछले कुछ वर्षों में वसुंधरा और मानवेन्द्र परिवार के रिश्ते कटुता के उस दौर में पहुँच गए कि अब दोनों आमने सामने एक दुसरे के खिलाफ खड़े हैं।
दोनों परिवारों के रिश्ते 2014 से बिगड़ने शुरू हुए जब मानवेन्द्र के पिता और भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को 2014 लोकसभा चुनाव में बाडमेड से टिकट देने से मना कर दिया गया। दशकों तक भाजपा से जुड़े सिंह परिवार के लिए ये अपनाम की बात थी।
दरअसल 2009 में दार्जिलिंग से सांसद रह चुके जसवंत सिंह को लगता था कि 2014 उनका आखिरी चुनाव है और इसलिए वो अपने गृह राज्य राजस्थान के बाडमेड सीट से लड़ना चाहते थे लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया और उनकी जगह पर कांग्रेस से भाजपा में आये कर्नल सोनाराम को टिकट दे दिया गया। 2004 में मानवेन्द्र सिंह ने सोनाराम को बारमेड़ लोकसभा सीट से हराया था लेकिन 2009 में वो कांग्रेस के हरीश चौधरी से हार गए थे। 2013 में मानवेन्द्र सीओ विधासभा सीट से भाजपा के विधायक बने।
टिकट नहीं मिलने पर जसवंत सिंह निर्दलीय बाड़मेर से लड़े लेकिन भाजपा उम्मीदवार सोनाराम से चुनाव हार गए। चुनाव हारने के बावजूद जसवंत सिंह ने 4 लाख से अधिक वोट हासिल किये।
जसवंत सिंह 2014 से कोमा में हैं। वरिष्ठ नेता के परिवार से बिगड़े सम्बन्धो को सुधारने की कोई पहल वसुंधरा ने नहीं की।
मानवेन्द्र ने इस साल सितम्बर में भाजपा की सदस्यता से इस्तीफा दे कर कांग्रेस ज्वाइन कर लिया। बकौल मानवेन्द्र ‘ये मेरे लिए आसान फैसला नहीं था लेकिन कुछ घटनाओं ने मुझे ये कदम उठाने पर मजबूर कर दिया। हमें ऐसा लगा कि हमारी अनदेखी की जा रही है। जिस पार्टी को मेरे पिता ने 3 दशक दिए उस पार्टी ने उन्हें टिकट देने से मन कर दिया।’
भाजपा छोड़ने से पहले मानवेन्द्र ने बाडमेड में ‘स्वाभिमान रैली’ की और बाडमेड से अपने पारिवारिक रिश्तों का हवाला दे कर राजपूत गौरव फिर से बहाल करने का हुंकार भरा। कुछ लोगों का कहना है कि मानवेन्द्र के विधायक होने के बावजूद वसुंधरा सरकार ने शिहो के विकास को लेकर आँखे मूँद रखा था। जबकि कुछ कहते हैं कि मानवेन्द्र ने ही कभी रिश्तों को सुधारने की कोशिश नहीं की। जब भी वसुंधरा शिहो विधानसभा क्षेत्र में आती तब मानवेन्द्र अनुपस्थित रहते।
राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट कहते हैं कि ‘हमने वसुंधरा राजे के खिलाफ अपना सबसे अच्छा उम्मीदवार उतारा है। ये कड़ा मुकाबला होगा लेकिन हम ये भी जानते हैं कि इस बार लोग भाजपा से नाराज हैं।’
राजनितिक विश्लेषकों का कहना है कि झालर पाटन का चुनाव भावनात्मक लहरों पर सवार हो कर लड़ा जाएगा। जहाँ मानवेन्द्र अपने पिता और राजपूत गौरव की बात करते हैं वहीँ वसुंधरा झालर पाटन से अपने पुराने रिश्तों का हवाला देती हैं। मानवेंद्र इस मुकाबले को ‘कांग्रेस बनाम वसुंधरा’ बनाने की बजाये ‘जसवंत बनाम वसुंधरा’ बनाना चाहते हैं।
वसुंधरा झालर पाटन से 2003 से जीतती आ रही है। 1977 आपातकाल तक झालर पाटन कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन उसके बाद 9 चुनावों में से कांग्रेस यहाँ सिर्फ 2 बार ही जीत पाई है।
झालर पाटन क्षेत्र में मुस्लिम वोट करीब 50,000 के करीब हैं जबकि उनके बाद दलितों की बहुतायत है। दलित वोट यहाँ करीब 35,000 है। जबकि धाकड़ और राजपुर वोट 20,000 -20,000 हैं। राजपूतों की भाजपा से नाराजगी की वजह से ये वोट मानवेन्द्र के हिस्से में जाना तय है। 16,000 वोट दांगी और पाटीदार समुदाय के हैं जबकि 12,000 वोट गुज्जर और ब्राह्मणो के हैं।
दलित और मुस्लिम वोट कांग्रेस के परंपरागत वोटबैंक है जबकि परंपरागत रूप से भाजपा के वोटर माने जाने वाले राजपूत इस बार भाजपा से नाराज है तो कांग्रेस को उनका भी समर्थन मिल रहा है।